अवधेश कुमार का ब्लॉग: मुशर्रफ के मृत्युदंड पर उठते सवाल

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 20, 2019 07:15 AM2019-12-20T07:15:24+5:302019-12-20T07:15:24+5:30

मुशर्रफ पर जब 31 मार्च 2014 को देशद्रोह के मामले में आरोप तय किए गए तब भी इस पर प्रश्न उठाने वाले लोग थे. परवेज मुशर्रफ पर तीन नवंबर 2007 को अतिरिक्त संवैधानिक आपातकाल लागू करने के आरोप हैं.

Avadhesh Kumar blog: Questions arising over the death penalty of Musharraf | अवधेश कुमार का ब्लॉग: मुशर्रफ के मृत्युदंड पर उठते सवाल

अवधेश कुमार का ब्लॉग: मुशर्रफ के मृत्युदंड पर उठते सवाल

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ को वहां के एक विशेष न्यायालय द्वारा मौत की सजा असाधारण घटना है. पाकिस्तान में इसके पहले किसी सेना प्रमुख को फांसी की सजा नहीं दी गई थी. एक व्यक्ति जो सेना का प्रमुख रहा हो, तीनों सेना का मुख्य कमांडर रहा हो, बाद में राष्ट्रपति पद पर जा चुका हो उसे देश के साथ गद्दारी करने की सजा इस रूप में मिले यह पाकिस्तान के लिए भी हैरत की घटना है.

मुशर्रफ को लेकर विशेष न्यायालय की मंशा पर अनेक सवाल खड़े होते हैं. न्यायालय सरकार से कह सकती थी कि उनकी बीमारी को देखते हुए उनकी उपस्थिति या उनके बयान दर्ज करवाने की व्यवस्था करे. मुशर्रफ पर जब 31 मार्च 2014 को देशद्रोह के मामले में आरोप तय किए गए तब भी इस पर प्रश्न उठाने वाले लोग थे.

परवेज मुशर्रफ पर तीन नवंबर 2007 को अतिरिक्त संवैधानिक आपातकाल लागू करने के आरोप हैं. उस समय मुशर्रफ का मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार चौधरी से तनाव हो गया था और उन्होंने उनको हटाकर नए मुख्य न्यायाधीश की नियुक्तिकी थी. इस तरह उनका टकराव न्यायपालिका के एक वर्ग से हो गया था. हालांकि बाद में उन्होंने उनकी पुनर्नियुक्ति के उच्चतम न्यायालय के आदेश को स्वीकार किया.

पाकिस्तान का न्यायालय कट्टरपंथियों से भरा हुआ है. इससे पहले यह कानून किसी पर लागू नहीं हुआ था. मुशर्रफ का अंत करना तय था. मुशर्रफ सैन्य शासक जरूर थे लेकिन आप उनको तानाशाह नहीं कह सकते. शिक्षा के आधुनिकीकरण से मीडिया की स्वतंत्रता और उसके विस्तार का पूरा आधार मुशर्रफ ने बनाया था. इस कारण उनके कुछ समर्थक पाकिस्तान में आज भी हैं.

चूंकि इस कानून के तहत पहली बार सजा हुई है इसलिए आगे क्या हो सकता है इस पर पाकिस्तान के कानूनविद ही एक राय नहीं हैं. सेना को यह नागवार गुजरा है. सेना के लिए यह सहन करना मुश्किल है कि उसके पूर्व प्रमुख को फांसी की सजा मिल जाए. पाकिस्तान के इंटर सर्विस पब्लिक रिलेशंस या आईसीपीआर ने ट्वीट करके सेना का मंतव्य स्पष्ट कर दिया है.

इसमें कहा गया है कि पूर्व सेना प्रमुख, स्टाफ कमेटी का जॉइंट चीफ और पूर्व राष्ट्रपति जिसने 40 साल तक देश की सेवा की और युद्धों में भाग लिया, गद्दार नहीं हो सकता. सेना का यह सामान्य वक्तव्य नहीं है. इसमें न्यायालय के गठन से लेकर पूरी प्रक्रिया को असंवैधानिक कहा गया है. सेना के मंतव्य को नजरअंदाज कर मुशर्रफ को फांसी पर लटकाना आसान नहीं होगा. इस तरह यह फैसला इमरान सरकार के लिए भी समस्या का कारण बनेगा.

Web Title: Avadhesh Kumar blog: Questions arising over the death penalty of Musharraf

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