ब्लॉग: नासा का 'अर्टेमिस' मिशन, दुनिया में फिर से बढ़ने लगी चांद पर पहुंचने की चाहत
By अभिषेक कुमार सिंह | Published: November 17, 2022 08:08 AM2022-11-17T08:08:26+5:302022-11-17T08:08:26+5:30
चंद्रमा को लेकर पैदा हो रही नई होड़ का एक श्रेय भारत को दिया जा सकता है. भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने 22 अक्तूबर 2008 को अपना चंद्रयान-1 रवाना किया था. सितंबर 2009 में जब चंद्रयान-1 ने चंद्रमा पर पानी होने के सबूत दिए तो दुनिया में हलचल मच गई.
किसने सोचा था कि अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के अपोलो अभियानों की श्रृंखला एक बार खत्म होने के बाद इंसान दोबारा चंद्रमा पर जाने की पहल करेगा. खास तौर से चांद की बनावट और उसके वातावरण से जुड़े रहस्यों की थाह लेने के लिए ऐसी कोशिशें फिर कभी होंगी- बीते तीन दशकों में इसका ज्यादा अनुमान तक नहीं लगाया गया था. लेकिन चंद्रमा पर पहली बार इंसान के कदम पड़ने के पांच दशक बाद भारत-चीन के अलावा खुद नासा ने एक बार फिर चांद पर अपना मिशन भेजने की योजना का शुभारंभ कर दिया है.
इस सिलसिले में इस अंतरिक्ष एजेंसी ने चांद की ओर भेजे जाने वाले अब तक के अपने सबसे ताकतवर रॉकेट- स्पेस लॉन्च सिस्टम का बुधवार को सफल प्रक्षेपण कर दिया. हालांकि यह लॉन्च इसी साल पहले अगस्त और फिर सितंबर में होना था, लेकिन कई तकनीकी दिक्कतों के चलते इसका प्रक्षेपण टलता रहा.
यह प्रक्षेपण नासा के सबसे प्रतिष्ठित मिशन – अर्टेमिस का हिस्सा है, जिसका अंतिम लक्ष्य इंसान को दोबारा (वर्ष 2024 में) चंद्रमा की सतह पर उतारना है. योजना है कि 2024 में इस मिशन के तहत चंद्रमा पर पहली महिला और एक पुरुष अंतरिक्ष यात्री (एस्ट्रॉनॉट) को उतारा जाएगा.
चंद्रमा को लेकर पैदा हो रही नई होड़ का एक श्रेय भारत को दिया जा सकता है. भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने 22 अक्तूबर 2008 को जब अपना चंद्रयान-1 रवाना किया था तो सिवाय इसके उस मिशन से कोई उम्मीद नहीं थी कि यह मिशन अंतरिक्ष में भारत के बढ़ते कदमों का सबूत देगा. लेकिन अपने अन्वेषण के आधार पर सितंबर 2009 में जब चंद्रयान-1 ने चंद्रमा पर पानी होने के सबूत दिए तो दुनिया में हलचल मच गई.
चंद्रयान-1 से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचाए गए उपकरण मून इंपैक्ट प्रोब ने चांद की सतह पर पानी को चट्टान और धूलकणों में भाप के रूप में उपलब्ध पाया था. चंद्रमा की ये चट्टानें दस लाख वर्ष से भी ज्यादा पुरानी बताई जाती हैं.
कई चरणों वाले अर्टेमिस नामक इस अभियान की शुरुआत मानवरहित यान ओरियन के प्रक्षेपण के साथ हो गई है. लेकिन इसके दूसरे और तीसरे चरण में अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा की परिक्रमा करेंगे और उसकी सतह पर उतरेंगे.
We are going.
— NASA (@NASA) November 16, 2022
For the first time, the @NASA_SLS rocket and @NASA_Orion fly together. #Artemis I begins a new chapter in human lunar exploration. pic.twitter.com/vmC64Qgft9
योजना के मुताबिक अर्टेमिस मिशन भी अपोलो-11 की तरह एक हफ्ते की अवधि वाला होगा, लेकिन वैज्ञानिक गतिविधियों की संख्या की तुलना में यह अभियान अपोलो-11 से काफी बड़ा होगा. अपोलो-11 से यह अभियान इस मायने में भी अलग होगा कि इस बार अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा की भूमध्य रेखा की बजाय इसके दक्षिणी ध्रुव पर उतरेंगे, जो अभी तक इंसान के कदमों की छाप के मामले में अनछुआ है.