वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग-श्रीलंका में राजनीतिक संकट
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: November 12, 2018 07:38 PM2018-11-12T19:38:47+5:302018-11-12T19:38:47+5:30
श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्नीपाल श्रीसेना का अधिनायकवाद इस समय आसमान छू रहा है.
(लेखक-वेदप्रताप वैदिक)
श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्नीपाल श्रीसेना का अधिनायकवाद इस समय आसमान छू रहा है. पहले उन्होंने प्रधानमंत्नी रनिल विक्रमसिंघे को अकारण ही बर्खास्त कर दिया और उनकी जगह अपने प्रतिद्वंद्वी और पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्नी घोषित कर दिया. नए प्रधानमंत्नी राजपक्षे को संसद में अपना बहुमत 14 नवंबर को सिद्ध करना था लेकिन 225 सदस्यों की संसद में वे मुश्किल से 106 सांसद ही जुटा पाए. ऐसी स्थिति में श्रीसेना ने संसद को ही भंग कर दिया. जनवरी 2019 में नई संसद के चुनाव होंगे.
संसद भंग करके वे यह समझ रहे हैं कि राजपक्षे और वे मिलकर प्रचंड बहुमत बना लेंगे. उन्हें यह आशा इसलिए है कि अभी-अभी हुए स्थानीय निकायों के चुनावों में राजपक्षे को काफी जन-समर्थन मिला है. यह ठीक है कि राजपक्षे ने राष्ट्रपति के रूप में श्रीलंका को तमिल उग्रवादियों से छुटकारा दिलवाया लेकिन उनके अपने मंत्नी श्रीसेना (जो अब राष्ट्रपति हैं) ने उनके तानाशाही रवैये का विरोध किया और नई पार्टी खड़ी करके उन्हें कोने में सरका दिया.
अब दोनों का दोबारा मेल हो गया है, क्योंकि दोनों चीनपरस्त हैं और दोनों भारत से दूरी बनाए रखना चाहते हैं. श्रीसेना ने गत माह आरोप लगाया था कि भारत की गुप्तचर सेवा उनकी हत्या करवाना चाह रही है. जबकि विक्रमसिंघे भारत के मित्न हैं. यदि रनिल लोकप्रिय नहीं होते तो उनका साथ देनेवाले पार्टियों के कई सांसद दल-बदल क्यों नहीं कर लेते?
यों भी श्रीसेना के साढ़े तीन साल के शासन में श्रीलंकाई रुपए की कीमत बहुत गिर गई, रोजगार घट गया और 400 करोड़ रु. की महत्वपूर्ण आवास-योजना अधर में लटक गई. जनवरी 2019 में चुनाव होंगे, यह भी अभी पता नहीं, क्योंकि संविधान की धारा 70 (1) के मुताबिक राष्ट्रपति साढ़े चार साल के पहले संसद को भंग नहीं कर सकते. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्न भारत से सटे हुए छोटे-से देश में लोकतंत्न का गला घुट रहा है, यह हमारे लिए भी चिंता का विषय होना चाहिए.