एन. के. सिंह का ब्लॉगः ग्रेटा! तुम्हारे सपने हमने नहीं, तुम्हारे पूर्वजों ने छीने

By एनके सिंह | Published: October 16, 2019 09:13 AM2019-10-16T09:13:39+5:302019-10-16T09:13:39+5:30

हमारे देश के प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी को इसी संयुक्त राष्ट्र की संस्था पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने पिछले वर्ष सबसे बड़े सम्मान  ‘पृथ्वी के चैंपियन’ से नवाजा और उसके एक साल पहले ही प्रधानमंत्नी ने पेरिस सम्मेलन में भारत को ग्रीनहाउस दुष्प्रभावों से मुक्त करने का संकल्प दुनिया के सामने दोहराया.

carbon emission: United Nations Environment Conference, your ancestors snatched your dreams | एन. के. सिंह का ब्लॉगः ग्रेटा! तुम्हारे सपने हमने नहीं, तुम्हारे पूर्वजों ने छीने

Demo Pic

Highlightsवह 16 वर्षीय बच्ची ग्रेटा थनबर्ग तो आपको याद होगी जो संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सम्मलेन (न्यूयॉर्क) में खुद रोई और दुनिया को लताड़ा- ‘आज हमें यहां नहीं, महासागर के उस पार स्कूल में होना चाहिए. क्या आप जानते हैं कि अगर प्रति-व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन की बात हो तो आज भी अमेरिका का प्रति-व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन हमसे दस गुना ज्यादा है यानी 16.5 टन प्रति-व्यक्ति जबकि ऑस्ट्रेलिया और कनाडा का सात गुना और रूस का छह गुना.  

वह 16 वर्षीय बच्ची ग्रेटा थनबर्ग तो आपको याद होगी जो संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सम्मलेन (न्यूयॉर्क) में खुद रोई और दुनिया को लताड़ा- ‘आज हमें यहां नहीं, महासागर के उस पार स्कूल में होना चाहिए. परंतु तुमने अपने खोखले वादों से बचपन में ही मेरे सपने तोड़े, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? तुमने मुङो झूठा आश्वासन दिया. फिर भी मैं तो शायद खुशनसीब हूं लेकिन करोड़ों लोग मर रहे हैं, पूरा पारिस्थितिकी तंत्न ढह रहा है.. तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?’

नहीं ग्रेटा, ये सपने हमने नहीं तुम्हारे मां-बाप, तुम्हारे दादाओं और तुम्हारे पुरखों ने तोड़े हैं. और तुम गलत हो. ये आज भी तोड़ रहे हैं. तुम खुशकिस्मत नहीं हो. आज भी तुम्हारा स्वीडन, जहां से तुम अटलांटिक महासागर को पार कर न्यूयॉर्क आईं, भारत के मुकाबले करीब तीन गुना प्रति-व्यक्ति कार्बन छोड़ता है और बांग्लादेश व पाकिस्तान के मुकाबले क्र मश: दस गुना और सात गुना.

हमारे देश के प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी को इसी संयुक्त राष्ट्र की संस्था पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने पिछले वर्ष सबसे बड़े सम्मान  ‘पृथ्वी के चैंपियन’ से नवाजा और उसके एक साल पहले ही प्रधानमंत्नी ने पेरिस सम्मेलन में भारत को ग्रीनहाउस दुष्प्रभावों से मुक्त करने का संकल्प दुनिया के सामने दोहराया. लेकिन जब वहां आरोप की दिशा अपनी ओर घूम गई तो अमेरिका इतना नाराज हुआ कि उसने इस संगठन से अपने को बाहर कर लिया.  

क्या आप जानते हैं कि अगर प्रति-व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन की बात हो तो आज भी अमेरिका का प्रति-व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन हमसे दस गुना ज्यादा है यानी 16.5 टन प्रति-व्यक्ति जबकि ऑस्ट्रेलिया और कनाडा का सात गुना और रूस का छह गुना.  क्या इन्हें ग्रेटा के विलाप-मिश्रित गुस्से पर शर्म आती है? ग्रेटा के सपने तो 250 साल से तोड़े जा रहे हैं जब से पश्चिमी दुनिया ने औद्योगिक क्रांति शुरू की थी. इस समस्या में तथाकथित संपन्न पश्चिम का 85 प्रतिशत योगदान रहा है.

हां, यहां यह बताना जरूरी है कि भारत अमेरिका और चीन जैसे देशों के बाद कार्बन उत्सर्जन में चौथे स्थान पर है. लेकिन भारत एक निम्न-मध्यम आय वाला देश है जबकि बाकी अन्य हर तरह से संपन्न और समृद्ध. हर साल भारत के इस उत्सर्जन में पांच फीसदी का इजाफा हो रहा है जो चिंता का विषय है. लेकिन ध्यान रहे कि एक विकासशील देश में हर व्यक्ति को ऊर्जा की जरूरत ज्यादा होती है जीवन-स्तर बेहतर करने के लिए. 

आज भी एक स्वीडिश नागरिक एक भारतीय के मुकाबले 12 गुना, अमेरिकी नागरिक 11 गुना और चीन का नागरिक ढाई गुना ज्यादा ऊर्जा इस्तेमाल करता है. हम तो वैश्विक औसत से भी एक-तिहाई इस्तेमाल करते हैं. यूएई सबसे ज्यादा प्रति-व्यक्ति ऊर्जा की खपत करता है. क्या गरीब भारत आज ऊर्जा के महंगे लेकिन पर्यावरण के लिए उपयुक्त ऊर्जा स्रोतों पर पूरी तरह शिफ्ट कर सकता है? जबकि आज भी कोयला आधारित ताप ऊर्जा हमारी 62 प्रतिशत जरूरत पूरी करती है.

Web Title: carbon emission: United Nations Environment Conference, your ancestors snatched your dreams

विश्व से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे