सवाल स्मार्टफोन का नहीं, स्मार्ट नजरिये का है !

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: February 19, 2025 06:56 IST2025-02-19T06:56:19+5:302025-02-19T06:56:23+5:30

इसे लेकर कुछ शोध भी हुए हैं कि यदि बच्चे के पास स्मार्टफोन है या नहीं है तो उससे पढ़ाई में क्या फर्क पड़ रहा है

The question is not about the smartphone but about smart attitude | सवाल स्मार्टफोन का नहीं, स्मार्ट नजरिये का है !

सवाल स्मार्टफोन का नहीं, स्मार्ट नजरिये का है !

तकनीक को लेकर बहस हर काल में चलती रही है. एक वर्ग तकनीक का स्वागत करता है तो दूसरा  वर्ग उस तकनीक के दुष्प्रभाव को लेकर चिंतित नजर आता है. यह स्वाभाविक भी है. किसी भी तकनीक का स्वागत भी होना चाहिए और उसके दुष्प्रभाव को कम करने के लिए जरूरी है कि आलोचनात्मक स्वर भी उठें. समस्या तब होती है जब हम बगैर किसी दुष्प्रभाव की चिंता किए उस तकनीक को अपने जीवन का ऐसा हिस्सा बना लेते हैं जिसकी वास्तव में जरूरत होती नहीं है. मसलन आप स्मार्टफोन का उदाहरण ले सकते हैं.

निश्चित रूप से स्मार्टफोन ने जिंदगी को स्मार्ट बना दिया है. इतनी सहूलियतें घोल दी हैं कि हम एक उपकरण में ढेर सारी खूबियां समेटे घूम रहे होते हैं. अब तो किसका फोन कितना स्मार्ट है, इसकी होड़ लगी रहती है. कंपनियां हर साल कोई न कोई मॉडल लेकर आ जाती हैं.

लोगों की क्रय क्षमता बढ़ी है इसलिए ये स्मार्टफोन खूब बिक भी रहे हैं. यहां तक अब सामान्य श्रमिकों के हाथ में भी स्मार्टफोन नजर आता है, भले ही वह सेकेंडहैंड ही क्यों न हो! स्मार्टफोन इस कदर सुलभ हो जाने का दुष्परिणाम यह हुआ है कि रील और वीडियो की एक नई पौध खड़ी हो गई है. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जो दुधमुंहा बच्चा अभी अपने पैरों पर खड़ा नहीं हुआ है और न स्पष्ट रूप से बोल पा रहा है, वह भी स्मार्टफोन को देखकर मुस्कुराने लगता है. हाथ में स्मार्टफोन थामने के लिए मचलने लगता है. उससे थोड़ा बड़ा बच्चा स्मार्टफोन चलाने का उपक्रम करने लगता है.

चिंता की बात यह है कि माता-पिता इससे चिंतित नहीं हो रहे हैं बल्कि वे दूसरों को बताते भी हैं कि उनका बच्च भले ही अभी बोल नहीं सकता लेकिन फोन संचालित करने लगा है. दरअसल स्मार्टफोन उस बच्चे के लिए प्रारंभिक रूप से तो खिलौना है लेकिन वीडियो की दुनिया उसे कब अपने आगोश में ले लेती है, इसका अंदाजा भी नहीं हो पाता है. स्कूल पहुंचते-पहुंचते तो बच्चों को स्मार्टफोन की लत लग चुकी होती है.

यह स्थिति पूरी दुनिया में है. जब उसे स्मार्टफोन की लत लग जाएगी तो जाहिर सी बात है कि पढ़ाई में व्यवधान पैदा होगा. इससे निपटने के लिए दुनिया के कई देशों ने स्कूलों में स्मार्टफोन लाने पर प्रतिबंध लगाया हुआ है. इसे लेकर कुछ शोध भी हुए हैं कि यदि बच्चे के पास स्मार्टफोन है या नहीं है तो उससे पढ़ाई में क्या फर्क पड़ रहा है. ब्रिटेन, बेल्जियम और स्पेन में यह तथ्य उभर कर सामने आया है कि जिन स्कूलों ने स्मार्टफोन पर रोक लगाई, वहां पढ़ाई के नतीजों में काफी सुधार हुआ है.

लेकिन यह सिक्के का एक पहलू है. दूसरा पहलू यह भी है कि स्मार्टफोन पर जानकारियों का खजाना भरा हुआ है. एक क्लिक पर न जाने कितनी जानकारियां सामने आ जाती हैं. कोविड महामारी के दौरान तो दूरस्थ शिक्षा का यह सबसे बेहतरीन मॉडल भी बन गया था.

महत्वपूर्ण बात यह है कि इस संबंध में एक समग्र नीति तैयार करने की जरूरत है. भारत में इसे लेकर फिलहाल बहस तो हो रही है लेकिन कोई नीति निर्धारित नहीं हुई है. ज्यादातर लोग यही कह रहे हैं कि स्कूलों में स्मार्टफोन पर प्रतिबंध होना चाहिए लेकिन इसे लेकर हमारे पास शोध का डाटा नहीं है.

पहले हमें हर पहलू का विश्लेषण करना होगा. इसमें सबसे महत्वपूर्ण यह है कि बच्चों तक स्मार्टफोन के माध्यम से कौन सा डाटा पहुंचना चाहिए और कौन सा नहीं पहुंचना चाहिए. और इसका क्रियान्वयन कैसे होगा.

Web Title: The question is not about the smartphone but about smart attitude

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