एन. के. सिंह का ब्लॉग: नेतृत्व बदलें लेकिन डब्ल्यूएचओ को बचाएं

By एनके सिंह | Published: April 18, 2020 06:18 AM2020-04-18T06:18:56+5:302020-04-18T06:18:56+5:30

एक बार फिर से दुनिया में द्वि-ध्रुवीय व्यवस्था-अमेरिका बनाम चीन के पनपने से चूंकि यह पद राजनीतिक होता जा रहा है, लिहाजा महानिदेशक की जनवरी माह में टीम भेजकर वस्तुस्थिति का जायजा लेने की चार बार कोशिश को चीन ठेंगा दिखाता रहा. यह संगठन सदस्य देशों के ऐसे व्यवहार पर कुछ नहीं कर सकता, लिहाजा केवल महानिदेशक पर सुस्ती या पक्षपात का आरोप गलत होगा. गलती केवल अधिनायकवादी चीन की है जिसने हकीकत छुपाकर दुनिया को अस्तित्व के संकट में झोंक दिया.

N. K. Singh Blog: Change Leadership But Save WHO | एन. के. सिंह का ब्लॉग: नेतृत्व बदलें लेकिन डब्ल्यूएचओ को बचाएं

विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टेड्रोस एडहानोम घेब्रेयासस। (फोटो- सोशल मीडिया)

अधिनायकवादी चीन ने तथ्य छुपाकर दुनिया को संकट में डाल दिया है. दुनिया जिस महामारी से आज अस्तित्व के संकट को झेल रही है- सार्स-कोव-2 (कोरोना) उसे चीन की सरकार ने संज्ञान में आने के बाद करीब नौ दिन तक दुनिया से छुपाया और विश्व स्वास्थ्य संगठन को इंस्पेक्शन (निगरानी) की इजाजत कई हफ्तों तक नहीं दी.

यह पहली बार नहीं हुआ. सन् 2002 के नवंबर में भी सार्स-1 के गुआंगहो राज्य में पहले मामले के आने के बाद चीन ने इसे कई दिनों तक छुपाया था लेकिन उस समय संगठन का नेतृत्व नार्वे की पूर्व प्रधानमंत्री और संगठन की तत्कालीन महानिदेशक ब्रांटलैंड जैसे बेहद सबल और सक्षम हाथों में था, लिहाजा विश्व समय रहते सजग हो गया. अनौपचारिक सूत्रों से मिले अकाट्य तथ्यों के आधार पर चीन को मजबूर किया गया कि वह हकीकत को सामने लाए, हालांकि तब तक 100 से ज्यादा लोग मर चुके थे.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक का चुनाव होता है और हर सदस्य देश वोट देते हैं. आम तौर पर विकासशील देशों से केवल एक बार ही 1953 में ब्राजील के डॉ. गोम्स को चुना गया था. लेकिन 2017 में चीन और तमाम अफ्रीकी और एशियाई देशों के समर्थन से अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन द्वारा समर्थित एक ब्रितानी डॉक्टर की उम्मीदवारी के खिलाफ वर्तमान महानिदेशक के पद पर इथियोपिया के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री टेड्रोस का चुनाव हुआ.

एक बार फिर से दुनिया में द्वि-ध्रुवीय व्यवस्था-अमेरिका बनाम चीन के पनपने से चूंकि यह पद राजनीतिक होता जा रहा है, लिहाजा महानिदेशक की जनवरी माह में टीम भेजकर वस्तुस्थिति का जायजा लेने की चार बार कोशिश को चीन ठेंगा दिखाता रहा.  

यह संगठन सदस्य देशों के ऐसे व्यवहार पर कुछ नहीं कर सकता, लिहाजा केवल महानिदेशक पर सुस्ती या पक्षपात का आरोप गलत होगा. गलती केवल अधिनायकवादी चीन की है जिसने हकीकत छुपाकर दुनिया को अस्तित्व के संकट में झोंक दिया.

संगठन के मुखिया को चीन ने गलत तथ्य के सब्जबाग दिखाए. लिहाजा 30 जनवरी को जब संगठन ने इस बीमारी को जन स्वास्थ्य इमरजेंसी घोषित किया तब भी चीन की तारीफ में कसीदे काढ़ते हुए. यहां तक कि जनवरी 24 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी अपने ट्वीट में चीन के प्रयासों की तारीफ की. साथ ही जब तमाम देशों ने इस संगठन से पूछा कि क्या चीन से आना-जाना रोकना उचित होगा तो महानिदेशक प्रभावी निर्णय नहीं ले सके.  

ध्यान रहे कि  सार्स-1 के वक्त संस्था ने इतिहास में पहली बार स्पष्ट रूप से ‘यात्रा- बंदी’ की एडवाइजरी जारी की थी.

सार्स-1 में सक्रिय और सफल भूमिका के लिए जहां संगठन की पूरी दुनिया में सराहना हुई, वहीं जब मार्च, 2009 में स्वाइन फ्लू (एच1एन1) ने मैक्सिको में पैर पसारना शुरू किया तो यही संस्था सबल नेतृत्व के अभाव में इस बीमारी के 76 देशों में प्रसार और 18,600 मौतों का तमाशा देखती रही. धीरे-धीरे यह 200 देशों में फैल गया.

सहमा संगठन सन 2014 में जब इबोला दक्षिण अफ्रीका में दस्तक दे रहा था तो वैश्विक निंदा के डर से चुपचाप बैठा रहा. यह मानते हुए कि विश्व स्वास्थ्य संगठन निकम्मा है, अमेरिका ने कई देशों में अपने सैनिकों को भेजकर रोग की रोकथाम के प्रबंध कराए और संयुक्तराष्ट्र ने एक नई इकाई इस संकट से निपटने के लिए बनाई. तभी से इस संगठन के औचित्य पर प्रश्नचिह्न खड़ा होने लगा. गुएना, सियरा लिओन और लाइबेरिया में कुल 11,800 लोग इस रोग से मारे गए. 

सार्स-कोव-2 यानी वर्तमान कोरोना के दो सौ देशों में फैलने से जाने-अनजाने में इस संस्था की भूमिका, अक्षमता और पक्षपातपूर्ण रवैये पर उभरे वैश्विक जनाक्रोश की परिणति अमेरिका के फंड रोकने के फैसले में हुई. इसके जवाब में महानिदेशक का कहना है कि चूंकि वह ‘नीग्रो’ हैं लिहाजा वे नस्लभेद के शिकार बनाए जा रहे हैं.

बहरहाल इस संस्था को निर्वाचित होकर आए किसी एक व्यक्ति का मोहताज बनाकर रखना गलत है. आज जरूरत है ऐसे संगठन की जिसके मार्गदर्शन में पूरी दुनिया के देशों के विशेषज्ञ मिलकर समन्वय के साथ इस महामारी को रोकने का इलाज व टीका विकसित करें, सॉलिडेरिटी (समेकित प्रयास) की अवधारणा के तहत (जो वर्तमान नेतृत्व की ही देन है).

इसके फंड के स्रोतों को खत्म कर इसे अकाल मौत देना मानव बुद्धिमत्ता की हार होगी. संगठन के संविधान के अनुच्छेद 12 में हाउस असेंबली (सभी 194 सदस्य देशों की साधारण सभा) की इमरजेंसी बैठक बुलाकर विशेषज्ञों की एक नई समिति बनाई जा सकती है और संगठन के संविधान के अनुच्छेद 73 के तहत दो-तिहाई बहुमत से अपेक्षित संशोधन कर सकती है. ऐसा करने से संगठन भी बच जाएगा और इसकी उपादेयता भी बढ़ जाएगी.

Web Title: N. K. Singh Blog: Change Leadership But Save WHO

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