राजेश बादल का ब्लॉग: फौज के पहले ही दांव में उलझ गए इमरान खान

By राजेश बादल | Published: September 25, 2018 05:10 AM2018-09-25T05:10:41+5:302018-09-25T05:10:41+5:30

इन दिनों पाकिस्तान में तीन तरह की प्राथमिकताएं गड्डमड्ड हो गई हैं।  एक देश की, दूसरी इमरान की और तीसरी फौज की अपनी प्राथमिकता।  सारी दुनिया इन दिनों इस देश की जर्जर वित्तीय हालत के बारे में जानती है। 

Rajesh Badal's blog: Imran Khan, who got entangled in the battle before the army | राजेश बादल का ब्लॉग: फौज के पहले ही दांव में उलझ गए इमरान खान

राजेश बादल का ब्लॉग: फौज के पहले ही दांव में उलझ गए इमरान खान

वही हुआ, जिसका डर था। फौजी शतरंज पर इमरान खान की स्थिति अब एक प्यादे से अधिक नहीं दिखाई दे रही है।  पाकिस्तान की सेना ने 1947 के बाद अनेक नए नेताओं को सत्ता में आने का अवसर दिया और फिर वे राजनेता फौज के गले की हड्डी बन गए।

इमरान के मामले में सेना ने इस बार बेहद सतर्क और सुरक्षित दांव खेला।  पाकिस्तानी प्रधानमंत्री कितनी ही कसमें खा लें कि उनकी ताजपोशी के पीछे सेना का हाथ नहीं है, कोई उन पर यकीन करने वाला नहीं है।  

खुद उनके अपने देश के लोग नहीं।  मुल्क की अवाम जम्हूरियत की जिस ताजी हवा के झोंंके की आस लगाए बैठी थी, वह दो महीने में ही टूटती नजर आ रही है।  

दरअसल, इन दिनों पाकिस्तान में तीन तरह की प्राथमिकताएं गड्डमड्ड हो गई हैं।  एक देश की, दूसरी इमरान की और तीसरी फौज की अपनी प्राथमिकता।  सारी दुनिया इन दिनों इस देश की जर्जर वित्तीय हालत के बारे में जानती है। 

 स्वयं इमरान अपनी चुनावी रैलियों में सबसे पहले खाली खजाने को भरने की बात कहते रहे हैं।  लेकिन गद्दी संभालते ही चीन से 100 अरब डॉलर का ऋण मिला तो सारी चिंता काफूर हो गई।  वे अब कर्ज लेकर घी पीने की पुरानी आदत के शिकार हो चुके हैं। 

 उम्मीद तो यह थी कि वे भारत से दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए खुले कारोबार का प्रस्ताव रखते।  इससे महंगाई कम होती और अवाम को मानसिक राहत मिलती।  हिंदुस्तान भी कुछ आयात करता तो भारतीय पैसे से उनका कुछ भला होता।  

कश्मीर में आतंकवाद को संरक्षण देने की नीति रोकते और बातचीत का मंच तैयार करते।  बजाय इसके उन्होंने पहले ही संबोधन में भारत की उपेक्षा की।  चीन से कर्ज को वे मदद मानते हैं।  उसकी तारीफ के पुल बांधे और कश्मीर में हिंसक वारदातें अचानक तेज हो गर्इं।  

जिस प्रधानमंत्री को एक आधुनिक सोच वाला माना जा रहा था, वह अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों की तरह कट्टरपंथियों और फौज की नीतियों का अनुसरण करता दिखाई दे रहा है।  क्या इमरान हकीकत समझ रहे हैं ? रविवार को पाकिस्तान ने कहा कि वे कभी भी जंग के लिए तैयार हैं।  

मगर उनके देश के जानकार ही कह रहे हैं कि युद्ध छिड़ गया तो पाकिस्तान चार दिन भी नहीं खींच पाएगा।  उसे घुटने टेकने पड़ेंगे।  मुल्क की प्राथमिकता तो यही कहती थी कि इमरान को सबसे पहले भारत आना चाहिए था।  चीन की गोद में तो वह पहले से ही बैठा है।  

भारत आते तो बहुत कुछ सौगात उनको मिल जाती।  उन्होंने ऐसा नहीं किया और अपनी प्राथमिकता को तरजीह दी कि फिलहाल फौज से बिगाड़ न किया जाए। 

इमरान पहली विदेश यात्रा में सऊदी अरब गए।  बताने की जरूरत नहीं कि वे चीन का संदेश लेकर गए थे कि सऊदी चीन-पाक आर्थिक गलियारे का भागीदार बने।  सऊदी ने कोई ठोस भरोसा नहीं दिया।  

भारत से संबंध बिगाड़ने से पहले उसे भी दस बार सोचना होगा।  अलबत्ता दस करोड़ डॉलर के निवेश पर विचार का झुनझुना पकड़ा दिया।  यह सच है कि कश्मीर के मामले में उन्होंने भारत से बातचीत का प्रस्ताव रखा।  यह फौज को परेशानी में डालनने वाला था।

इसलिए उधर से प्रस्ताव आया, हिंदुस्तान ने बड़प्पन दिखाते हुए उसे मंजूर किया और चंद घंटों बाद ही एक जवान और तीन कश्मीरी पुलिस कर्मियों की हत्या हो गई।  

इसके बाद तो हमारे सेनाध्यक्ष का बयान बनता ही था।  पद संभालते ही अपने हवाई बयानों से उड़ रहे इमरान के पर कतरने के लिए उन्हें पाकिस्तानी फौज ने आईना भी दिखा दिया है।  नवाज शरीफ और उनके बेटी-दामाद जमानत पर रिहा हो गए।  

एक तीर से दो निशाने। याने इमरान को साफ संदेश कि नवाज को जेल में डालने की वजह उन्हें सत्ता में लाना था।  इसीलिए उन्हें सुनवाई से पहले ही सजा सुना दी गई थी।  सेना का संदेश साफ है कि अगर वो इमरान को सत्ता में लाने के लिए नवाज को जेल में डाल सकती है तो उन्हें हटाने के लिए नवाज को रिहा भी करा सकती है। 

 गौर करिए नवाज के भाई शाहबाज ने भारत के खिलाफ बड़ा तीखा बयान दिया है। अर्थात शाहबाज शरीफ अब वही भाषा बोल रहे हैं, जो सेना चाहती है।  वे चतुर व्यापारी हैं और सीधे-सीधे हिंदुस्तान के विरोध में कुछ बोलने से बचते रहे हैं। 
 नवाज शरीफ पर भी हिंदुस्तान से अच्छे रिश्तों की इच्छा रखने का आरोप लगता रहा है। शाहबाज के फौजी अफसरों से संबंध मधुर रहे हैं।  उनका यह बयान फौज के इशारे पर दिया माना जा रहा है।   इससे इमरान के कान खड़े हो जाने चाहिए।  

कार और भैंस नीलाम करके वो सस्ती लोकप्रियता बटोरना चाह रहे हैं।  बेशक दो चार सौ करोड़ रु पए पाकिस्तान के खजाने में जमा हो जाएंगे।  देश की हालत सुधारने के सपने दिन में देखने के लिए इमरान आजाद हैं।  मगर उन्हें अपनी प्राथमिकताओं को मुल्क के साथ जोड़ने की आवश्यकता है।

  यह बात अब इमरान को समझनी होगी कि कश्मीर के मामले में आक्र ामक तेवर दिखाने का अर्थ अवाम से कट जाना है।  इस भ्रम को पालने का अब कोई अर्थ नहीं रहा कि वे भारत से लड़ाई करके कश्मीर को जीत सकते हैं। 

Web Title: Rajesh Badal's blog: Imran Khan, who got entangled in the battle before the army

विश्व से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे