शोभना जैन का ब्लॉग: उम्मीदों के बीच भारत-श्रीलंका शिखर सम्मेलन
By शोभना जैन | Published: September 25, 2020 03:41 PM2020-09-25T15:41:05+5:302020-09-25T15:41:05+5:30
‘नेबरहुड फस्र्ट नीति’ को लेकर सवालों में घिरी मोदी सरकार का किसी पड़ोसी देश के साथ यह पहला वर्चुअल शिखर सम्मेलन है. यही वजह है कि श्रीलंका में होने वाला यह शिखर सम्मेलन खास है.
पड़ोसी चीन के साथ गहराते तनावपूर्ण रिश्तों के बीच एक अन्य पड़ोसी श्रीलंका के साथ रिश्तों को एक नई गति और मजबूती देने की मंशा से प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी और श्रीलंका के प्रधानमंत्नी महिंदा राजपक्षे के बीच 26 सितंबर को अहम वर्चुअल शिखर बैठक होने वाली है.
‘नेबरहुड फस्र्ट नीति’ को लेकर सवालों में घिरी मोदी सरकार का किसी पड़ोसी देश के साथ यह पहला वर्चुअल शिखर सम्मेलन है.
यह बैठक निश्चित तौर पर ऐसे समय हो रहा है जब कि श्रीलंका में पिछले माह हुए संसदीय चुनाव में भारी बहुमत से महिंदा सत्ता में आए और उनके भाई गोटाबाया राजपक्षे पिछले वर्ष नवंबर से ही देश के राष्ट्रपति हैं, यानी सत्ता पर राजपक्षे परिवार की भारी पकड़ बनी है.
अहम बात यह है कि कोविड, गहन आर्थिक संकट और विषम घरेलू समस्याओं से निपटने की चुनौती से जूझ रही राजपक्षे भाइयों की सरकार, भारत और चीन जैसे दो शक्तिशाली पड़ोसियों के साथ रिश्तों में संतुलन बनाए रखने का प्रयास कर रही है, जिससे संतुलन बनाए रखते हुए विकास कार्यक्र मों में उन दोनों की साझीदारी का लाभ उसे मिलता रहे. लेकिन निश्चित तौर पर संतुलन के पलड़े बराबर नहीं हैं.
एक तरफ ‘भरोसेमंद मित्न भारत’ के साथ श्रीलंका के द्विपक्षीय सहयोग के प्रगाढ़ मैत्नीपूर्ण संबंधों के साथ-साथ गहरे सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक रिश्ते हैं, तो दूसरी तरफ चीन है, जहां दोनों देशों की सरकारों या सत्तारूढ़ दल के बीच किसी प्रकार का कोई सैद्धांतिक तालमेल नहीं है, न ही कोई सांस्कृतिक या सामाजिक निकटता है. लेकिन हकीकत यही है कि अपने देश की वास्तविक परिस्थितियों, आर्थिक, राजनयिक स्थिति के मद्देनजर श्रीलंका को चीन का मजबूरन सहारा लेना पड़ रहा है और चीन विकास कार्यक्र मों के नाम पर आर्थिक गतिविधियों के जरिये वहां अपना दबदबा बना रहा है.
पिछली बार भी राष्ट्रपति चुनाव में गोटबाया राजपक्षे के विजयी होने के बाद उनके चीन के प्रति झुकाव के चलते भारत के लिए चिंता की स्थिति बनी थी. इसी वजह से विदेश मंत्नी डॉ. जयशंकर नई सरकार बनते ही श्रीलंका दौरे पर गए थे और श्रीलंका के साथ रिश्ते और प्रगाढ़ बनाने की भारत की प्रतिबद्धता दोहराई थी.
हालांकि पिछली सरकार के कार्यकाल में चीन के प्रति झुकाव और अनेक बड़ी आधारभूत परियोजनाएं चीन के खाते में जाने के बावजूद भारत-श्रीलंका संबंधों में इधर अनुकूलता की उम्मीद नजर आ रही है. 26 सितंबर को होने वाली बैठक को लेकर दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने भी कहा है कि वे इस बैठक को लेकर उत्सुक हैं जिसमें उभय पक्षीय संबंधों की वे दोनों साथ मिलकर व्यापक रूप से समीक्षा कर सकेंगे.
प्रधानमंत्नी मोदी ने कहा कि दोनों देशों को कोविड के बाद के दौर में आपसी सहयोग बढ़ाने के लिए तरीके खोजने होंगे.
उम्मीद की जा रही है कि इस बैठक में आतंकवाद से निपटने के लिए घनिष्ठ सहयोग, रक्षा और कारोबारी संबंधों को मजबूत बनाने और श्रीलंका में भारत की विकास परियोजनाओं के क्रियान्वयन पर चर्चा के साथ लंबे समय से लंबित तमिल मुद्दे पर भी चर्चा हो सकती है.
इस शिखर बैठक में कोलंबो बंदरगाह पर भारत, जापान और श्रीलंका के बीच विवादास्पद ईस्ट कन्टेनर टर्मिनल (ईसीटी) परियोजना पर भी आगे व्यापक चर्चा होने की उम्मीद है.
पिछले साल भारत, जापान और श्रीलंका ईसीटी पर आगे विचार करने वाले थे, लेकिन चुनाव से ऐन पहले गोटबाया ने कहा कि इस प्रोजेक्ट पर फिर विचार किया जाएगा. इस परियोजना को पूर्ववर्ती सिरीसेना सरकार ने मंजूरी दी थी.
स्वाभाविक ही था कि भारत और जापान इस घोषणा से अनमने हुए. माना जाता है कि चीन के दबाव में राजपक्षे ने इस प्रोजेक्ट को रोक दिया था. इसके तहत 70 करोड़ डॉलर के ईसीटी का मालिकाना हक श्रीलंका के पास ही रहता.
इसमें जापान की हिस्सेदारी 51 जबकि भारत की 49 फीसदी थी. हालांकि इसका शत-प्रतिशत स्वामित्व श्रीलंका पोर्ट अथॉरिटी का होने वाला था लेकिन वहां की अनेक यूनियनों और कुछ विपक्षी दलों ने इस परियोजना को भारत को दिए जाने का विरोध किया और ऐसे में राजपक्षे का यह बयान आया.
इस सबके बीच यह भी वास्तविकता है कि श्रीलंका में भारत की निवेश संबंधी अनेक परियोजनाएं अनिश्चितता में हैं, लेकिन निश्चित तौर पर श्रीलंका की खस्ता माली हालत उसके लिए भारत से सहयोग बढ़ाने के लिए सहयोग के नए अवसर बनाने का मौका भी बन सकती है. उम्मीद है, इस बैठक में इस परियोजना के बारे में भी सहमति के बिंदुओं तक बात पहुंचेगी.
दरअसल, श्रीलंका सहित इस क्षेत्न के देश भलीभांति जानते हैं कि वे आर्थिक सहायता और ऋण जंजाल के चक्र में चीन के विस्तारवादी एजेंडे में फंस सकते हैं, इसीलिए वे सतर्कता से आगे बढ़ रहे हैं. भारत श्रीलंका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है.
उसकी अनेक विकास योजनाओं, विशेष तौर पर आधारभूत परियोजनाओं में सहयोग देता रहा है. अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कुल मिलाकर लगभग सभी प्रमुख मुद्दों पर दोनों में सहमति रही है. असहमति के कुछ बिंदुओं को छोड़ कर कुल मिलाकर रिश्ते अनुकूल ही कहे जा सकते हैं.
यहां यह जानना दिलचस्प है कि महिंदा राजपक्षे ने अपनी श्रीलंका पोडुजना पेरामुना पार्टी के भारी बहुमत से विजयी होने पर प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी के बधाई संदेश के जवाब में भारत को श्रीलंका का ‘मित्न और संबंधी’ बताया यानी मित्नता से कहीं आगे का रिश्ता.
उम्मीद की जानी चाहिए कि राजपक्षे भाइयों की नई पारी वाली सरकार चीन के चश्मे से हट कर भारत के साथ रिश्तों को एक नई सोच से नए कलेवर में सकारात्मक ढंग से गति देगी और यह शिखर बैठक आपसी सहमति बढ़ने की दिशा में एक अहम कदम बनेगी.