शोभना जैन का ब्लॉग : तालिबान की 'कथनी-करनी' में समानता पर ही निर्भर होंगे भारत के संबंध
By शोभना जैन | Published: September 4, 2021 10:11 AM2021-09-04T10:11:56+5:302021-09-04T10:14:17+5:30
तालिबान कह रहा है कि अपनी भूमि का आतंक के लिए इस्तेमाल नहीं होने देगा, लेकिन पर्दे के पीछे से पाकिस्तान और चीन क्या उसे ऐसा करने देंगे?
अमेरिकी फौजों के हटने के कुछ समय बाद ही भारत ने जमीनी हकीकत समझते हुए तालिबान से सीधे बात नहीं करने की अपनी अब तक की नीति से पीछे हटते हुए दो दिन पहले ही सीधे बातचीत की. लेकिन सवाल है कि क्या तालिबान की भारत के साथ अफगानिस्तान के सहयोगी भरोसेमंद रिश्तों की कद्र करते हुए सामान्य रिश्ते, राजनीतिक, आर्थिक संपर्करखने की मंशा है? वह कह रहा है कि अपनी भूमि का आतंक के लिए इस्तेमाल नहीं होने देगा, लेकिन पर्दे के पीछे से पाकिस्तान और चीन क्या उसे ऐसा करने देंगे?
निश्चय ही भारत के लिए अफगानिस्तान के मौजूदा हालात बेहद चुनौतीपूर्ण हैं, सुरक्षा को लेकर भारत की चिंताएं गहरी हैं. विशेष तौर पर तालिबान में पाकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी आईएसआई से नजदीकी तौर पर जुड़ा तालिबान के हक्कानी गुट का वर्चस्व भारत की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ाने वाला है.
तालिबान के प्रवक्ता हालांकि कह चुके हैं कि कश्मीर का मुद्दा भारत-पाकिस्तान को सुलझाना चाहिए और वो बार-बार भरोसा दिला रहा है कि वो अपनी जमीन का आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल नहीं होने देगा. लेकिन 1996-2001 के तालिबान के काले दिनों की बात फिलहाल न भी करें तो वहां देश के अंदर के मौजूदा हालात दहशत पैदा करने वाले हैं.
तालिबान महिलाओं पर शरिया कानून के नाम पर दमनचक्र चला रहा है. भयाक्रांत अफगानी किसी भी तरह सुरक्षित पनाह के लिए शरणार्थी बन विदेशों में शरण पाने के लिए भाग रहे हैं. अपने एक विरोधी को जिस तरह से हेलिकॉप्टर से लटका कर तालिबान ने हवा में मौत के घाट उतारा, वो तस्वीर दिल दहला देने वाली थी. आर्थिक स्थिति खस्ताहाल है.
लेकिन दो दिन पहले ही अलकायदा ने तालिबान को बधाई देते हुए कश्मीर को कथित तौर पर आजाद कराने की बात कह डाली. लगता तो यही है कि अगर कुछ क्षण तालिबान की कश्मीर टिप्पणी पर भरोसा कर भी लें तो वहां आतंकी संगठनों के हौसले बढ़े हुए हैं और वो तालिबान की आधिकारिक मर्जी के बिना भी कश्मीर में घुसपैठ और हिंसा की कोशिश कर सकते हैं.
हालांकि फिलहाल जम्मू-कश्मीर पर काबुल का असर नहीं दिख रहा है. पहले जब अफगानिस्तान में तालिबान आया था उस वक्त आईएसआई ने कश्मीर में आतंकियों को भेजा था.
पुराने समय का अनुभव डरावना रहा. दिसंबर 1999 में इंडियन एयरलाइंस के विमान का अपहरण होने के बाद तालिबान द्वारा मध्यस्थ के तौर पर निभाई गई अहम भूमिका और कंधार हवाई अड्डे पर खड़े इंडियन एयरलाइंस के विमान से उतरे तीन आतंकवादियों, जैश के नेता मसूद अजहर, लश्कर-ए-तैयबा के उमर शेख और कश्मीर के मुश्ताक जरगर को तालिबान की सुरक्षा में जिस तरह बड़ी-बड़ी गाड़ियों में बिठाकर सीमा पार पाकिस्तान जाने दिया गया था, वो तस्वीरें तालिबान से जुड़ गई हैं.
सवाल तो फिर वही है. क्या उनमें से जैश और लश्कर के आतंकी कश्मीर में घुसने की कोशिश नही करेंगे? हालांकि तब से हालात काफी बदल चुके हैं, भारत का सुरक्षा तंत्न खासा मजबूत हो गया है. लेकिन इसके बावजूद यह भी सच है कि इस बार चीन भी समीकरण में है. नजर इस बात पर रहेगी कि तालिबान पाकिस्तान के असर में कितना आता है.
अभी तालिबान अफगानिस्तान में ही पांव जमाने में जुटा है. कश्मीर पर उसका असर इस बात से पता चलेगा कि उसकी जमीन पर नीति क्या रहती है. लश्कर और जैश जैसे संगठन अब अफगानिस्तान में अपना ठिकाना बना रहे हैं. उससे भारत की सुरक्षा के लिए खतरा और बढ़ ही गया है. इसकी बड़ी वजह पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और तालिबान के बीच रिश्ते रहे हैं. अब जबकि अमेरिका ने अफगानिस्तान से बोरिया बिस्तर समेट लिया है तो भारत की सुरक्षा के लिए खतराबढ़ा है.
इसके साथ ही देखें तो भारत ने अफगानिस्तान में पिछले बीस बरस में विकास के जो भी काम किए, उनके लिए खतरा पैदा हो गया है. नौवें दशक में तालिबान दौर में तबाही के दौर से गुजरी अफगानिस्तान की जनता की मदद करने में भारत जुट गया और उसने अफगानिस्तान की संसद बनाई, हाईवे और बांध, स्कूल और अस्पतालों का निर्माण किया.
अफगान लोग भारत में इलाज के लिए आते हैं, वहां के सिनेमाघरों में हिंदी फिल्में खूब लोकप्रिय हैं. तालिबान ने ‘सकारात्मक रवैया’ अपनाने की जो बात कही है, उस पर वह कैसे अमल करता है, भारत के साथ संपर्क और आगे के रिश्ते अब इस पर निर्भर करेंगे.