जनहितैषी नौकरशाही में समाया है चीन की सफलता का राज, भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग
By भरत झुनझुनवाला | Published: March 21, 2021 03:11 PM2021-03-21T15:11:50+5:302021-03-21T15:11:50+5:30
न्यूयॉर्क टाइम्स के एक लेख में बताया गया है कि चीन में नौकरशाहों की अंक के अनुसार पदोन्नति की जाती है. पूर्व में यह देखा जाता था कि किसी नौकरशाह ने अपने क्षेत्न में आर्थिक विकास को कितना बढ़ाया.
1989 में थ्येन-आन-मन स्क्वेयर के नरसंहार के बाद पश्चिमी विद्वानों का स्पष्ट मानना था कि चीन की एकाधिकारवादी व्यवस्था और पूंजीवाद में मेल नहीं बैठ सकेगा और अंतत: चीन को लोकतंत्न अपनाना ही पड़ेगा. उनका मानना था कि व्यक्ति की व्यापार करने की स्वतंत्नता के साथ सोचने एवं राजनीतिक स्वतंत्नता को अलग नहीं किया जा सकता है.
ये साथ-साथ चलते हैं. इस व्यक्तिगत स्वतंत्नता के आधार पर ही पूंजीवाद बढ़ता है. राजनीतिक एवं वाणिज्यिक स्वतंत्नताओं के बीच में भेद करना संभव नहीं होगा. ऐसा संभव नहीं कि लोगों को व्यापार करने की स्वतंत्नता दी जाए लेकिन राजनीतिक स्वतंत्नता न दी जाए. जैसे कम्युनिस्ट रूस एवं कम्युनिस्ट चीन में राजनीतिक स्वतंत्नता पर प्रतिबंध होने के साथ-साथ व्यापारिक गतिविधियां कमजोर पड़ गई थीं और कम्युनिज्म ध्वस्त हो गया था. पूर्व का यह आकलन आज पूरी तरह असफल हुआ दीखता है.
चीन ने राजनीतिक प्रतिबंध के साथ-साथ व्यापारिक स्वतंत्नता का मेल बना लिया है. इसी क्रम में आज हांगकांग में चीन विश्व समुदाय की परवाह किए बगैर तानाशाही थोप रहा है. चीन की इस स्थिति का रहस्य उसकी नौकरशाही है. न्यूयॉर्क टाइम्स के एक लेख में बताया गया है कि चीन में नौकरशाहों की अंक के अनुसार पदोन्नति की जाती है. पूर्व में यह देखा जाता था कि किसी नौकरशाह ने अपने क्षेत्न में आर्थिक विकास को कितना बढ़ाया. अब शी जिनपिंग ने इन अंकों में सामाजिक समरसता, पर्यावरण की रक्षा, जनता की सेवा और जन प्रसन्नता के अंक जोड़ दिए हैं.
इन सब अंकों के आधार पर ही किसी नौकरशाह की पदोन्नति की जाती है. इस व्यवस्था का प्रभाव है कि चीन की नौकरशाही मूल रूप से जनता के प्रति सौहाद्र्र रखती है और वसूली कम करती है. यही कारण दीखता है कि चीन की जनता एकाधिकारवादी व्यवस्था में प्रसन्न है और आर्थिक विकास भी हो रहा है. उसे अपने लोकतांत्रिक एवं राजनीतिक अधिकारों की जरूरत ही नहीं है क्योंकि लोकतांत्रिक अधिकारों की जरूरत तब विशेषत: पड़ती है जब सरकार शोषक एवं आततायी हो जाए. जब सरकार मूल रूप से जनसेवा कर रही हो तो लोगों के लिए लोकतांत्रिक अधिकार की मांग गौण हो जाती है.
भारत में लोकतांत्रिक अधिकारों के बावजूद हम आर्थिक विकास में पीछे हैं और हमारी जनता भी असंतुष्ट है, यह कड़वा सत्य है. मूल बात है कि सरकार एवं नौकरशाही जनसेवा करे. लोकतंत्न में व्यवस्था है कि यदि कोई सरकार एवं उसकी नौकरशाही जनसेवा नहीं करती है तो चार, पांच या छह वर्षों के बाद उसे बदल दिया जाता है.
लेकिन इसमें पेंच यह है कि नई सरकार भी उसी नौकरशाही के आधार पर उसी प्रकार का जन विरोधी व्यवहार करती है जैसा कि अपने देश में देखा जाता है. इसका यह अर्थ नहीं कि अपने देश में एकाधिकार लागू होने से सब ठीक हो जाएगा. यदि लोकतंत्न को छोड़कर एकाधिकार की सरकार लागू की जाए तो दो परिस्थितयां बनती हैं.
यदि एकाधिकारवादी सरकार जनसेवा करती है तो यह हर प्रकार से सही बैठता है जैसा कि चीन में देखा जाता है. लेकिन यदि एकाधिकारवादी सरकार जनविरोधी हो जाती है तब लोकतंत्न लाभप्रद और जरूरी दीखता है जैसा कि युगांडा की ईदी अमीन, फिलीपींस की मार्कोस आदि एकाधिकारवादी सरकारों के समय देखा गया है.
अत: लोकतंत्न की जरूरत इसलिए है कि नौकरशाही को जनहितकारी दिशा में मोड़ा जा सके. लेकिन लोकतंत्न गहरे जनविरोधी आचरण को रोकने मात्न में सफल है. नौकरशाही के जनविरोधी चरित्न को जनसेवा में बदलने में लोकतंत्न असफल है जैसा कि भारत में देखा जाता है. इसलिए हमें अपनी नौकरशाही के जनविरोधी चरित्न और चीन की नौकरशाही के जनहितकारी चरित्न पर चर्चा करनी चाहिए और इस मामले में चीन से सीख लेनी चाहिए.