आबादी बढ़ाने का ये भी एक नायाब तरीका?
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: November 27, 2025 14:07 IST2025-11-27T14:05:47+5:302025-11-27T14:07:52+5:30
अभी इजरायल ने भारत के मिजोरम और मणिपुर मे रहने वाली बेनी मेनाशे जनजाति के 5800 लोगों को इजराइल अपने यहां बसाएगा.

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दुनिया के कई देश कम आबादी या कम युवा आबादी की समस्या से जूझ रहे हैं क्योंकि उन देशों में प्रजनन दर में लगातार कमी आ रही है इसलिए बच्चा पैदा करने पर जोर दिया जा रहा है. मगर इजरायल की समस्या बिल्कुल अलग है. इजराइल में प्रजनन दर प्रति महिला 2.9 बच्चा है. यानी उसकी अबादी बढ़ रही है मगर उसे अपनी आबादी को और तेजी से बढ़ाना है इसलिए दुनिया में जहां भी यहूदी मूल के लोग हैं, उनकी तलाश चलती रहती है और उन्हें इजराइल में बसाया भी जा रहा है. अभी इजरायल ने भारत के मिजोरम और मणिपुर मे रहने वाली बेनी मेनाशे जनजाति के 5800 लोगों को इजराइल अपने यहां बसाएगा.
इससे पहले इसी जनजाति के 4000 लोग भारत से निकल कर इजराइल में बस चुके हैं. यह स्थानांतरण दोनों देशों के बीच एक करार के तहत हो रहा है और यहूदी मूल की जनजाति के लोग इजराइल जाना भी चाहते हैं. उनके साथ कोई जबर्दस्ती नहीं की जा रही है. हालांकि जिन लोगों को इजराइल में बसाया गया है या जिन्हें बसाया जाएगा, उनके लिए यह कोई आसान विस्थापन नहीं है.
बिल्कुल नए देश में जाना, वहां की भाषा सीखना और नए परिवेश में रहना वाकई मुश्किल काम है लेकिन धार्मिक जुड़ाव एक ऐसी चीज है जो आकर्षित करती है. काफी लंबे समय से यह मान्यता थी कि बेनी मेनाशे जनजाति के लोग यहूदी समुदाय के 10 गुम हुए जनजातियों में से एक हैं.
ये लोग बाइबिल के संदर्भ में खुद को मनश्शे कबीले का वंशज मानते हैं और सुकोट जैसे पारंपरिक यहूदी त्यौहार मनाते हैं. इन्हें अब अधिकृत रूप से खोए हुए यहूदी वंश का सदस्य मान लिया गया है. भारत से जिन लोगों को ले जाया जाएगा उन्हें इजराइल के गैलिली इलाके में बसाने की योजना है. यह इलाका हिजबुल्लाह के साथ लड़ाई के कारण काफी प्रभावित हुआ है और बहुत से लोग घर छोड़कर जा चुके हैं.
भारत से जाने वालों के लिए इस इलाके में घर बनाए जाएंगे, उनकी आजीविका की व्यवस्था की जाएगी. उन्हें हिब्रू भाषा सिखाने के लिए शिक्षक तैनात किए जाएंगे. सारी सुविधाएं होंगी लेकिन इस बात से कौन इनकार कर सकता है कि उन लोगों के सामने एक बिल्कुल नई दुनिया होगी. शायद उन चुनौतियों से बिल्कुल अलग जिनका सामना वे पूर्वोत्तर भारत की पहाड़ियों में कर रहे हैं.