दो धोखेबाजों का मिलन यदि हुआ तो क्या गुल खिलेगा?

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: November 6, 2025 07:02 IST2025-11-06T07:02:16+5:302025-11-06T07:02:40+5:30

चीन से निपटने के लिए ओबामा भारत को साथ लेने के पक्षधर थे.

America and China If two cheaters meet what will happen | दो धोखेबाजों का मिलन यदि हुआ तो क्या गुल खिलेगा?

दो धोखेबाजों का मिलन यदि हुआ तो क्या गुल खिलेगा?

अमेरिका और चीन में वैसे तो कुछ भी समानता नहीं है, दोनों दो ध्रुवों पर खड़े हैं. एक-दूसरे की हैसियत को नष्ट करने के लिए किसी भी सीमा को पार करने की तमन्ना रखते हैं लेकिन दोनों में एक समानता गजब की है! दोनों ही दुनिया के दो बड़े धोखेबाज देश हैं. अब इन दोनों धोखेबाजों ने दुनिया के दूसरे देशों को दरकिनार करने के लिए एक मंच पर आने की राह पकड़ने के संकेत दिए हैं. ट्रम्प ने पहले तो चीन को टैरिफ वार से दबाने की कोशिश की लेकिन जल्दी ही उन्हें पता चल गया कि ये दबने वाला नहीं है तो अब उसे साथ लेने की रणनीति बनाने मेंं जुट गए हैं.

ट्रम्प अब कह रहे हैं कि चीन और अमेरिका फंक्शनली इक्वल यानी कार्यात्मक रूप से एक धरातल पर हैं. स्वाभाविक रूप से चीन ऐसी किसी भी पहल का स्वागत करेगा क्योंकि अमेरिका यदि उसे अपने समान मान रहा है तो यह एक तरह से अमेरिका की पराजय है. अमेरिका प्रारंभ से ही चीन को अपने प्रबल प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखता रहा है. उसे घेरने की कोशिश करता रहा है ताकि चीन उन्नति के रास्ते पर ज्यादा आगे न जा पाए लेकिन चीन ने अमेरिका की ऐसी हर कोशिश को नाकाम कर दिया और कई मामलों में अमेरिका की नस उसने दबा रखी है. यही कारण है कि ट्रम्प अब जी-2 यानी अमेरिका और चीन की दोस्ती की बात कर रहे हैं.

उनका मकसद है कि दोनों देश मिलकर विश्व व्यवस्था को संचालित करें. मगर चीनी कूटनीतिज्ञ इतने शातिर हैं कि अमेरिका की हर पुरानी हरकत का विश्लेषण उन्होंने कर रखा है. दुनिया यह कैसे भूल सकती है कि दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिका और सोवियत रूस एक खेमे में थे लेकिन बाद में दोनों कट्टर दुश्मन बन गए! लंबे अरसे का शीतयुद्ध पूरी दुनिया को याद है तो चीन को क्यों याद नहीं होगा. चीन इस बात को समझ रहा होगा कि अमेरिका ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया है तो उसमें धोखेबाजी का अंश जरूर होगा.

ट्रम्प का मकसद चीन को या दुनिया को महान बनाना नहीं है. अमेरिका तो बस यही चाहता है कि पूरी दुनिया उसके कदमों में रहे. वह खुद के पास परमाणु हथियारों का जखीरा रखता है और दूसरा कोई देश परमाणु परीक्षण करता है तो उस पर प्रतिबंध लगाता है! चीन जानता है कि सोवियत रूस को तोड़ने वाली शक्ति और कोई नहीं, सीआईए ही थी! चीन को यह भी याद होगा कि ट्रम्प ने अपने पहले कार्यकाल में भी चीन को शत्रु कहा था.

फिर अचानक जॉर्ज बुश के कार्यकाल में अर्थशास्त्री फ्रेड बर्गस्टन द्वारा गढ़े गए शब्द चिमेरिका (चीन और अमेरिका) का खयाल ट्रम्प को कैसे आ गया? चिमेरिका शब्द का उपयोग इस उम्मीद में किया गया था कि व्यापार असंतुलन, जलवायु परिवर्तन और वित्तीय स्थिरता जैसी चुनौतियों  से निपटने के लिए अमेरिका और चीन के बीच सहयोग पनपे. मगर बराक ओबामा ने इस सोच को ठंडे बस्ते में डाल दिया था. चीन से निपटने के लिए ओबामा भारत को साथ लेने के पक्षधर थे.

विशेषज्ञ मानते हैं कि अमेरिका अपने को भले ही शातिर समझे और चीन को अपने जाल में उलझाने की कोशिश करे लेकिन हकीकत यह भी है कि चीन खुद ही बहुत बड़ा धोखेबाज है. दोनों का मिलन यदि होता है तो यह दो धोखेबाजों का मिलन होगा. यह मिलन यदि हुआ तो कुछ नया ही गुल खिलेगा!

Web Title: America and China If two cheaters meet what will happen

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