ब्लॉग: विकास का सशक्त माध्यम है टेलीविजन
By रमेश ठाकुर | Published: November 21, 2023 01:21 PM2023-11-21T13:21:23+5:302023-11-21T13:24:07+5:30
टेलीविजन की पकड़ सिर्फ मनोरंजन तक ही नहीं है बल्कि समाचार, विचार, शिक्षा और जागरूकता जैसे अनेक क्षेत्रों में कीर्तिमान स्थापित किए हैं। बात साल 1996 की है, जब पहली बार विश्व टेलीविजन फोरम की याद में हर साल 21 नवंबर को 'विश्व टेलीविजन दिवस' मनाने का प्रचलन शुरू हुआ।

फाइल फोटो
सूचना और मनोरंजन का बड़ा हिस्सा आधुनिक काल में टेलीविजन पर आकर ठहर गया है। टेलीविजन दर्शकों को उनकी पसंद की सारी मनचाही सामग्री घर बैठे परोस रहा है।
अन्य साधन जैसे रेडियो ने जहां आवाज और अखबार ने पठनीय माध्यमों से सूचनाओं को पंख लगाए हैं, वहीं टेलीविजन ने संचार को दृश्य के तौर पर आंखें प्रदान कर दी हैं। टेलीविजन की पकड़ सिर्फ मनोरंजन तक ही नहीं है बल्कि समाचार, विचार, शिक्षा और जागरूकता जैसे अनेक क्षेत्रों में कीर्तिमान स्थापित किए हैं।
बात साल 1996 की है, जब पहली बार विश्व टेलीविजन फोरम की याद में हर साल 21 नवंबर को 'विश्व टेलीविजन दिवस' मनाने का प्रचलन शुरू हुआ। उसके बाद संयुक्त राष्ट्र ने लोगों के निर्णय की क्षमता पर ऑडियो-विजुअल मीडिया के बढ़ते प्रभाव और अन्य प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने में टीवी की संभावित भूमिका को पहचानने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया।
टेलीविजन की ताकत ने उसे सर्वसम्मति से पास करवा दिया। भारत में टेलीविजन प्रसारण की शुरुआत दिल्ली से 15 सितंबर, 1959 को हुई, जिसने कुछ सालों में तेजी से रफ्तार पकड़ी।
बहरहाल, टीवी के आविष्कार की जहां तक बात है, तो एक प्रसिद्ध स्कॉटिश इंजीनियर जॉन लॉगी बेयर्ड ने साल 1924 में टीवी का आविष्कार किया। फिर 1927 में संसार में पहले वर्किंग टेलीविजन का निर्माण हुआ, जिसे सितंबर की पहली तारीख और सन् 1928 को प्रेस के सामने प्रस्तुत किया गया। इसके बाद टीवी ने अपना ऐसा प्रभाव छोड़ा, जिसके सामने समूचा संसार नतमस्तक हो गया।
पत्रकारिता क्षेत्र में टीवी की महत्ता को कोई कमतर नहीं आंक सकता। दरअसल, दृश्य टीवी की ताकत होते हैं। कवरेज के दौरान दिखाए गए दृश्यों पर दुनिया आंख मूंदकर विश्वास करती है। बेशक, भारत में टेलीविजन प्रसारण की शुरुआत देरी से हुई हो, पर हिंदुस्तान में टेलीविजन पत्रकारिता का इतिहास काफी पुराना है।
प्रसारण क्षेत्र पर आजादी के बाद दूरदर्शन का लगभग तीन दशकों तक एकाधिकार रहा। लेकिन सन् 1990 के बाद से प्राइवेट चैनलों पर चौबीसों घंटे के समाचार की शुरुआत ने चीजों को बहुत तेजी से बदल डाला। पुरानी रूढ़ व्यवस्थाओं को बदलने से लेकर नए-नए वैज्ञानिक आविष्कारों तक सूचनाओं के आदान-प्रदान में टीवी की भूमिका अहम रही है और सिलसिला आगे भी बदस्तूर जारी रहेगा।