क्या मोसाद की गिरफ्त में है ईरान...?, उबर पाना कितना मुश्किल होगा?

By विकास मिश्रा | Updated: July 1, 2025 05:21 IST2025-07-01T05:21:39+5:302025-07-01T05:21:39+5:30

कट्टर दुश्मन और ईरानी पैसे से संचालित होने वाले इस्लामिक संगठन हिजबुल्लाह को पेजर ब्लास्ट से मोसाद ने दहला दिया था.

Iran under control Mossad How difficult will it be to recover blog Vikas Mishra | क्या मोसाद की गिरफ्त में है ईरान...?, उबर पाना कितना मुश्किल होगा?

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Highlightsक्या ईरान मोसाद की गिरफ्त में है? और इससे उबर पाना कितना मुश्किल होगा?हिजबुल्लाह के दर्जनों कमांडर मारे गए थे और करीब 3000 लड़ाके घायल हुए थे.सैकड़ों लड़ाकों को अंधा बना दिया या फिर उनके महत्वपूर्ण अंग क्षतिग्रस्त हो गए.

इजराइल के साथ सीजफायर होते ही ईरानी खुफिया एजेंसियों और पुलिस ने देश के भीतर ताबड़तोड़ गिरफ्तारियां शुरू कर दी हैं. माना जा रहा है कि करीब दर्जन भर लोगों को फांसी पर चढ़ा दिया गया है. इन लोगों पर आरोप था कि वे इजराइली खुफिया एजेंसी मोसाद के लिए काम कर रहे थे. जंग से पहले और जंग के दौरान जिस तरह से ईरान के परमाणु वैज्ञानिकों और ईरानी इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कोर के वरिष्ठ कमांडर्स मारे गए हैं, उससे सवाल खड़ा हो गया है कि क्या ईरान मोसाद की गिरफ्त में है? और इससे उबर पाना कितना मुश्किल होगा?

दरअसल मोसाद की तकनीक ऐसी है कि यदि वह किसी देश मे घुसपैठ करना चाहे तो उसे पकड़ पाना बड़ा मुश्किल होता है. दुनिया में जितने खतरनाक मिशनों को अंजाम देने का सेहरा मोसाद के सिर बंधा है, वैसे हैरतअंगेज कारनामे दुनिया की किसी भी खुफिया एजेंसी ने नहीं किए हैं. पिछले साल का पेजर ब्लास्ट कांड तो आपको याद होगा ही.

अपने कट्टर दुश्मन और ईरानी पैसे से संचालित होने वाले इस्लामिक संगठन हिजबुल्लाह को पेजर ब्लास्ट से मोसाद ने दहला दिया था. हिजबुल्लाह के दर्जनों कमांडर मारे गए थे और करीब 3000 लड़ाके घायल हुए थे. जब पेजर फटे तो वे या तो पॉकेट में थे या फिर कमर में लटके थे या हाथ में थे. नतीजा यह हुआ कि पेजर ने सैकड़ों लड़ाकों को अंधा बना दिया या फिर उनके महत्वपूर्ण अंग क्षतिग्रस्त हो गए.

इजराइल के तकनीकी प्रहार से बचने के लिए हिजबुल्लाह ने मोबाइल छोड़ कर पेजर पर जाने का निर्णय लिया था. ताइवान की कंपनी को हिजबुल्लाह ने पांच हजार पेजर के ऑर्डर दिए. माना जाता है कि पेजर के निर्माण से लेकर डिलीवरी तक की प्रक्रिया के बीच मोसाद के एजेंट्स ने हर पेजर में विस्फोटक बोर्ड  लगाए और 3 से 15 ग्राम तक आरडीएक्स भर दिया.

जब वे लड़ाकों के पास पहुंच गए तो उन्हें हैक करके विस्फोट कर दिया. जरा सोचिए कि मोसाद ने इतने बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया और किसी को कानोंकान खबर नहीं हुई.यही मोसाद की खासियत है. इसके पहले इसी तकनीक से 1996 में हमास नेता याह्या आयाश की भी हत्या हुई थी. उनके फोन में 15 ग्राम विस्फोटक भरा हुआ था.

उन्होंने पिता को फोन किया और विस्फोट हो गया. हमास प्रमुख इस्माइल हानिया को मोसाद ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की सहायता से मौत के घाट उतार दिया था. ईरान के कम से कम 6 वरिष्ठ परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या में भी मोसाद की भूमिका ही मानी जाती है. इजराइल-ईरान की ताजा जंग की शुरुआत वास्तव में इजराइल के मिसाइल हमले से पहले ही हो चुकी थी.

ईरान की धरती से ही ईरान के प्रमुख संस्थानों पर हमले किए गए. ये हमले छोटे-छोटे ड्रोन से बड़े सधे और सटीक अंदाज में किए गए जिससे यह शंका पैदा हो गई थी कि निश्चय ही इन हमलों के पीछे मोसाद का हाथ है. अन्यथा ईरान के भीतर ऐसा कौन कर सकता है? ईरान की खुफिया एजेंसियों ने ऐसे कई स्थानों पर छापा भी मारा जहां ड्रोन असेंबल किए गए थे.

ड्रोन असेंबल करने के कुछ ठिकाने तो परमाणु संस्थानों के बिल्कुल करीब थे. तो सवाल पैदा होता है कि ड्रोन के पार्ट्स या विस्फोटक सामग्री ईरान पहुंची कैसे? माना जा रहा है कि दूसरे देशों से ईरान पहुंचने वाले परिवहन को मोसाद ने अपनी गिरफ्त में ले लिया. विदेशों में फर्जी कंपनियां खोल देने और असली संस्थान की तरह उनका संचालन करने में मोसाद को महारत हासिल है.

अपने दुश्मनों को निपटाने के लिए इजराइल ने इस तरीके का इस्तेमाल कई बार किया है.  ईरान को लग रहा था कि विदेशों से जो ट्रक सामान लेकर आ रहे हैं, उनसे उसे कोई खतरा नहीं है लेकिन उन्हीं ट्रकों में छिपा कर ड्रोन के पार्ट्स और जरूरी विस्फोटक ईरान के अंदर पहुंचा दिए गए. परिवहन कंपनियों के कर्मचारी के रूप में मोसाद के एजेंट्स ने बखूबी यह काम किया.

ईरान के भीतर मोसाद के लिए पैठ बनाना मुश्किल काम जरूर रहा होगा लेकिन खामनेई की क्रूर सत्ता से परेशान लोगों ने मोसाद का साथ दिया होगा. ईरान में एक बहुत बड़ा वर्ग हैै जो हर हाल में खामनेई को सत्ता से बेदखल करना चाहता है. यह भी माना जाता है कि ईरान के भीतर न केवल मोसाद बल्कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए और ब्रिटेन की खुफिया एजेंसी एमआई-6 ने भी अच्छी पैठ बना रखी है.

हो सकता है कि इन तीनों के बीच कोई सामंजस्य भी हो! या हो सकता है कि अकेले मोसाद ने ही सारे मिशन को अंजाम दिया हो! जो भी हो, ईरान को यह बात समझ में आ चुकी है कि मोसाद ने उसकी जड़ें खोद दी हैं. परमाणु क्षमता हासिल करने से उसे कई साल पीछे धकेल दिया है. अब खामनेई की तात्कालिक चिंता परमाणु बम बनाना नहीं बल्कि अपनी सत्ता को संभालना है.

खामनेई जानते हैं कि अमेरिका से लेकर इजराइल और अन्य पश्चिमी देश उन्हें सत्ता से हटाना चाहते हैं और देश का बड़ा तबका भी यही चाहता है. यही कारण है कि सीजफायर होते ही, उनकी एजेंसियां मोसाद के एजेंट्स और विरोधियों को ढूंढ़ने में लग गई हैं. हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया है.

लोगों को फांसी पर टांगा जा रहा है लेकिन वे कितना भी दमन करें, उनके विरोधियों को इस वक्त मोसाद का साथ मिला हुआ है. मोसाद ने जिस तरह से ईरान के भीतर घुसपैठ की है, उसे पूरी तरह उखाड़ फेंकना खामनेई के बूते में नहीं है.

मोसाद कुछ इस तरह काम करता है कि बायें हाथ को खबर नहीं होती कि दायां हाथ क्या कर रहा है? खामनेई कितना भी कुछ कर लें, उनकी उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है! इजराइल बेखौफ है क्योंकि उसने ईरान के हमदर्द हिजबुल्लाह और हमास की कमर तोड़ दी है.  

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