गंभीर संकट परोस रहा है सोशल मीडिया
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: August 22, 2025 07:35 IST2025-08-22T07:34:58+5:302025-08-22T07:35:44+5:30
सके बाद इस तरह की कई साइट्स आईं लेकिन 2004 में फेसबुक के आगमन के साथ सोशल मीडिया की व्यापकता बढ़ी.

गंभीर संकट परोस रहा है सोशल मीडिया
अभी-अभी यह खबर आई है कि जो नवदंपति यानी पति-पत्नी सोशल मीडिया से दूर रहे हैं, वे ज्यादा खुश रहते हैं. क्या वाकई ऐसा है? और यदि ये सही है तो फिर सोशल मीडिया को लेकर क्या हमारे युवाओं को सतर्क होने की जरूरत नहीं है? परिस्थितियों का विश्लेषण तो यही कहता है कि सोशल मीडिया से उतना ही संपर्क रखा जाए जितना न्यूनतम रूप से आवश्यक है.
लोग इस बात को समझने भी लगे हैैं लेकिन क्रियान्वयन के स्तर पर हकीकत बिल्कुल उलट है. लोग खुद को सोशल मीडिया पर परोस देने के लिए उतावले रहते हैं और जाने-अनजाने अपनी निजी जानकारियां भी सोशल मीडिया पर उपलब्ध करा रहे हैं. ऐसा करते वक्त उनके दिमाग में शायद यह बात रहती ही नहीं है कि एक बार यदि आपने अपनी जानकारियां सोशल मीडिया के किसी भी प्लेटफॉर्म पर साझा दीं तो फिर उसे वापस ले पाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन हो जाता है. आपको लगता है कि जो जानकारी आपने साझा की थीं, उसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से डिलीट कर दिया तो वह खत्म हो गया लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं है.
जैसे ही आप कोई भी जानकारी शेयर करते हैं, उस प्लेटफॉर्म से जुड़े न जाने कितने दूसरे प्लेटफॉर्म जानकारी ले उड़ते हैं. इस तरह आपकी निजी बातें शेयर हो जाती हैं. यहां तक कि आपका मोबाइल लगातार आपकी जासूसी कर रहा होता है. आप आपसी बातचीत में कुछ खास सामग्री खरीदने या फिर उसके बारे में बातचीत करते हैं और जब अपना मोबाइल खोल कर किसी साइट पर जाते हैं तो उस चीज का विज्ञापन आपको दिखने लगता है.
इसका सीधा सा मतलब है कि आपका मोबाइल आपकी बातें सुन रहा है और बहुत सारे एप उन जानकारियों को सहेज रहे हैं. यह स्थिति तब है जब सोशल मीडिया वास्तव में 35 साल का भी नहीं हुआ है. आप जानते ही होंगे कि 1990 के दशक में सिक्स डिग्रीज नाम के सोशल प्लेटफॉर्म ने ऑनलाइन प्रोफाइल बनाने की शुरुआत की थी. उसके बाद इस तरह की कई साइट्स आईं लेकिन 2004 में फेसबुक के आगमन के साथ सोशल मीडिया की व्यापकता बढ़ी. आज एक्स से लेकर इंस्टाग्राम तक हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है.
आप किसी ट्रेन में सफर कर रहे हों या फिर कहीं होटल की लॉबी में बैठे हों, आप देखेंगे कि हर कोई मोबाइल में घुसा हुआ है. कुछ लोग संदेश के आदान-प्रदान का जरूरी काम कर रहे होंगे, लेकिन ज्यादातर लोग या तो फेसबुक पर जानकारियां शेयर कर रहे होते हैं या फिर रील्स देख रहे होते हैं. रील्स की इतनी लत लगी है लोगों में कि वे जरूरी काम भी भूल जाते हैं. कुछ लोगों के लिए यह कमाई का जरिया है तो बहुत सारे लोगों के लिए समय की बर्बादी, लेकिन कोई समझने को तैयार नहीं है.
खासकर हमारे युवाओं का ढेर सारा वक्त जाया हो रहा है. इसके साथ ही सोशल मीडिया अच्छी जानकारियों के साथ इतनी सारी बुराइयां परोस रहा है कि हमारे समाज पर इसका सीधा असर होने लगा है. अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर ऐसे रील्स परोसे जा रहे हैं जो किसी भी पोर्न फिल्म से कम नहीं हैं. मगर दुर्भाग्य यह है कि आप यदि इसकी शिकायत भी करते हैं तो फेसबुक आपकी शिकायत को रिजेक्ट कर देता है. उसकी नजर मेंं ऐसी रील्स में शायद कोई सामाजिक बुराई नहीं है!
संभवत: यही कारण है कि ऑस्ट्रेलिया ऐसा कानून बनाने जा रहा है कि 16 साल से कम उम्र के बच्चों को सोशल साइट्स का एक्सेस नहीं रहेगा. मान लीजिए कि हम भारत में भी ऐसा कर दें तो भी सवाल यह है कि क्या हम सोशल मीडिया के दुष्प्रभावों से अपने युवाओं को बचा पाएंगे? सवाल गंभीर है और हमारी सरकार और हमारे समाज और हर परिवार को इस पर सोचना चाहिए.