राजेश बादल का ब्लॉग: महाभियोग के बाद अमेरिकी लोकतंत्र की साख

By राजेश बादल | Published: February 17, 2021 10:29 AM2021-02-17T10:29:32+5:302021-02-17T10:29:32+5:30

महाभियोग की प्रक्रिया के दौरान डोनाल्ड ट्रंप की करतूत का बचाव उनके ही दल ने अपनी भविष्य की राजनीति को देखते हुए किया। हालांकि, ये तय है कि जाने-अनजाने वे लोकतंत्र और अपने राष्ट्र को गंभीर क्षति पहुंचा चुके हैं।

Rajesh Badal blog: American Democracy effected by Donald Trump | राजेश बादल का ब्लॉग: महाभियोग के बाद अमेरिकी लोकतंत्र की साख

डोनाल्ड ट्रंप से अमेरिकी लोकतंत्र को मिला सबक! (फाइल फोटो)

Highlightsरिपब्लिकन पार्टी के कई सांसद डोनाल्ड ट्रंप के विरोध में थे फिर भी महाभियोग से बच निकले पूर्व राष्ट्रपतिरिपब्लिक पार्टी ने भले ही ट्रंप को बचा लिया लेकिन लोकतंत्र और अमेरिका के लिए ये गंभीर क्षतिरिपब्लिकन पार्टी अगर साहस दिखाती तो और महाभियोग को समर्थन देती तो विश्व इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता ये प्रसंग

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प एक बार फिर महाभियोग से साफ बच निकले. इसलिए नहीं कि कैपिटल हिल की हिंसा में उनका कोई हाथ नहीं था बल्कि इसलिए कि सीनेट में हुए मतदान में उनके खिलाफ दो-तिहाई मत नहीं पड़े. 

यह अलग बात है कि उनकी अपनी ही रिपब्लिकन पार्टी के कई सांसद खुलकर पूर्व राष्ट्रपति के विरोध में और महाभियोग के समर्थन में सामने आए और उन्होंने डोनाल्ड ट्रम्प को सार्वजनिक रूप से हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराया. डोनाल्ड ट्रम्प की पार्टी के चंद और सांसद यदि उनके विरोध में वोट डालते तो विश्व इतिहास में लोकतंत्र का एक नया अध्याय लिखा जाता. 

ऐसा हो सकता था, क्योंकि प्रस्ताव के विरोध में मतदान करने वाले रिपब्लिकन पार्टी के अनेक सदस्य इसके समर्थन में थे. लेकिन अगर वे ऐसा करते तो उनकी अपनी पार्टी के माथे राजनीतिक कलंक का स्थायी टीका लग जाता. आने वाले चुनाव में पार्टी की अपनी साख दांव पर लग जाती.

इसलिए दल की खातिर उन्हें उस झूठ का समर्थन करना पड़ा, जिसे अमेरिका का एक-एक मतदाता जानता था. कह सकते हैं कि डोनाल्ड ट्रम्प का इस बेहद गंभीर आरोप से बरी होना अमेरिकी लोकतंत्र की एक ऐसी फांस है, जो लंबे समय तक पूरे मुल्क को चुभती रहेगी. 

अमेरिका से सबक: हर लोकतंत्र के लिए अपने नाताओं पर निगरानी जरूरी

अब इस विशाल देश को अपने दो सौ बरस पुराने संविधान के अनेक प्रावधानों पर पुनर्विचार करना होगा. अगर महाभियोग को बहुमत का समर्थन था तो स्पष्ट था कि ट्रम्प लोकतंत्र के एक बड़े उपकरण के पैमाने पर खरे साबित नहीं हुए हैं. प्रसंग के तौर पर भारतीय लोकतंत्र की एक घटना का संदर्भ आवश्यक है, जब केवल एक मत से प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गई थी.  

दरअसल किसी भी जागरूक लोकतंत्र का तकाजा यही है कि वह जिन राजनेताओं को हुकूमत करने का अवसर दे, उन पर कड़ी निगरानी भी रखे ताकि देश की देह में तानाशाही का घुन नहीं लगे. यह एक आदर्श स्थिति मानी जा सकती है. 

विडंबना है कि इन दिनों समूचे विश्व पर अधिनायकवादी घुड़सवार चढ़ाई करते दिखाई दे रहे हैं. इसलिए भले ही ट्रम्प की करतूत पर उनके ही दल के सांसदों ने खिलाफ होते हुए भी बचा लिया हो, पर वे जाने-अनजाने लोकतंत्र और अपने राष्ट्र को गंभीर क्षति पहुंचा चुके हैं. इसका अफसोस उन्हें हमेशा रहना चाहिए. 

यह इतिहास के पन्नों में लिखा जाएगा कि लोकतंत्र पर संकट की घड़ी में वे दल के साथ खड़े हुए, देश के साथ नहीं. आने वाले दिनों में अमेरिका को इसका खामियाजा भुगतना ही होगा. डोनाल्ड ट्रम्प तो इससे क्या सबक लेंगे. 

अमेरिकी लोकतंत्र की परिपक्वता को खारिज नहीं कर सकते

अलबत्ता उनकी पार्टी यदि इस अवसर पर नैतिक साहस दिखाती और महाभियोग को समर्थन देती तो विश्व इतिहास में यह प्रसंग स्वर्ण अक्षरों में लिखा जा सकता था. लेकिन इसी आधार पर अमेरिकी लोकतंत्र की परिपक्वता को खारिज नहीं किया जा सकता. असहमति के अधिकार का वहां सम्मान होता है और किसी तरह का व्हिप जारी करके व्यक्तिगत मान्यताओं को क्षति पहुंचाने का काम नहीं किया जाता. 

अंतरात्मा की आवाज का आदर भी इस व्यवस्था का अनिवार्य अंग है. डोनाल्ड ट्रम्प से असहमत उनके दल के सदस्य खिलाफ वोट करने के बाद पिछले दरवाजे से चुपचाप नहीं निकल गए. उन्होंने बाकायदा सार्वजनिक तौर पर ट्रम्प के बच निकलने पर दु:ख प्रकट किया. 

वरिष्ठ सीनेटर मिच मैककोनेल ने इस प्रक्रिया पर अपनी टिप्पणी में कहा, ‘मेरा अडिग मानना है कि ट्रम्प ने अपना संवैधानिक दायित्व निभाने के बजाय संसद में हथियारों के साथ हिंसा के लिए अपने समर्थकों को उकसाया था. वे इसके अपराधी हैं. लेकिन हमारे हाथ बंधे हुए थे. हमारे पास इतनी ताकत नहीं थी कि राष्ट्रपति के पद पर बैठकर की गई करतूतों के लिए ट्रम्प को अयोग्य ठहरा सकते.’

व्हिप की मजबूरी! भारत में क्या ऐसा संभव है

तनिक सोचिए. क्या भारत में यह संभव है? भारतीय लोकतंत्र के हितैषियों के बीच यकीनन यह चर्चा का विषय होना चाहिए कि किसी दागदार नेता का दल के समर्थन से बेदाग बरी होना कितना जायज  है. यही नहीं, व्हिप की आड़ में उसके खिलाफ मतदान करने वालों पर कार्रवाई की तलवार भी चल सकती है. 

किसी भी सूरत में यह उचित नहीं माना जा सकता. एक तरह से लोकतंत्र की डाल को अपने हाथों तोड़ने जैसा है और सियासी पार्टी को अधिनायक की तरह व्यवहार करने का अवसर देता है. क्या भारतीय मतदाता और नियंता अमेरिका की इस घटना से कोई सबक लेंगे?

दूसरी ओर इसे स्वीकार करने में भी हिचक नहीं होनी चाहिए कि जनतांत्रिक प्रणाली में जिसके साथ बहुमत है, उसे दंडित नहीं किया जाए. यदि अमेरिकी डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य ट्रम्प के खिलाफ दो-तिहाई बहुमत नहीं जुटा सके तो संदेश है कि पूर्व राष्ट्रपति के व्यवहार को राजनेताओं का एक वर्ग सही तथा उचित मानता है. 

उचित और अनुचित के बीच की सीमा रेखा कई बार धुंधली हो जाती है. इस स्थिति में कभी निदरेष भी दंड का भागी बन सकता है और दोषी भी आरोप से मुक्त हो सकता है. 

ऐसे में न्याय का यह सिद्धांत संतुलित माना जा सकता है कि सौ दोषी भले छूट जाएं मगर एक निर्दोष को प्रताड़ना नहीं मिलनी चाहिए. यही लोकतांत्रिक मर्यादा है. इस मर्यादा की आड़ लेकर डोनाल्ड ट्रम्प जैसे शातिर कारोबारी बच न सकें, यह व्यवस्था भी अमेरिका के सभी जम्हूरियत पसंद लोगों को बनानी होगी.

Web Title: Rajesh Badal blog: American Democracy effected by Donald Trump

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