रहीस सिंह का ब्लॉग: दुनिया की दिशा बदल सकता है रूस-यूक्रेन युद्ध

By रहीस सिंह | Published: September 24, 2022 09:43 AM2022-09-24T09:43:01+5:302022-09-24T09:44:57+5:30

अभी रूस और यूक्रेन के जरिये पूर्वी यूरोप, दक्षिणी काॅकेशस और यूरेशिया के भू-क्षेत्र पर नियंत्रण के लिए लड़ाई लड़ी जा रही है। लेकिन यह यहीं तक सीमित नहीं रहनी है। इसका विस्तार मिडिल ईस्ट से लेकर एशिया-प्रशांत तक होना है।

Russia-Ukraine war may change the direction of the world | रहीस सिंह का ब्लॉग: दुनिया की दिशा बदल सकता है रूस-यूक्रेन युद्ध

रहीस सिंह का ब्लॉग: दुनिया की दिशा बदल सकता है रूस-यूक्रेन युद्ध

Highlightsपरिणामों पर नजर टिकाए दुनिया उस पक्ष को भूल गई है जिसमें असंख्य शरणार्थी जिंदगियों को ढोते हुए इधर-उधर भटक रहे हैं।सच तो यह है कि युद्ध कभी प्रासंगिक थे ही नहीं, लेकिन फिर भी हुए न।

रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुए सात महीने हो रहे हैं लेकिन यह समाप्त होने की बजाय अब नये मोड़ लेता हुआ दिख रहा है। पिछले कुछ दिनों से यूक्रेन से आ रही नकारात्मक खबरों के बाद पुतिन ने यूक्रेन में सैनिकों की तैनाती बढ़ाने का निर्णय लिया है। पुतिन यूक्रेन में लगभग तीन लाख रिजर्व सैनिक भेजने जा रहे हैं। बात यहीं तक सीमित नहीं है। चर्चा तो अब परमाणु हथियारों के प्रयोग तक पहुंच गई हैं। 

पुतिन इसकी पृष्ठभूमि में विशेषकर नाटो देशों द्वारा न्यूक्लियर ब्लैकमेल के आरोपों को मुख्य कारण बनाना चाहते हैं और इसके जवाब में वे देश की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने की बात कर रहे हैं। यह हद संभवतः एटमी हथियारों के इस्तेमाल तक भी विस्तृत हो सकती है। लेकिन क्या पुतिन ऐसा वास्तव में करेंगे? क्या इस तरह की हदें दुनिया के लिहाज से ठीक होंगी? 

सबसे बड़ी बात यह है कि यदि ऐसा हुआ तो फिर इसके लिए जिम्मेदार कौन होगा-अकेले रूस या फिर अमेरिका सहित पश्चिमी दुनिया के वे देश भी जो डायलॉग डिप्लोमेसी की बजाय अन्य उपायों पर कार्य कर रहे थे, जिनका एक उद्देश्य युद्ध या युद्ध को भड़काना भी हो सकता है? दरअसल, पुतिन रिजर्व सेना के मोबिलाइजेशन को तेज कर डोनबास सहित खेरसान और जपेरीजिया आदि को अपने नियंत्रण में लाने की कोशिश करना चाहते हैं। 

यह भी संभव है कि इसके बाद वे दोनोत्स्क, लुहांस्क, खेरसान और जपेरीजिया में जनमत संग्रह कराने जैसी कोशिश भी करें। हो सकता है कि इसमें पुतिन को सफलता भी मिल जाए क्योंकि इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में रूसियों की संख्या ज्यादा है। लेकिन क्या यह इतना आसान होगा? क्या अमेरिका और पश्चिमी देश संयुक्त रूप से रूस के खिलाफ युद्ध जैसे विकल्प पर आगे बढ़ने का साहस दिखाएंगे? 

यदि हां, तो फिर दुनिया एक विश्वयुद्ध और देखेगी और यदि नहीं तो फिर दुनिया का सामना एक नए शीतयुद्ध से होगा। पिछले दिनों यूक्रेन की तरफ से कहा गया था कि लड़ाई अब ‘फियरफुल क्लाइमेक्स’ (डरावने अंत) में प्रवेश कर गई है लेकिन सच यह है कि लड़ाई अभी इस बिंदु तक नहीं पहुंच पाई है। इसमें विनाश के बहुत से धुंधले पक्ष हैं, इसलिए इस निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी। 

24 फरवरी 2022 से अब तक जो भी कुछ हुआ, वह ध्वंस की उन विभाजक रेखाओं तक नहीं पहुंचा है जिनके पुराने चिन्हों को इतिहास संजोए हुए है। लेकिन अभी विराम का समय भी आया हुआ नहीं दिख रहा है। दिखेगा भी नहीं। कारण यह कि यह युद्ध उस तरह की सरल रेखा का हिस्सा भी नहीं है जितना कि दिखाने की कोशिश की जा रही है।

दुनिया के हित में हो न हो, पर यह कम से कम अमेरिका और रूस के लिए शक्ति परीक्षण का समय है जिसमें चीन भी एक निर्णायक भूमिका में है। पुतिन इस शक्ति परीक्षण में प्रत्येक स्थिति में सफल होना चाहते हैं और जो बाइडेन अमेरिका की साख बचाना चाहते हैं। इसलिए कभी वे रक्षात्मक, कभी आक्रामक और कभी रीसेट डिप्लोमेसी का सहारा लेते हुए दिख रहे हैं जो यह बता रहा है कि अमेरिका इस समय दिशाहीनता का शिकार है। 

अभी रूस और यूक्रेन के जरिये पूर्वी यूरोप, दक्षिणी काॅकेशस और यूरेशिया के भू-क्षेत्र पर नियंत्रण के लिए लड़ाई लड़ी जा रही है। लेकिन यह यहीं तक सीमित नहीं रहनी है। इसका विस्तार मिडिल ईस्ट से लेकर एशिया-प्रशांत तक होना है। इसलिए हम कुछ स्केल्स पर यह मान सकते हैं कि यूक्रेन की जमीन पर भावी युद्धों अथवा रणनीतियों की पटकथा लिखी जा रही है। 

यही कारण है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के परिणाम दुनिया की दिशा तय करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो गए हैं। परिणामों पर नजर टिकाए दुनिया उस पक्ष को भूल गई है जिसमें असंख्य शरणार्थी जिंदगियों को ढोते हुए इधर-उधर भटक रहे हैं। इस संवेदनशील और पराश्रित मानवपूंजी में निरंतर संचयी वृद्धि हो रही है जिसके लिए युद्ध के साथ-साथ खाद्य संकट, जलवायु सुरक्षा सहित बहुत से आंतरिक कारण जिम्मेदार रहे हैं। 

इसे लेकर यूएनएचसीआर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का आह्वान कर रहा है कि सभी एक साथ मिलकर मानव त्रासदी से निपटने और हिंसक टकरावों को सुलझाने के स्थायी समाधान ढूंढ़ें, लेकिन ऐसा तो हो नहीं रहा है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समरकंद में पुतिन से स्पष्ट रूप से कहा कि यह युग युद्ध का नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को ‘ट्रिपल डी’ और ‘ट्रिपल एफ’ का मंत्र भी दिया। 

उनका कहना था कि आज का युग युद्ध का नहीं बल्कि ‘ट्रिपल डी’ यानी डेमोक्रेसी, डिप्लोमेसी और डायलॉग का है। ये तीनों फैक्टर ऐसे हैं जो युद्ध की विभीषिका से दुनिया को बचा सकते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या इस थ्योरी पर सभी चलना चाहते हैं? यह सवाल केवल व्लादिमीर पुतिन से ही नहीं है बल्कि दुनिया के उन सभी देशों से है जो किसी न किसी बहाने एक युद्ध अथवा युद्ध की रणनीति पर चलते रहते हैं। 

सच तो यह है कि युद्ध कभी प्रासंगिक थे ही नहीं, लेकिन फिर भी हुए न। पूरा इतिहास युद्ध की विभीषिका की कहानी हमें बार-बार बताता रहा है लेकिन विस्तारवाद की भूख ने महाशक्तियों को समय-समय पर युद्धों के लिए प्रेरित किया है। यही सच है। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि आज सैनिक युद्धों की बजाय ‘3 एफ’ यानी फूड सिक्योरिटी, फ्यूल सिक्योरिटी और फर्टिलाइजर की सुरक्षा के लिए युद्ध लड़ने की जरूरत है। बात तो सही है। सही न होती तो महासभा में पश्चिमी दुनिया मोदीमय होती हुई न दिखती। 

लेकिन क्या पश्चिमी देश इसका अनुपालन भी करेंगे या फिर सिर्फ रूस को घेरने के लिए दिखावा कर रहे थे? उनका उद्देश्य वास्तव में भारत को संयुक्त राष्ट्र महासभा में हीरो बनाना था अथवा वे इसके जरिये पुतिन को नीचा दिखा रहे थे। यह भी संभव है कि वे इसके जरिये भारत-रूस संबंधो में फासले निर्मित करना चाहते हों क्योंकि अमेरिका सहित पश्चिमी दुनिया के कई देश यह चाहते हैं कि भारत रूस पर अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों पर अमल करे।

Web Title: Russia-Ukraine war may change the direction of the world

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