ब्लॉगः बहुत पहले लिखी जा चुकी थी यूक्रेन युद्ध की प्रस्तावना
By रहीस सिंह | Published: March 11, 2023 10:26 AM2023-03-11T10:26:55+5:302023-03-11T10:28:08+5:30
रूस-यूक्रेन युद्ध ऐसे ही कारणों का परिणाम है। यह अलग बात है कि पश्चिमी पक्ष इसके लिए रूस को कठघरे में खड़ा कर रहा है और दूसरा पक्ष पश्चिमी ताकतों को। गौर से देखें तो रूस-यूक्रेन युद्ध वर्ष 2013-14 में ही शुरू हो गया था, जिसकी प्रस्तावना काफी पहले लिखी जा चुकी थी, 2022 से तो इसका उपसंहार लिखना आरंभ हुआ जो अभी तक पूरा नहीं हो पाया है।
दुनिया ने पिछले कुछ वर्षों के अंदर तहरीर स्क्वायर, इंडिपेंडेंट स्क्वायर, कैपिटल हिल जैसी ऐसी अनेक घटनाएं देखीं। ये घटनाएं एक तरफ जनमानस के गुस्से की अभिव्यक्तियों का प्रारूप थीं जो संभवतः व्यवस्था से असंतुष्टि का परिणाम थीं और दूसरी तरफ ये राष्ट्रीय संस्थाओं एवं वैश्विक संस्थानों पर एक प्रश्नवाचक चिह्न भी थीं, जो यह बता रही थीं कि ये अपने कर्तव्यों का अनुपालन करने में अक्षम रहीं।
रूस-यूक्रेन युद्ध ऐसे ही कारणों का परिणाम है। यह अलग बात है कि पश्चिमी पक्ष इसके लिए रूस को कठघरे में खड़ा कर रहा है और दूसरा पक्ष पश्चिमी ताकतों को। गौर से देखें तो रूस-यूक्रेन युद्ध वर्ष 2013-14 में ही शुरू हो गया था, जिसकी प्रस्तावना काफी पहले लिखी जा चुकी थी, 2022 से तो इसका उपसंहार लिखना आरंभ हुआ जो अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। इसके लिए कोई एक दोषी नहीं है यह तो स्पष्ट है लेकिन यह अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है कि इसने दुनिया को किस सीमा तक प्रभावित किया है और दुनिया ने इससे सीखा क्या है? एक सवाल यह भी है कि इस युद्ध में अब तक जीता कौन है और हारा कौन?
पुतिन ने जब 24 फरवरी 2022 को युद्ध की घोषणा की थी तो उन्होंने अपने एक घंटे के भाषण में कुछ महत्वपूर्ण बातें कही थीं। ये बातें इस युद्ध की पृष्ठभूमि को 1991 तक ले जाती हैं जब सोवियत संघ का विघटन हुआ था। रूस ने इसे डकैती के रूप में देखा था। यह ठीक वैसा ही विचार था जैसा कि कभी हिटलर और मुसोलिनी का वर्साय संधि के बाद दिखा था। सभी जानते हैं कि इससे नाजीवाद और फासीवाद पनपा था और अंततः दुनिया को विश्व युद्ध तक ले गया था। रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि भी कुछ हद तक इतिहास को दोहराती हुई दिख रही है।
दुनिया भर की सरकारें, व्यावसायिक प्रतिष्ठान और परिवार इस युद्ध के आर्थिक प्रभावों का शिकार हो रहे हैं। ऊर्जा की निरंतर ऊंची होती कीमतों और बढ़ती मुद्रास्फीति ने यूरोप को मंदी के मुहाने तक पहुंचा दिया है जहां से फिलहाल अभी यूरोप बाहर आ भी नहीं पाएगा। यही नहीं उच्च खाद्यान्न कीमतों ने विशेषकर विकासशील दुनिया में भूख और अशांति की व्यापकता को और गहरा किया है।
जो भी हो, अमेरिका और यूरोप इसलिए खुश हो सकते हैं कि वे इस युद्ध में रूस को काफी नुकसाने पहुंचाने में सफल रहे हैं। उन्हें यह भी तसल्ली हो सकती है कि रूसी सेना की अक्षमता को बेनकाब कर रूसी समाज को भी बेपर्दा कर दिया है। दूसरी तरफ पुतिन को इस बात की खीझ हो सकती है कि रूसी फौज यूक्रेन और जेलेंस्की को सबक क्यों नहीं सिखा पाई। लेकिन खुशी और खीझ के बीच का जो सच है वह नेपथ्य में चला गया।