रहीस सिंह का ब्लॉगः भरोसे का मित्र साबित होगा अमेरिका?
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: September 11, 2018 06:55 PM2018-09-11T18:55:45+5:302018-09-11T18:55:45+5:30
‘टू प्लस टू’ वार्ता के दौरान भारत ने अमेरिका के साथ जिस कम्युनिकेशंस कॉम्पेटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए हैं, उससे भारत को अमेरिका से उच्च कोटि की प्रौद्योगिकी हासिल करने का अवसर प्राप्त होगा।
रहीस सिंह
भारत और अमेरिका के बीच दो बार निरस्त हो चुकी ‘2 प्लस 2’ वार्ता अंतत: संपन्न हुई, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज तथा रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण एवं अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो और रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस एक साथ बैठे। इस दौरान दोनों देशों के संबंधों तथा एक-दूसरे के हितों को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर बात हुई और कई दुविधाओं को तोड़ते हुए भारत ने अमेरिका के साथ कम्युनिकेशंस कॉम्पेटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट (कॉमकासा) पर हस्ताक्षर किए।
किसी समझौते पर हस्ताक्षर होते ही यह कह पाना मुश्किल होता है कि दोनों देशों के बीच ऐसी इबारत लिख दी गई है जिससे सिर्फ और सिर्फ लाभ होंगे या फिर उसके साथ कुछ चुनौतियां भी सामने आएंगी। फिर भी कुछ प्रश्न होते हैं जो भूतकाल से लेकर भविष्य तक डिप्लोमेटिक हाइवेज पर सिम्पल हार्मोनिक मोशन करते रहते हैं, जिनके समाधान ढूंढने जरूरी होते हैं। जैसे वे कौन सी वजहे थीं कि अमेरिका को दो बार ‘2 प्लस 2’ वार्ता निरस्त करनी पड़ी थी जबकि ‘2 प्लस 2’ वार्ता का सैद्धांतिक पक्ष कहता है कि वार्ता नियत समय पर होनी ही चाहिए। दूसरा प्रश्न यह कि क्या अमेरिका नाटो के निर्देशन और पाकिस्तान बगदाद पैक्ट की छाया से मुक्त हो चुका है, जो अमेरिका पाकिस्तान को छोड़ भारत की तरफ सही अर्थो में खिसकेगा? ईरान मसले पर भारत को दिए गए निर्देश क्या वास्तव में यह दर्शा पाने में समर्थ हैं कि अमेरिका भारत को बराबर की हैसियत प्रदान कर चुका है या करना चाह रहा है? नई दिल्ली-बीजिंग के बीच दूरी, नई दिल्ली-वॉशिंगटन के बीच की दूरी का पूरक बनेगी या फिर परस्पर विपरीत?
इसमें संशय नहीं कि ‘टू प्लस टू’ वार्ता के दौरान भारत ने अमेरिका के साथ जिस कम्युनिकेशंस कॉम्पेटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए हैं, उससे भारत को अमेरिका से उच्च कोटि की प्रौद्योगिकी हासिल करने का अवसर प्राप्त होगा। भारत को इसके तहत अति सुरक्षित कोड युक्त संचार प्रणाली हासिल हो सकेगी और दोनों देश सामरिक महत्व की गुप्त सूचनाएं भी साझा कर सकेंगे। यह प्रौद्योगिकी कम-से-कम उस दौर में सबसे महत्वपूर्ण हो जाती है जब चीन ने अपनी रक्षा-रणनीति की गोटियां हिंद महासागर में इस तरह से बिछा रखी हों कि भारत घिरा महसूस करे।
बहरहाल अमेरिकी निगाहें भारत के बाजार पर हैं और साथ ही वह पाकिस्तान को पिछलग्गू बनाए हुए भारत को मुहिम में साझीदार बनाना चाहता है। जहां तक कॉमकासा का संबंध है तो इसका सकारात्मक पक्ष अवश्य है कि यदि किसी भी समय किसी पायलट को कोई सूचना प्राप्त होती है जो वह हेडक्वार्टर तक पहुंचाना चाहता है जो अन्य माध्यमों से संभव न हो तो वह अमेरिकी ओरिजिन मिलिट्री प्लेटफार्म पर भेज कर इन्क्रिप्ट करा सकेगा और सूचना भी लीक नहीं होगी। लेकिन हम यह क्यों भूल जाते हैं कि ये सूचनाएं अमेरिका को तो प्राप्त हो ही जाएंगी जिनका प्रयोग वह दूसरी तरह से कर सकेगा। फिलहाल हमें ध्यान रखना होगा कि अमेरिका भले ही आज हमारा मित्र हो लेकिन वह भरोसे का मित्र किसी का नहीं रहा।
(लेखक वरिष्ठ साहित्याकार और स्तम्भकार हैं।)