भारत क्यों कर रहा है चीन का पोषण, जबकि आतंकवाद और अर्थव्यवस्था दोनों पर साथ है अमेरिका
By विकास कुमार | Published: March 22, 2019 03:14 PM2019-03-22T15:14:28+5:302019-03-22T15:48:17+5:30
चीन और भारत के बीच कूल व्यापार 70 बिलियन डॉलर का है. लेकिन भारत और चीन के बीच व्यापार घाटा 60 बिलियन डॉलर है(4.25 लाख करोड़) जिसके कारण यह व्यापार भारत के लिए फायदेमंद नहीं है. इसके बावजूद चीन ने मसूद अजहर के मामले में पाकिस्तान का समर्थन किया है.
मसूद अजहर को बार-बार कूटनीतिक संरक्षण देने के कारण भारत और चीन के रिश्ते नाजुक दौर से गुजर रहे हैं. दूसरी तरफ अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र के अलावा वैश्विक पटल पर भी पाकिस्तानी आतंकवाद के खिलाफ भारत के प्रयास का समर्थन किया है. चीन और भारत के बीच कूल व्यापार 70 बिलियन डॉलर का है. लेकिन भारत और चीन के बीच व्यापार घाटा 60 बिलियन डॉलर है(4.25 लाख करोड़) जिसके कारण यह व्यापार भारत के लिए कुछ ख़ास फायदेमंद नहीं है. तो दूसरी तरफ अमेरिका और भारत के बीच ट्रेड सरप्लस 60 बिलियन डॉलर का है. इसका मतलब अमेरिका द्वारा निर्यात के मुकाबले आयात ज्यादा किया जा रहा है. और यह स्थिति भारत के लिए फायदेमंद साबित होता रहा है. भारत और अमेरिका के बीच कूल व्यापार बीते साल 126 बिलियन डॉलर के आसपास था.
चीन के साथ व्यापार घाटे का सौदा
आर्थिक आंकड़ें साफ इशारा कर रहे हैं कि चीन के साथ व्यापार के कारण भारत का व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा है. भारतीय बाजार चीनी समानों से पटे-पड़े हैं. भारत के कई छोटे उद्योग चीनी वस्तुओं के घुसपैठ के कारण बर्बाद हो गए. और ठीक इसी समय चीन भारत के कूटनीतिक हितों को नजरअंदाज करता आ रहा है. डोकलाम में चीन द्वारा आक्रामक रवैया अपनाने का मामला हो या मसूद अजहर को बचाने का कुत्सित प्रयास, चीन ने हमेशा से भारतीय हितों की बलि चढ़ाई है. चीन-पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर का कुछ हिस्सा पीओके से हो कर गुजर रहा है जिसके ऊपर भी भारत ने आपत्ति जताई है.
चीनी मीडिया का तंज
चीनी मीडिया ने भारत में चीनी सामानों के बहिष्कार को लेकर भी तंज कसा है. ग्लोबल टाइम्स ने लिखा था कि भारत का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर अभी भी अविकसित है और चीन के समानों का बॉयकाट करना भारतीयों के लिए नामुमकिन है. चीनी मीडिया का यह दावा सही भी है क्योंकि चीन ने भारत के कई उद्योगों पर अपने सस्ते समानों का ग्रहण लगाया है. ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में किसी देश के साथ व्यापार को रोकना व्यावहारिक नहीं है लेकिन फिर भी व्यापारिक हितों को लेकर भारत सरकार चीन के ऊपर कूटनीतिक दबाव बनाने में विफल रही है.
अमेरिका का हर मुद्दे पर भारत को समर्थन
अमेरिका 21 वीं शताब्दी में भारत का सबसे ख़ास मित्र के रूप में उभरा है. अमेरिका के साथ व्यापार के कारण भारत की अर्थव्यवस्था में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में भारत को सन्दर्भ में रखते हुए कहा था कि अमेरिकी समानों पर भारत द्वारा बहुत ज्यादा टैरिफ लगाया जाता है, जिसके कारण हम भी उनके समानों पर टैरिफ लगायेंगे. अमेरिका की हाल के दिनों में यह मांग रही है कि हार्ले डेविडसन बाइक पर शुल्क की सीमा को घटाया जाए. दूसरी तरफ अमेरिका ने आतंकवाद और मसूद अजहर के मुद्दे पर हमेशा भारत का समर्थन किया है.
अमेरिका ने हाल ही में पाकिस्तान को चेतावनी दी है कि अगर भारत पर एक और आतंकवादी हमला होता है तो यह दक्षिण एशिया की शांति के लिए खतरा साबित हो सकता है. अमेरिका ने भारत का हर मुद्दे पर समर्थन किया है लेकिन सवाल यही है कि इसके बावजूद भारत चीन को क्यों व्यापारिक छूट दे रहा है.
पंडित नेहरू का चीन प्रेम
भारत की आजादी के बाद प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई थी. जब दुनिया अमेरिका और सोवियत रूस के खांचे में बंट चुकी थी उस दौर में किसी खेमे में शामिल नहीं होने का फैसला कूटनीतिक रूप से साहसिक माना जाता है. लेकिन चीन के प्रति नेहरू का प्रेम भी जगजाहिर रहा है. जानकार कहते हैं कि वामपंथ के प्रति झुकाव के कारण पंडित नेहरू ने चीन का हमेशा पक्ष लिया.
हाल ही में अरुण जेटली ने नेहरू का चीन के प्रति अंधा प्रेम के बारे में बताते हुए उस चिट्ठी का जिक्र किया जिसमें पंडित नेहरू ने 1955 में राज्यों के मुख्यमंत्रियों को अमेरिका द्वारा दिए गए अनौपचारिक प्रस्ताव का जिक्र किया था. अमेरिका ने 1950 में भारत को यूनाइटेड नेशन सिक्यूरिटी काउंसिल(UNSC) में शामिल होने का प्रस्ताव दिया था. लेकिन नेहरू ने चिट्ठी में चीन का समर्थन करते हुए कहा था कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत को स्थान पर चीन को जगह मिलनी चाहिए.