वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: संयुक्त राष्ट्र में तालिबान को लेकर आपत्ति

By वेद प्रताप वैदिक | Published: September 24, 2021 11:11 AM2021-09-24T11:11:59+5:302021-09-24T11:42:48+5:30

इसमें शक नहीं कि तालिबान पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ रहा है। उन्होंने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र पहले उन्हें मान्यता दे तो वे दुनिया की सलाह जरूर मानेंगे। संयुक्त राष्ट्र के सामने कानूनी दुविधा यह भी है कि वर्तमान तालिबान मंत्रिमंडल के 14 मंत्नी ऐसे हैं, जिन्हें उसने अपनी आतंकवादियों की काली सूची में डाल रखा है।

objection over Taliban on United nations | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: संयुक्त राष्ट्र में तालिबान को लेकर आपत्ति

यूनाइटेड नेशन

संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक अधिवेशन में इस बार अफगानिस्तान भाग नहीं ले पाएगा। अशरफ गनी सरकार ने कुछ हफ्ते पहले ही कोशिश की थी कि संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष का पद अफगानिस्तान को मिले लेकिन वह श्रीलंका को मिल गया। देखिए भाग्य का फेर कि अब अफगानिस्तान को महासभा में सादी कुर्सी भी नसीब नहीं होगी। इसके लिए तालिबान खुद जिम्मेदार हैं। यदि 15 अगस्त को काबुल में प्रवेश के बाद वे बाकायदा एक सर्वसमावेशी सरकार बना लेते तो संयुक्त राष्ट्र भी उनको मान लेता और अन्य राष्ट्र भी उनको मान्यता दे देते। 

इस बार तो उनके संरक्षक पाकिस्तान ने भी उनको अभी तक औपचारिक मान्यता नहीं दी है। किसी भी देश ने तालिबान के राजदूत को स्वीकार नहीं किया है। वे स्वीकार कैसे करते? खुद तालिबान किसी भी देश में अपना राजदूत नहीं भेज पाए हैं। संयुक्त राष्ट्र के 76 वें अधिवेशन में भाग लेने के लिए उन्होंने अपने प्रवक्ता सुहैल शाहीन की राजदूत के रूप में घोषणा की है।

जब काबुल की सरकार अभी तक अपने आपको ‘अंतरिम’ कह रही है और उसकी वैधता पर सभी राष्ट्र संतुष्ट नहीं हैं तो उसके भेजे हुए प्रतिनिधि को राजदूत मानने के लिए कौन तैयार होगा? सिर्फ पाकिस्तान और कतर कह रहे हैं कि शाहीन को संयुक्त राष्ट्र में बोलने दिया जाए। इमरान खान ने कहा है कि यदि तालिबान सर्वसमावेशी सरकार नहीं बनाएंगे तो इस बात की संभावना है कि अफगानिस्तान में गृह युद्ध हो जाएगा। 

अराजकता, आतंकवाद और हिंसा का माहौल मजबूत होगा। इसमें शक नहीं कि तालिबान पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ रहा है। उन्होंने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र पहले उन्हें मान्यता दे तो वे दुनिया की सलाह जरूर मानेंगे। संयुक्त राष्ट्र के सामने कानूनी दुविधा यह भी है कि वर्तमान तालिबान मंत्रिमंडल के 14 मंत्नी ऐसे हैं, जिन्हें उसने अपनी आतंकवादियों की काली सूची में डाल रखा है। संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंध समिति ने कुछ प्रमुख तालिबान नेताओं को विदेश-यात्ना की जो सुविधा दी है, वह सिर्फ अगले 90 दिन की है।

यदि इस बीच तालिबान का बर्ताव संतोषजनक रहा तो शायद यह प्रतिबंध उन पर से हट जाए। फिलहाल रूस, चीन और पाकिस्तान के विशेष राजदूत काबुल जाकर तालिबान तथा अन्य अफगान नेताओं से मिले हैं। यह उनके द्वारा तालिबान को उनकी मान्यता की शुरुआत है। वे हामिद करजई और डॉ. अब्दुल्ला से भी मिले हैं यानी वे काबुल में मिली-जुली सरकार बनवाने की कोशिश कर रहे हैं। भारत क्या कर रहा है? राष्ट्रहित की रक्षा करना क्या हमारे नेताओं का प्रथम कर्तव्य नहीं है?

Web Title: objection over Taliban on United nations

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