ब्लॉग: जीरो कोविड नीति का विरोध चीन में नए बदलाव के संकेत! शी जिनपिंग से हताश हो रही चीनी जनता
By रहीस सिंह | Published: December 2, 2022 10:29 AM2022-12-02T10:29:08+5:302022-12-02T10:30:30+5:30
चीन की सोशल मीडिया साइट ‘वीबो’ पर मंडारिन में सरकार विरोधी पोस्ट हटा दिए जाते हैं. इसे देखते हुए यूजर्स ने चीन के अधिकारियों को समझ में न आने वाली हांगकांग की ‘कैंटोनीज’ भाषा का उपयोग करना शुरू कर दिया है.
‘वी डोन्ट वांट कोविड टेस्ट, वी वांट फ्रीडम’, 27 नवंबर को कोविड टेस्ट और लॉकडाउन के खिलाफ चीनी युवाओं की यह आवाज शंघाई की सड़कों से बीजिंग के सत्ता प्रतिष्ठान तक पहुंची होगी तो शी जिनपिंग और उनके कम्युनिस्ट जुंटा को उसने चौंकाया अवश्य होगा. दरअसल चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और जिनपिंग यह सोच भी नहीं सकते थे कि उरुमकी में एक फ्लैट में लगने वाली आग ठीक वैसे ही चीन में जनसंघर्ष के उभार के लिए एपीसेंटर साबित होगी जैसी कि कभी ट्यूनीशिया में बाउजिजो जैसे एक सामान्य सब्जी व फल विक्रेता के आग लगा लेने की घटना ने अरब स्प्रिंग को जन्म दे दिया था.
जो भी हो, आज शंघाई, बीजिंग, शेनझेन जैसे कई शहर चीनियों के प्रदर्शन के साक्षी बनकर चीन में एक नया इतिहास लिखे जाने का संकेत दे रहे हैं. विश्वविद्यालयों के छात्र क्लासरूम से बाहर निकलकर चीन के कम्युनिस्ट शासन से दशकों बाद यह कहने की ताकत जुटा ले गए हैं कि वायरस के नाम पर लोगों के अधिकारों पर, उनकी आजादी और जीवनयापन पर लगाई जा रही पाबंदियों का हम विरोध करते हैं. वास्तव में चीन में इसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता था. लेकिन ऐसा हो रहा है.
सवाल यह उठता है कि चीन में ऐसा क्यों हुआ? क्या यह जनप्रतिक्रिया उरुमकी के किसी फ्लैट में आग लगने मात्र का परिणाम है जिसमें कुछ लोगों की मृत्यु हो गई? या फिर वजहें कुछ और हैं ? दरअसल कोविड-19 को लेकर चीन की कम्युनिस्ट सरकार शुरू से ही अविश्वसनीयता के दायरे में रही. सबसे पहले तो दुनिया ने कोविड-19 महामारी के लिए इसे ही दोषी माना. अमेरिका के ट्रम्प प्रशासन ने तो कोविड वायरस को ‘वुहान वायरस’ का नाम ही दे डाला था. यह पूरी तरह से गलत भी नहीं माना जा सकता.
इसका परिणाम यह हुआ कि चीन पर दुनिया का भरोसा घटा. चीन ने इसकी भरपाई जीरो कोविड नीति के छद्म प्रचार से की. इस प्रचार से उसने दुनिया भर में एक नए बाजार का निर्माण किया जिसे कोविड टेस्ट किट - मेडिकल डिवाइस काॅम्प्लेक्स नाम दिया जा सकता है. इसमें चीन सफल भी रहा. उसकी कंपनियों ने इस बाजार से खासी कमाई भी की.
ऐसे कई उदाहरण हैं जो यह बताते हैं कि चीन का कोविड इंडस्ट्रियल काॅम्प्लेक्स जिस दौर में नए मुकाम गढ़ रहा था उसी दौर में दूसरी अर्थव्यवस्थाएं जूझ रही थीं. लेकिन बाद में यह दिखने लगा कि उसकी जीरो कोविड नीति दरअसल वैश्विक बाजार पर धाक जमाने और कमाई करने के छद्म हथियार की तरह थी जिसकी कलई कुछ समय बाद ही उतरने लगी थी. कोई भी देख सकता है कि अत्यधिक सख्ती के बाद भी वहां कोविड थमा नहीं है इसलिए वहां की सरकार बार-बार लॉकडाउन का सहारा ले रही है. इस जीरो कोविड नीति ने चीन के लोगों का जीवन बुरी तरह प्रभावित किया.
लोग बीमारी से भले ही बच गए हों लेकिन भूख से मरने लगे. इसे शासन की सक्षमता तो नहीं ही कहा जाएगा कि जहां कोई कोविड केस मिल गया, वहां उसे पूरी तरह से बंद कर दिया गया. जैसे अक्तूबर 2022 में डिज्नी पार्क को कोविड केस मिल जाने से अकस्मात बंद कर दिया गया. लोग फंस गए जो बाद में किसी तरह से दीवारें फांदकर भागे. यह कैसी जीरो कोविड नीति है? दूसरा यह कि विगत दस वर्षों में शी जिनपिंग कोई करिश्मा नहीं दिखा पाए. लेकिन फिर भी कम्युनिस्ट पार्टी ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग को माओत्से तुंग के बाद सबसे ताकतवर नेता अथवा तानाशाह बना दिया.
ध्यान से देखें तो शी जिनपिंग ने उस व्यवस्था को बदल दिया है जो माओ के बाद के नेताओं ने कई दशकों में निर्मित की थी. अब वे तीसरे कार्यकाल के साथ पार्टी के सर्वशक्तिमान नेता बन गए हैं लेकिन सच यही है कि शी जिनपिंग अभी भी उस सपने से बहुत दूर खड़े हैं जो उन्होंने दस वर्ष पहले चीनियों के सामने रखा था. इसके बदले में कम्युनिस्ट पार्टी उन्हें क्रांति दूत के रूप में पेश करने की कोशिश पिछले काफी समय से कर रही है.
चीन के लोग मानते हैं कि सख्त जीरो कोविड नीति के तहत सख्ती से किए गए लॉकडाउन ने उनकी अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया है. नागरिकों की तरफ से भारी विरोध न हो इसके लिए नागरिक अधिकारों का दमन सरकार करती रही और इस उद्देश्य से आंतरिक स्थितियों को नियंत्रण में रखने के लिए सरकार का विरोध करने वालों के लिए सख्त सजा के प्रावधान किए गए. इसके विकल्प के रूप में सोशल मीडिया पर विरोध शुरू हुआ जिससे चीनी सरकार की बेचैनी बढ़ गई.
उल्लेखनीय है कि चीन की सोशल मीडिया साइट ‘वीबो’ पर मंडारिन में सरकार विरोधी पोस्ट हटा दिए जाते हैं. इसे देखते हुए यूजर्स ने चीन के अधिकारियों को समझ में न आने वाली हांगकांग की ‘कैंटोनीज’ भाषा का उपयोग करना शुरू कर दिया है ताकि चीनी अधिकारी उसे समझ न सकें. ऐसा माना जा रहा है चीनी अधिकारी इस कैंटोनीज नामक सीक्रेट भाषा को डिकोड नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि यूजर्स ने इसे आपस में समझने की दृष्टि से विकसित किया है.
वास्तव में प्रदर्शन जब ‘कोरे कागज’ के जरिये खामोशी ग्रहण करने लगे तो निहितार्थों का फलक बड़ा हो जाता है और इससे भविष्य का अनुमान लगाया जा सकता है.