राजेश बादल का ब्लॉग: चीन के चरित्न और चेहरे पर बदनुमा दाग

By राजेश बादल | Published: April 29, 2020 07:57 AM2020-04-29T07:57:19+5:302020-04-29T07:57:19+5:30

चीन इस मामले में प्रथम दृष्टय़ा जानबूझकर किए गए जुर्म का मुजरिम तो बन ही चुका है. उसे इस वायरस के रौद्र रूप की जानकारी काफी पहले से थी.

Rajesh Badal's blog: Chinese marks and bad face | राजेश बादल का ब्लॉग: चीन के चरित्न और चेहरे पर बदनुमा दाग

राजेश बादल का ब्लॉग: चीन के चरित्न और चेहरे पर बदनुमा दाग

चीन पर इन दिनों चौतरफा हमले हो रहे हैं. उसका चरित्न और चेहरा उजागर होने के बाद यह स्थिति बनी है. यूरोप के अनेक देश, संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और तीसरी दुनिया के अनेक मुल्क चीन के बर्ताव से दहक रहे हैं. कोरोना वायरस के लिए चीन जिम्मेदार है - शायद ही इसका उत्तर कभी मिल पाए. पर यह तय है कि समूचे विश्व को इस भयानक संत्नास का शिकार बनाने के लिए चीन को कभी माफ नहीं किया जाएगा. 

संसार में प्रचलित न्याय की अधिकतर प्रणालियां कहती हैं कि अनजाने में अथवा गैरइरादतन अपराध की सजा अपेक्षाकृत जानबूझकर किए गए अपराध से नरम होती है. चीन इस मामले में प्रथम दृष्टय़ा जानबूझकर किए गए जुर्म का मुजरिम तो बन ही चुका है. उसे इस वायरस के रौद्र रूप की जानकारी काफी पहले से थी. कम से कम छह महीने पूर्व यानी अक्तूबर के आसपास वहां की खुफिया रिपोर्टो में इसके संकेत मिल गए थे. उसने जानबूझकर इस जानकारी को छिपाने का षड्यंत्न किया.

दरअसल बिना वजह गोपनीयता बरतना चीन के चरित्न का स्थायी भाव है. लंबे समय तक बंद द्वार की नीति अपनाने के कारण ऐसा हुआ है. इस कारण चीन अपने ही नागरिकों के सामूहिक संहार का जिम्मेदार बन गया. वह कीड़ों की तरह उनका मारा जाना देखता रहा. न उसने शेष विश्व को सूचना दी, न दवाएं मांगी और न ही दुनिया को सतर्क किया. यह एक तरह से अपराध में शामिल होने जैसा ही है. उसके एक डॉक्टर ने सच बोलने का साहस किया तो उसे प्रताड़ित किया गया. अंतत: उसकी मौत हो गई. 

चीन भूल गया कि सच सिर चढ़कर बोलता है. सच्चाई सूरज की तरह है, जिसके आगे चादर तान देने से अंधेरा नहीं हो जाता. अब वह कितनी ही कोशिश कर ले, कोरोना से उसके दामन में लगा दाग किसी भी कूटनीतिक रसायन से दूर होने वाला नहीं है. चीन अपने आप को पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना कहता है. 

मगर यही जनवादी चीन अपने जन का घनघोर विरोधी है. साम्यवाद की अवधारणा बुनियादी तौर पर अपने नागरिकों के बुनियादी अधिकारों की रक्षा करने की है. उनके स्वर को मुखरित करने की है. लेकिन चीन साम्यवाद के नाम पर अवाम को सख्ती से कुचलने और उनके मानव अधिकारों के दमन का प्रतीक बन कर उभरा है. वह अपने लोगों के संहार का दोषी है. इस मायने में उसे एक अद्वितीय राष्ट्र माना जा सकता है.

अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी के लिए भी उसने यमदूतों को भेजने में कोई देरी नहीं की. सूचना छिपाने के अलावा उसने कोरोना संक्रमित राष्ट्रों को घटिया और नकली दवाएं भेजीं. उसकी कंपनियां बिना लाइसेंस यह उपकरण निर्यात करती रहीं और देश की जांच एजेंसियां खामोशी से देखती रहीं. अनेक देश चीन के कोरोना निरोधी उपकरण, परीक्षण करने वाली किट और दवाओं को कचरे के ढेर में फेंकने पर मजबूर हो गए. 

अफसोस तो यह है कि चीन ने यह कारोबारी खेल उन देशों के साथ खेला, जिनके साथ उसके मधुर संबंध हैं, जिन्होंने आड़े वक्त पर उसकी हरदम मदद की है या फिर उसकी कूटनीतिक तथा रणनीतिक महत्वाकांक्षाओं के हथियार बने हुए हैं. इसका अर्थ यह क्यों न लगाया जाए कि चीन की मंशा अन्य देशों में मौत का विकराल आकार बढ़ाने की थी. इससे वह अपने जुर्म पर सीधे-सीधे विश्व की निगरानी में आने से बचा रह सकता था. इसके अलावा अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, फ्रांस, कनाडा, इटली, टर्की, नीदरलैंड, स्पेन, चेकोस्लोवाकिया, भारत और नेपाल जैसे अनेक देशों को चीन ने घटिया सामान महंगे दामों पर प्रदान किया है. 

ईरान ने तो चीनी परीक्षण किट कचरे में फेंक दी. नेपाल तो चीन की गोद में ही बैठा था कि जबरदस्त झटका लगा. चंद रोज पहले चार्टर्ड विमान से नेपाल ने 6 लाख डॉलर की 75000 रैपिड टेस्ट किट खरीदी थी. चीन ने उसे एक करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक मूल्य पर ये किट दीं. ये नकली पाई गईं. नेपाल को मिले कुछ और उपकरण भी मानक के नहीं थे. मेडिकल गाउन एक साधारण गाउन निकला. इसके बाद सारे चीनी माल के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई. नेपाली  मीडिया में अब सरकार की थू-थू हो रही है. चीन ने कीमतें भी अनाप-शनाप वसूलीं. एक डॉलर का मास्क 7 डॉलर में, दस डॉलर की टेस्टिंग किट 38 डॉलर में, 25 डॉलर का इन्फ्रारेड थर्मामीटर 65 डॉलर में और 5 डॉलर का डिस्पोजेबल गाउन 16 डॉलर में खरीदा गया. 

नेपाल ने चीनी कंपनी को ब्लैकलिस्ट कर दिया. इसी तरह भारत के साथ भी चीन ने धोखा किया. भारत के स्वास्थ्य मंत्नालय को सौदा रद्द करना पड़ा. आईसीएमआर ने सारी परीक्षण किट वापस चीन को भेजने का फैसला किया है. यद्यपि इसमें भारत की भी एक गलती है. नियमों के मुताबिक भारत आपूर्ति से पहले चीन से तकनीकी प्रमाणपत्न मांगता है. इन प्रमाणपत्नों और माल का तीसरा पक्ष मूल्यांकन करता है. यह नहीं हुआ. अलबत्ता नीति आयोग ने सफाई दी कि ये घटिया परीक्षण किट चीन को किसी देश ने दान में दी थी. चीन ने उठाकर भारत को बेच दी. भारत में चीनी उत्पाद पहले ही उपहास का विषय थे. उनकी गारंटी तो कोई दुकानदार नहीं लेता.

यह सच है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को अमेरिका में ही एक बड़ी आबादी गंभीरता से नहीं लेती. लेकिन अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन की मदद रोकने और उस पर पक्षपात का आरोप लगाने जैसा बड़ा कदम वह उठाता है, तो यकीनन माना जाना चाहिए कि संगठन में सब कुछ ठीकठाक नहीं है. अमेरिकी अदालतों में अगर चीन के खिलाफ मुकदमे दर्ज होते हैं तो इसका मतलब कुछ गड़बड़ तो है. चीन ने कहीं कोरोना काल में अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का काम तो नहीं किया है? इसका फिलहाल तो नहीं, पर दूरगामी असर जरूर पड़ेगा. पर इससे क्या चीन कोई सबक लेगा? शायद नहीं!

Web Title: Rajesh Badal's blog: Chinese marks and bad face

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