श्रीलंका : चिंताओं भरे दौर के बाद संबंध पटरी पर लाने की कवायद
By शोभना जैन | Published: October 8, 2021 03:30 PM2021-10-08T15:30:59+5:302021-10-08T15:38:38+5:30
भारत के विदेश सचिव डॉ. हर्षवर्धन श्रृंगला की इस सप्ताह हुई श्रीलंका की अहम यात्ना को दोनों देशों ने आपसी साझीदारी को मजबूत करने के लिहाज से सकारात्मक माना है.
चीन की छाया में घिरते जा रहे अपने प्रगाढ़ पड़ोसी मित्न श्रीलंका के साथ पिछले कुछ समय से संबंधों में आई दूरियों को मिटाने के लिए भारत के विदेश सचिव डॉ. हर्षवर्धन श्रृंगला की इस सप्ताह हुई श्रीलंका की अहम यात्ना को दोनों देशों ने आपसी साझीदारी को मजबूत करने के लिहाज से सकारात्मक माना है. इस यात्ना को अनूठे मानवीय रिश्तों और सांस्कृतिक डोर से बंधे दो प्रगाढ़ पड़ोसी मित्नों के बीच संबंधों को फिर से पटरी पर लाने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है. द्विपक्षीय संबंधों को नई मजबूती देने और तमिल मुद्दे से जुड़े श्रीलंका के संविधान के अहम 13 वें संशोधन को पूरी तरह से लागू करने पर अपना पक्ष नए सिरे से रखने के साथ ही भारत के लिए सामरिक दृष्टि से भी यह यात्ना महत्वपूर्ण है.
इस क्षेत्न में चल रही उथल-पुथल के बीच अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे, पाकिस्तान के आतंक और चीन के साथ सीमा तनाव से घिरे भारत के लिए इस यात्ना में श्रीलंका का यह आश्वासन भी संबंधों को नई गति देने में सहायक होगा कि उनके देश में किसी भी ऐसी गतिविधि की अनुमति नहीं दी जाएगी जो भारत की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकती हो.
श्रीलंका के भारत के साथ रिश्तों पर पिछले कुछ वर्षो से चीन के विस्तारवादी एजेंडे की छाया मंडरा रही है और दोनों देशों का द्विपक्षीय संबंध चीन की मौजूदगी से प्रभावित हो रहा है. दरअसल इसी वर्ष श्रीलंका ने जिस तरह से एकतरफा फैसला लेते हुए भारत और जापान के साथ किए गए त्रिपक्षीय पोर्ट टर्मिनल प्रोजेक्ट समझौते को रद्द कर दिया था, वो रिश्तों के लिए बड़ा आघात था. इस समझौते पर तीनों देशों ने 2019 में हस्ताक्षर किए थे. यही नहीं भारत की एक चिंता ये भी रही है कि श्रीलंका में चल रही उसकी विभिन्न विकास परियोजनाओं को कुछ न कुछ दलीलें देकर धीमा कर दिया जाता है, जबकि वहां चीन की परियोजनाएं तेज गति से चल रही हैं और श्रीलंका में उसकी आर्थिक विकास परियोजनाओं का जाल तेजी से बढ़ रहा है.
अगर भारत श्रीलंका रिश्तों की अहम कड़ी तमिल मुद्दे की बात की जाए तो विदेश सचिव ने इस यात्ना में खास तौर पर श्रीलंका से अपने संविधान के 13वें संशोधन का पूरी तरह से पालन करने पर जोर दिया. इनमें सत्ता का हस्तांतरण और जल्द ही प्रांतीय परिषदों के चुनाव कराने की बात शामिल है. यह संशोधन 1987 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्नी राजीव गांधी और तत्कालीन श्रीलंकाई राष्ट्रपति जयवर्धने के बीच समझौते के बाद हुआ था. विदेश सचिव ने देश में श्रीलंकाई तमिलों का प्रतिनिधित्व करने वाले राजनीतिक समूहों के साथ बैठकें कीं और देश में अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए भारत की प्रतिबद्धता दोहराई. इसके तहत श्रीलंका के नौ प्रांतों में चुनाव करा कर काउंसिल को सत्ता में साझीदार बनाने की बात है. इसका मकसद ये था कि श्रीलंका में तमिलों और सिंहलियों का जो संघर्ष है, उसे रोका जा सके. 13वें संशोधन के जरिये प्रांतीय परिषद बनाने की बात थी ताकि सत्ता का विकेंद्रीकरण हो सके.
इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, हाउसिंग और भूमि से जुड़े फैसले लेने का अधिकार प्रांतीय परिषद को देने की बात थी. लेकिन इनमें से कई चीजें लागू नहीं हो सकीं. भारत चाहता है कि श्रीलंका इसे लागू करे ताकि जाफना में तमिलों को अपने लिए नीतिगत स्तर पर फैसला लेने का अधिकार मिले. दरअसल विदेश मंत्नी डॉ. एस. जयशंकर ने भी अपनी इस वर्ष की जनवरी की श्रीलंका यात्ना में अल्पसंख्यक तमिल समुदाय की आकांक्षाओं को संयुक्त श्रीलंका के दायरे में सुनिश्चित किए जाने पर बल दिया था. श्रीलंका के राष्ट्रपति राजपक्षे ने दोनों देशों के संबंधों को 60 और 70 के दशक जैसा बनाए जाने पर जोर दिया.
निश्चित तौर पर श्रीलंका एक स्वतंत्न प्रभुता सम्पन्न राष्ट्र है. भारत श्रीलंका में चीन की आर्थिक गतिविधियों के खिलाफ नहीं है लेकिन वो चाहता है कि भारत द्वारा आर्थिक रूप से प्रायोजित बंदरगाह और ऊर्जा के मामलों में श्रीलंका वैसा ही व्यवहार करे जैसा वो चीन के मामले में करता है. भारत चाहता है कि श्रीलंका चीन के साथ कोई सौदा करते समय भारत के सुरक्षा हितों का भी खयाल रखे.