शोभना जैन का ब्लॉग: जी20 सुनेगा विकासशील देशों की आवाज
By शोभना जैन | Published: January 14, 2023 09:48 AM2023-01-14T09:48:36+5:302023-01-14T09:49:32+5:30
जी20 के अध्यक्ष के नाते भारत द्वारा आयोजित इस सम्मेलन के लिए 120 देशों को निमंत्रित किया गया है। दरअसल आर्थिक और सामाजिक विकास के आधार पर दुनिया को एक तरह से दो हिस्सों में बांटा गया है।
भारत के जी20 की मेजबानी संभालते ही दुनिया के दक्षिणी यानी कम विकसित या विकासशील देशों की वर्चुअल बैठक की मेजबानी को लेकर लगाए जा रहे विभिन्न कयासों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस आयोजन को लेकर स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि जी20 की मेजबानी संभालते ही यह बहुत स्वाभाविक है कि भारत दुनिया के कम विकसित दक्षिणी हिस्से की आवाजों को मुखर स्वर दे।
भविष्य में दुनिया के इस हिस्से के सबसे ज्यादा हित जुड़े हुए हैं और भारत ने सदैव ही विकास के अपने अनुभवों को इन देशों के साथ बांटा है। इस सम्मेलन की अहमियत पीएम मोदी के सम्मेलन में किए गए इस आह्वान से समझी जा सकती है, जिसमें उन्होंने सम्मेलन में शामिल देशों से साथ मिलकर नई वैश्विक व्यवस्था बनाने और एक-दूसरे के विकास में सहयोग देने के लिए कहा।
दरअसल इस सम्मेलन को बुलाए जाने की भारत की पहल को कुछ जानकार जिस तरह से भारत के जी20 की अध्यक्षता के प्रभाव को बढ़ाने के प्रयास के रूप में भी देख रहे हैं, उसकी बजाय इसे इस उम्मीद से देखना ज्यादा सही होगा कि इस तरह के सम्मेलन से विकासशील देशों की आवाजें जी20 जैसे विकसित देशों के समूह में पूरी संवेदना से सुनी जा सकेंगी, उनकी समस्याओं के समाधान के लिए विकसित देश बढ़-चढ़कर आगे आएंगे।
अगर इस संदर्भ में भारत की भूमिका की बात करें तो इस वर्ग के देशों को भारत की तरफ से सतत आर्थिक विकास के लिए सहयोग पाने का भरोसा रहता है, विशेष तौर पर उसके चलते भारत को राष्ट्रीय के साथ-साथ क्षेत्रीय और वैश्विक संस्थानों के जरिये आर्थिक और सामाजिक विकास के क्षेत्र में सहयोग और मजबूती से उपलब्ध कराते रहना होगा। जी20 के अध्यक्ष के नाते भारत द्वारा आयोजित इस सम्मेलन के लिए 120 देशों को निमंत्रित किया गया है। दरअसल आर्थिक और सामाजिक विकास के आधार पर दुनिया को एक तरह से दो हिस्सों में बांटा गया है।
एक है ग्लोबल नॉर्थ यानी विकसित देश और दूसरा है ग्लोबल साउथ यानी कम विकसित या देश विकासशील। ग्लोबल नॉर्थ में दुनिया के अधिक विकसित, समृद्ध और औद्योगिक विकास वाले देश हैं, जैसे अमेरिका, यूरोपीय देश, जापान, दक्षिण कोरिया आदि। वहीं ग्लोबल साउथ में आर्थिक और सामाजिक विकास के आधार पर विकासशील देश हैं।
इनमें लातिन अमेरिका, अफ्रीका, एशिया और ओशिनिया के देश हैं। भौगोलिक आधार पर भी ये देश दुनिया के दक्षिणी हिस्से में आते हैं। इस सम्मेलन की प्रासंगिकता को प्रधानमंत्री मोदी की सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में की गई इस टिप्पणी से समझना बेहतर होगा, जिसमें उन्होंने कहा कि दुनिया आज संकट के दौर में है विश्वव्यापी अनेक चुनौतियां कम विकसित देशों ने खड़ी नहीं की हैं लेकिन उनका इस वर्ग के देशों पर सबसे ज्यादा असर है।
एक वैश्विक आवाज के तौर पर हमें भविष्य में बड़ी भूमिका निभानी है। हमारे देशों में तीन चौथाई मनुष्य बसते हैं। दुनिया की बेहतरी के लिए हमारी भी समान आवाज होनी चाहिए। आपकी आवाज भारत की आवाज है और आपकी प्राथमिकता भारत की प्राथमिकताएं। ऐसे में उम्मीद के साथ फिर वही एक सवाल भी है कि क्या इस तरह की पहल के बाद अक्सर अनसुनी इन आवाजों को उतनी शिद्दत से सुना जाएगा और उन मुद्दों के समाधान के लिए विकसित देश तत्परता से हाथ आगे बढ़ाएंगे, जितनी तात्कालिक जरूरत इनके समाधान की है? इस पूरे परिप्रेक्ष्य में विदेशी मामलों के जानकार सी।
राजामोहन के इस मत पर भी ध्यान देना जरूरी है कि भारत को विकासशील और विकसित देशों के बीच पुल बनना होगा, क्योंकि कम विकसित देशों की समस्याएं विकसित देशों के समुचित सहयोग के बिना हल हो नहीं सकती हैं। उनका मानना है कि भारत को विकसित देशों के खेमे के आमने-सामने खड़े होने की महत्वाकांक्षा से बचना चाहिए और विकसित व कम विकसित देशों के बीच एक पुल की भूमिका निभानी चाहिए।
बहरहाल, पीएम मोदी कह चुके हैं कि जी20 की मेजबानी भारत के लिए सिर्फ विकसित देशों के साथ विचार-विमर्श तक ही सीमित नहीं होगी बल्कि इस यात्रा में कम विकसित देशों को भी साथ लिया जाएगा, जिनकी आवाजें अक्सर अनसुनी रह जाती हैं। ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि बैठक बुलाने की पहल भारत के लिए कम विकसित देशों की आवाजों को मुखर स्वर देकर विकसित देशों के सहयोग से इन देशों की समस्याओं के हल के लिए कारगर रास्ता बनाने और कम विकसित देशों से अपनी नजदीकी और गहरी करने का एक मौका बनेगी।
साथ ही जिस तरह से इन देशों को भारत की तरफ से सतत आर्थिक विकास व सहयोग पाने का भरोसा रहता है, उसके चलते भारत राष्ट्रीय के साथ-साथ क्षेत्रीय और वैश्विक संस्थानों के जरिये इस तरह के आर्थिक सहयोग को और मजबूती से उपलब्ध करवाता रहे।