ब्लॉग: एर्दोगान के नए कार्यकाल पर अनेक सवाल, ये चुनाव न केवल तुर्की के भावी स्वरूप को तय करेगा बल्कि इसका भारत के साथ रिश्तों पर भी असर पड़ेगा

By शोभना जैन | Published: June 3, 2023 03:47 PM2023-06-03T15:47:15+5:302023-06-03T15:50:41+5:30

कश्मीर मुद्दे पर भारत के खिलाफ मुखर रहे पाकिस्तान के खैरख्वाह एर्दोगान की वापसी भारत के लिए अच्छी खबर नहीं कही जा सकती है, हाल ही में जम्मू कश्मीर में जी-20 देशों के पर्यटन मंत्रियों के सम्मेलन में तुर्की शामिल नहीं हुआ।

Many questions on Recep Tayyip Erdoğan new term this election will not only decide the future form of Turkey but it will also affect relations with India | ब्लॉग: एर्दोगान के नए कार्यकाल पर अनेक सवाल, ये चुनाव न केवल तुर्की के भावी स्वरूप को तय करेगा बल्कि इसका भारत के साथ रिश्तों पर भी असर पड़ेगा

photo credit: twitter

पिछले दो दशक से सत्ता पर काबिज रशीद तैयब एर्दोगान तीसरी बार फिर तुर्की के राष्ट्रपति चुन लिए गए हैं. चुनाव से पूर्व जिस तरह से  एर्दोगान की कार्यपद्धति, नीतियों, चुनाव प्रक्रिया के इस्तेमाल को लेकर सवाल उठाए जा रहे थे।

ऐसे में एक बड़े वर्ग का प्रबल मत था कि वे पहले दौर में अपने प्रतिद्वंद्वी में भले ही पिछड़ गए हों लेकिन अंतिम दौर में चुनाव जीत जाएंगे और इस रविवार को हुए अंतिम दौर के मुकाबले में प्रतिपक्षी उम्मीदवार को मिले 47.9% मतों के मुकाबले 52.1 % मतों से वे चुनाव जीत गए। 

सवाल है कि क्या तुर्की के मतदाताओं ने  एर्दोगान के नेतृत्व में उदार लोकतंत्र की तुलना में धार्मिक राष्ट्रवाद, इस्लामीकरण और कट्टरपंथी समाजिक व्यवस्था का रास्ता चुना और महंगाई, आर्थिक कुप्रबंधन और महिलाओं की आजादी पर अंकुश लगाने की उनकी कथित दलीलों की तुलना में ‘तुर्की के गांधी’ माने जाने वाले विपक्षी नेता केलिचडारोग्लू को नकार दिया।

वैसे इन चुनावों को लेकर लगे धांधली के आरोपों के बीच प्रतिपक्ष के उम्मीदवार केलिचडारोग्लू ने इन चुनावों को पिछले कई वर्षों का सबसे धांधली भरा चुनाव बताया। बहरहाल चुनाव नतीजों से तुर्की के समाज में भारी ध्रुवीकरण साफ उजागर हो गया।

ये चुनाव न केवल तुर्की के भावी स्वरूप को तय करेगा बल्कि इसका भारत के साथ रिश्तों पर भी असर पड़ेगा। फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि कश्मीर मुद्दे पर भारत के खिलाफ मुखर रहे पाकिस्तान के खैरख्वाह एर्दोगान की वापसी भारत के लिए अच्छी खबर नहीं कही जा सकती है, हाल ही में जम्मू कश्मीर में जी-20 देशों के पर्यटन मंत्रियों के सम्मेलन में तुर्की शामिल नहीं हुआ।

 पिछले दिनों आए भीषण भूकंप में भारत द्वारा तुर्की को फौरी मानवीय सहायता के बावजूद तुर्की ने संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर प्रलाप जारी रखा. आर्टिकल 370 हटने के बाद से कश्मीर मसले पर तुर्की भारत के खिलाफ खड़ा हुआ लेकिन इस सब के बावजूद एक अच्छी बात यह रही कि रक्षा मामलों सहित तुर्की के साथ भारत के साथ बेहतर कामकाजी रिश्ते रहे हैं।

तुर्की व्यापार और विशेष तौर पर पर्यटन क्षेत्र में भारत के निवेश में दिलचस्पी ले रहा है. पिछले साल एससीओ शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी और उर्दोगान की मुलाकात के बाद रिश्तों में सुधार के एक संकेत दिखे, और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनको जीत की बधाई दी है और विश्वास किया कि आने वाले समय में हमारे द्विपक्षीय संबंध और वैश्विक मुद्दों पर सहयोग निरंतर बढ़ता रहेगा।

इस विजय के न केवल तुर्की के घरेलू मोर्चे पर दूरगामी प्रभाव देखने के आसार हैं बल्कि अरब देशों, मुस्लिम जगत के साथ तुर्की के संबंधों के साथ ही यूरोप के विभिन्न देशों के साथ उसके समीकरणों , नाटो आदि पर भी असर पड़ेगा. रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के दौर में नाटो की नीतियों के सिलसिले में उर्दोगान का विरोध काफी मुखर रहा।

फिनलैंड व स्वीडन को नाटो की सदस्यता देने के मुद्दे पर भी तुर्की निरंतर विरोध में रहा जबकि नाटो में सारे फैसले आम सहमति से लिए जाने की परंपरा है. एक टीकाकार के अनुसार यह अहम बात है कि कुर्द बागियों को यूरोप के देशों से मिल रहे समर्थन से तुर्की हमेशा खुल कर आवाज उठाता रहा है, इसलिए वह रूसी हमले के मद्देनजर फिनलैंड व स्वीडन की नाटो की सदस्यता के आवेदन में अड़ंगा लगाता रहा।

एर्दोगान2014 में पहली बार राष्ट्रपति पद के लिए चुने गए थे. हालांकि उससे पहले वह 2003 में तुर्की के प्रधानमंत्री बने थे और तीन कार्यकाल तक प्रधानमंत्री भी रहे. इस तरह वह कुल मिलाकर पांचवीं बार तुर्की के शासन प्रमुख बने हैं. वैसे प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के आखिरी सालों में ही उन पर निरंकुशता और तानाशाह रवैये के आरोप लगने लगे थे।

वर्ष 2014 में वह राष्ट्रपति पद के लिए इसलिए खड़े हुए क्योंकि वह तीन कार्यकाल तक प्रधानमंत्री रहने के बाद फिर से प्रधानमंत्री नहीं बन सकते थे, लेकिन जब वह पहली बार राष्ट्रपति बने थे तो उस समय राष्ट्रपति के पद के पास इतने अधिकार नहीं थे. 2017 में उन्होंने एक जनमत संग्रह के जरिये राष्ट्रपति पद के लिए काफी ताकत जुटा ली थी।

यानी जब प्रधानमंत्री थे तब भी ताकत हाथ में थी और फिर राष्ट्रपति बने तो नए सिरे से ताकत कब्जा ली. बहरहाल उर्दोगान की विजय के बाद उनके नए कार्यकाल के स्वरूप को लेकर अनेक सवाल हैं, उनकी कार्यपद्धति कैसी रहेगी, वहां लोकतांत्रिक संस्थानों की स्थिति कैसी होगी और उनकी नीतियों से अंततः देश का स्वरूप कैसा बनेगा या होगा, मुस्लिम जगत सहित अंतरराष्ट्रीय राजनीति में उनकी पहचान कितनी प्रभावी होगी जिनका जवाब समय धीरे-धीरें ही पाएगा और अगर बात करें भारत-तुर्की के रिश्तों की, तो भारत निश्चित रूप से एक उभरती हुई मजबूत आर्थिक ताकत है।

जी-20 और एससीओ का वह फिलहाल अध्यक्ष है, संयुक्त राष्ट्र में वह एक सक्रिय भूमिका निभाता रहा है, तुर्की की आर्थिक हालत बहुत अच्छी नहीं है, लेकिन निश्चित रूप से पाकिस्तान और चीन फैक्टर के झुकाव के बावजूद भारत को वह एक आर्थिक रूप से सहयोगी के साथ ही द्विपक्षीय सहयोगी के रूप में एक उम्मीद के रूप में देख सकता है।

Web Title: Many questions on Recep Tayyip Erdoğan new term this election will not only decide the future form of Turkey but it will also affect relations with India

विश्व से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे