डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: चिन को धरती निगल गई या आसमान ?

By विजय दर्डा | Published: July 31, 2023 07:16 AM2023-07-31T07:16:58+5:302023-07-31T07:16:58+5:30

पूरी दुनिया के लिए नासूर और अबूझ पहले की तरह है हमारा खुराफाती पड़ोसी चीन. आखिर कहां गुम हो गए उसके विदेश मंत्री चिन गांग?

Blog of Dr. Vijay Darda: Where did foreign minister of China Qin Gang goes missing | डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: चिन को धरती निगल गई या आसमान ?

डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: चिन को धरती निगल गई या आसमान ?

चीन से नई खबर यह है कि उसके विदेश मंत्री के रूप में पूरी दुनिया में विख्यात हो रहे चिन गांग अचानक गायब हो गए हैं. एक महीने से ज्यादा से उनका कोई अता-पता नहीं है. कम्युनिस्ट पार्टी के विदेश मामलों के प्रमुख वांग यी ने फिर से विदेश मंत्री का पद संभाल लिया है.

कमाल की बात है कि गांग को राष्ट्रपति शी जिनपिंग का अत्यंत करीबी माना जा रहा था लेकिन उनके गायब होने पर पूरी चीनी सरकार ने चुप्पी साध रखी है. वैसे चीन के लिए इस तरह की घटना कोई नई बात नहीं है. पहले भी मंत्री और अधिकारी गायब होते रहे हैं और फिर उनमें से ज्यादातर का कभी कोई सुराग नहीं मिला.

गांग की चर्चा करने से पहले चीन के सबसे बड़े उद्योगपति जैक मा की याद आपको दिला दें. अक्तूबर 2020 में जैक ने एक वित्तीय सम्मेलन में कह दिया कि बैंकों में सरकार का मोहरा बनने की मानसिकता है. इस एक बयान के बाद जैक मा अचानक गायब हो गए. उनकी कंपनियों को 850 अरब डॉलर से ज्यादा का नुकसान उठाना पड़ा. अब तीन साल बाद उन्हें फिर से चीन में देखे जाने की चर्चा है.

इससे आप समझ सकते हैं कि चीन में कोई कितना भी प्रभावशाली हो, यदि वह सरकार की नीतियों की जरा सी भी आलोचना कर दे तो उसका क्या हश्र हो सकता है! गांग ने ऐसी कोई आलोचना की हो, ऐसी जानकारी किसी के पास नहीं है तो फिर वे क्यों गायब हो गए? सोशल मीडिया पर एक टीवी प्रेजेंटर के साथ उनके प्रेम संबंधों की चर्चा हो रही है लेकिन चीन में इस तरह का प्रेम प्रसंग कानूनी रूप से जुर्म नहीं है इसलिए गांग के गायब होने का केवल यह कारण नहीं हो सकता! कहीं कुछ है जिसे चीन छुपा रहा है. वैसे भी वह अपने देश की बातों को दुनिया के सामने नहीं आने देता क्योंकि वहां की कम्युनिस्ट पार्टी तानाशाह की तरह काम करती है. शी जिनपिंग के राष्ट्रपति बनने के बाद यह तानाशाही और बढ़ती ही गई है.

शी जिनपिंग एक तरफ अपने देश की बात छिपाते हैं तो दूसरे देशों को हर तरह से कब्जे में करने की साजिश भी रचते रहते हैं. चीन एक तरफ अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती दे रहा है तो दूसरी तरफ अपने पड़ोसी देश ताइवान को निगल जाने की फिराक में है. यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद उसका मनोबल और बढ़ गया है. अभी वह चुप है तो उसके पीछे यह भय है कि ताइवान को बचाने यदि अमेरिका आ गया तो पूरा नजारा बदल सकता है.

चीन धमकी तो देता है लेकिन जंग में नहीं पड़ना चाहता क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था चौपट हो जाएगी. आज दुनिया के 60 से अधिक देशों को वह पैसे की बदौलत ही गुलाम बनाने की कोशिश कर रहा है. श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह इस बात का उदाहरण है. श्रीलंका कर्ज नहीं चुका पाया तो हंबनटोटा बंदरगाह 99 साल के लिए चीन के पास चला गया. इस बंदरगाह पर चीनी कब्जा भारत के लिए खतरे की घंटी बन चुका है.

इधर चीन ऐसी हरकतें लगातार कर रहा है जिससे हिंदुस्तान परेशान होता रहे. मैंने इसी कॉलम में लिखा था कि मणिपुर में आज जो कुछ भी हो रहा है उसके पीछे चीन का हाथ है. ड्रग्स तस्करों और म्यांमार में रह रहे बहुत से उग्रवादियों के माध्यम से मणिपुर को जलाने में वह प्रमुख भूमिका निभा रहा है. पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल नरवणे ने पिछले सप्ताह इस आशंका का खुलासा भी किया है. मणिपुर में हस्तक्षेप के बीच चीन ने एक और ऐसी हरकत की है जिससे हिंदुस्तान मानसिक रूप से दबाव में आए. उसने भारतीय वुशु टीम के तीन खिलाड़ियों को चीन में होने वाली प्रतियोगिता के लिए स्टेपल्ड वीजा जारी किया.

स्टेपल्ड वीजा एक कागज होता है जिसे चीन पासपोर्ट के साथ जोड़ देता है और वीजा जारी करने वाली मुहर उस कागज पर लगाता है न कि पासपोर्ट पर! उसने अरुणाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के रहने वालों के लिए यह हरकत बार-बार की है. स्वाभाविक है कि हिंदुस्तान ने आपत्ति जताई और पूरी टीम का दौरा रद्द कर दिया.

आपको याद होगा कि 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की यात्रा और 2020 में गृह मंत्री अमित शाह की अरुणाचल यात्रा को लेकर भी चीन ने आपत्ति जताई थी. हाल के दिनों में अपने नक्शे में उसने अरुणाचल प्रदेश के कई शहरों और कस्बों के नाम भी बदल दिए. चीन कहता है कि 90 हजार वर्ग किमी का इलाका उसका है जबकि हकीकत यह है कि अक्साई चिन में उसने हमारी 38 हजार वर्ग किमी जमीन दबा रखी है. कभी डोकलाम में तो कभी तवांग में हरकतें  करता है तो कभी सीमा के दूसरे क्षेत्रों में! करीब तीन हजार पांच सौ किमी सीमा रेखा के बिल्कुल पास उसने सैन्य ठिकाने बना रखे हैं. बार-बार वह सैन्य ताकत दिखाने की कोशिश करता है लेकिन उसे इस बात का एहसास भी है कि यह 1962 का भारत नहीं है!

चीन ने एक और बड़ी चाल में भारत को फंसाया हुआ है. न जाने क्यों भारत भी इसमें फंसता गया है. 2021-22 का आंकड़ा देखें तो भारत ने विभिन्न चीजों के आयात पर जितना खर्च किया उसमें सबसे ज्यादा 15.42 प्रतिशत की हिस्सेदारी चीन की रही. न्यूक्लियर रिएक्टर्स से लेकर केमिकल, फर्टिलाइजर, प्लास्टिक सामान, ऑटो पार्ट्स, आयरन, स्टील और एल्युमीनियम के मामले में भारत बुरी तरह चीन पर निर्भर हो चुका है.

जरा सोचिए कि आज चीन से फर्टिलाइजर का आयात बंद हो जाए तो हमारी खेती का क्या होगा? कूटनीति में बहुत पुरानी कहावत है कि जिस देश से खतरे की आशंका हो, उस पर अपनी निर्भरता खत्म कर देनी चाहिए लेकिन दुर्भाग्य है कि एक तरफ चीन से तनाव बढ़ता जा रहा है तो दूसरी ओर व्यापार भी बढ़ता जा रहा है. पिछले साल दोनों देशों के बीच व्यापार 8.4 प्रतिशत बढ़ा है. चीन से भारत में आयात 21.7 प्रतिशत बढ़ा है जबकि भारत से चीन को होने वाले निर्यात में 37.9 प्रतिशत की गिरावट आई है. भारत का व्यापार घाटा 100 अरब डॉलर से ज्यादा जा पहुंचा है.

हालात वाकई बहुत खराब हैं. चीन को उसी की शैली में जवाब देने की जरूरत है. हमें चीन पर अपनी निर्भरता समाप्त करनी होगी तभी हम उससे लोहा ले सकते हैं. दुनिया के लिए नासूर बने इस देश का इलाज बहुत जरूरी है. नासूर बड़ी तकलीफ देता है!

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