रहीस सिंह का ब्लॉग: ताइवानी जनता ने दिया चीन को संदेश

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 17, 2020 01:51 PM2020-01-17T13:51:32+5:302020-01-17T13:51:32+5:30

सई इंग वेन चीन और ताइवान के बीच मौजूदा स्थिति का समर्थन करती हैं और चीन से करीबी रिश्ते नहीं चाहतीं, जबकि कुओमिनतांग पार्टी के प्रत्याशी खान ग्वो यी चीन से नजदीकी के पक्षधर हैं.

Rahis Singh's blog: Taiwanese public gave message to China | रहीस सिंह का ब्लॉग: ताइवानी जनता ने दिया चीन को संदेश

रहीस सिंह का ब्लॉग: ताइवानी जनता ने दिया चीन को संदेश

Highlightsताइवान में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव में लोगों ने सई इंग वेन को विजयी बनाया है राष्ट्रपति सई इंग वेन दूसरा कार्यकाल पाने के लिए चुनाव लड़ रही थीं

ताइवान में शनिवार को राष्ट्रपति पद के लिए संपन्न हुए चुनाव में ताइवान के लोगों ने न केवल सई इंग वेन को विजयी बनाया है बल्कि ताइवान और चीन के संबंधों के लिए एक निर्णायक मैंडेट भी दिया है. उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति सई इंग वेन दूसरा कार्यकाल पाने के लिए चुनाव लड़ रही थीं और उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी खान ग्वो यी थे.

इन दोनों प्रमुख प्रत्याशियों का चीन-ताइवान संबंधों को लेकर नजरिया भिन्न है. सई इंग वेन चीन और ताइवान के बीच मौजूदा स्थिति का समर्थन करती हैं और चीन से करीबी रिश्ते नहीं चाहतीं, जबकि कुओमिनतांग पार्टी के प्रत्याशी खान ग्वो यी चीन से नजदीकी के पक्षधर हैं.

इसलिए ऐसा लग रहा था कि विशेषकर हांगकांग में लोकतंत्रवादियों के आंदोलन को देखते हुए चीन की रणनीति होगी कि वह ताइवान में सई इंग वेन को विजयी होने से प्रत्येक स्थिति में रोके. इस चुनाव से पहले ऐसे संकेत भी मिल रहे थे, क्योंकि दो वर्ष पहले स्थानीय चुनाव में उनकी पार्टी की पराजय हो चुकी थी. लेकिन अब जो परिणाम आए हैं, वे अनुमान से अलग हैं.

अब जब सई इंग वेन दोबारा राष्ट्रपति पद के लिए चुनी जा चुकी हैं, तब सवाल यह उठता है कि क्या हांगकांग के लोकतांत्रिक आंदोलन ने ताइवान के लोगों में स्वतंत्रता और संप्रभुता को लेकर नई संवेदना उत्पन्न की है? क्या इस द्वीपीय देश के अंदर भी पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (चीन) के प्रति हांगकांग के लोगों जैसा ही नजरिया है या फिर वह उससे भी आगे बढ़कर कुछ है? एक सवाल यह भी है कि क्या सई इंग वेन की जीत चीन के लिए कोई नई चुनौती पेश करेगी या फिर चीन को और आक्रामक बनाएगी? अंतिम प्रश्न यह है कि क्या ताइवान को लेकर भारत फॉरवर्ड ट्रैक डिप्लोमेसी के साथ आगे बढ़ेगा या फिर चीन को देखते हुए फॉरवर्ड, रीसेट और रीबैलेंस की नीति के बीच साम्य स्थापित करेगा?

इस चुनाव में ताइवान में मुख्य मुकाबला डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी की सई इंग वेन और कुओमिनतांग पार्टी के खान ग्वो यी के बीच था. ये दोनों ही नेता चीन के साथ संबंधों को लेकर अलग-अलग दृष्टिकोण रखते हैं. ध्यान रहे कि सई इंग वेन ताइवान में मौजूदा व्यवस्था और तरीकों को बनाए रखने की पक्षधर हैं और वे ताइवान की स्वतंत्रता के साथ किसी भी तरह का समझौता नहीं करना चाहतीं. ध्यान रहे कि सई ने 2016 में मा इंग जो को हराया था, जिनकी कुओमिनतांग पार्टी चीन के साथ संबंध सुधारने की वकालत करती है. उस समय यह बात भी उछली थी कि यदि मा इंग जो जीतते हैं तो शायद ताइवान ‘चाइनीज ताइवान’ कहा जाने लगे लेकिन सई इंग वेन ऐसे किसी विकल्प को स्वीकार नहीं करतीं.

इसलिए सई की जीत स्पष्ट संदेश देती है कि ताइवान की बहुसंख्यक आबादी चीन से आजादी चाहती है. चूंकि पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना और रिपब्लिक ऑफ चाइना एक-दूसरे की संप्रभुता को नहीं मानते और चीन, ताइवान को हमेशा ऐसे प्रांत के रूप में देखता है जो उससे अलग हो गया है. इस स्थिति में चीन हर क्षण इस कोशिश में होता है कि ताइवान जल्द ही उसका हिस्सा बने जबकि ताइवान संप्रभुता स्थापित कर वैश्विक संस्थाओं में अपनी स्वतंत्र हैसियत चाहता है.  
चीन ‘वन कंट्री, टू सिस्टम’ की राजनीतिक व्यवस्था को मानता है. इस व्यवस्था के तहत रिपब्लिक ऑफ चाइना यानी ताइवान को संप्रभु राज्य के रूप में एग्जिस्ट ही नहीं करेगा. यही वजह है कि सई इंग वेन इस राजनीतिक व्यवस्था को पूरी तरह से खारिज करती हैं.

इतना तो स्पष्ट है कि चीन ताइवान को ‘वन कंट्री, टू सिस्टम’ के अंदर लाने की कोशिश करेगा. ऐसी स्थिति में ताइवान अपने आपको कैसे सुरक्षित रख पाएगा, यह विचार करने योग्य तथ्य है. यह भी स्पष्ट है कि ताइवान इतना ताकतवर नहीं है कि वह चीन का मुकाबला अकेले कर सके. ऐसे में उसे अमेरिका के सहयोग की जरूरत होगी. लेकिन क्या अमेरिका उसका साथ देगा? डोनाल्ड ट्रम्प के स्वभाव को देखें तो उत्तर हां और न दोनों में हो सकता है या फिर दोनों एक साथ एग्जिस्ट कर सकते हैं. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि जब ट्रम्प अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए विजयी हुए थे तो उन्होंने ताइवानी राष्ट्रपति सई इंग वेन से फोन पर बात की थी.

अमेरिका द्वारा पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के ‘वन कंट्री, टू सिस्टम’ को मान्यता देने के बाद से वे शायद ऐसे पहले राष्ट्रपति थे जिन्होंने ताइवानी राष्ट्रपति से बात की थी जिससे उस समय दुनिया को यह संदेश गया था कि अब अमेरिका 1979 की नीति में परिवर्तन करने जा रहा है. लेकिन बाद में वे पीछे हट गए थे. हालांकि कुछ समय पहले ही अमेरिकी विदेश मंत्रलय ने ताइवान को करीब सवा दो अरब अमेरिकी डॉलर के हथियार बेचने की मंजूरी दी थी. इसके बाद से चीन और अमेरिका के बीच ताइवान को लेकर तकरार बढ़ी है.

फिलहाल इस चुनाव में सई इंग वेन को 57 प्रतिशत से अधिक मत मिले हैं, जो यह दर्शाता है कि जनमत पूरी तरह से सई की चीन संबंधी नीतियों के साथ है. अब देखना यह है कि चीन ताइवानी जनता के इस मिजाज को किस तरह से देखना चाहता है.
 

Web Title: Rahis Singh's blog: Taiwanese public gave message to China

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