ब्लॉग: हम कितने कृत्रिम?

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: June 3, 2023 04:06 PM2023-06-03T16:06:19+5:302023-06-03T16:09:36+5:30

जेफ्री हिंटन ने एक बयान जारी कर कहा है कि कृत्रिम बौद्धिकता के रूप में उन्होंने एक ऐसी खतरनाक तकनीक विकसित की है जो निकट भविष्य में आपदा बन जाएगी.

How artificial are we? | ब्लॉग: हम कितने कृत्रिम?

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

तीन दशक से ज्यादा समय से मन, मनोभावों और मानसिकताओं की चिकित्सकीय परिवीक्षा करते हुए सबसे ज्यादा सामना मेरा ऐसे लोगों से हुआ जो जीवन में कभी न कभी आत्मघाती और विध्वंसक होने के बारे में सोचने लगे थे.

इस तरह के ख्याल मानवीय खामियों और कमजोरियों को उजागर करते हैं. लेकिन आप उन्हें क्या कहेंगे जो अपने साथ उस सृजन को भी तहस-नहस कर देना चाहते हैं कि जिसके लिए उन्होंने अपना सर्वस्व लगा दिया, सम्पूर्ण जीवन खपा दिया! ऐसी ही एक शख्सियत इन दिनों संसार भर में चर्चा का विषय है. 

इस शख्स का नाम है जेफ्री हिंटन. इन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई यानी कृत्रिम बौद्धिकता का तकनीकीकरण किया और इसे इस तरह विकसित किया कि आज यह मोबाइल के जरिये हर उस शख्स के पास है, जिसके हाथ में मोबाइल है. यह दीगर बात है कि यदि सौ लोगों के हाथ में मोबाइल है तो उनमें से नब्बे लोगों को तो मालूम ही नहीं है कि उनके पास एआई यानि कृत्रिम बौद्धिकता जैसी कोई तकनीक भी है.

जेफ्री हिंटन ने एक बयान जारी कर कहा है कि कृत्रिम बौद्धिकता के रूप में उन्होंने एक ऐसी खतरनाक तकनीक विकसित की है जो निकट भविष्य में आपदा बन जाएगी. उन्होंने हालांकि अपने बयान के जरिये इस तकनीक के वर्तमान स्वरूप में इस्तेमाल को लेकर अनभिज्ञता जताई और चिंता जाहिर की है लेकिन उनकी इस चिंतातुरता ने किसी के भी मन में उनके प्रति सहानुभूति नहीं पैदा की है. 

विध्वंस अथवा विध्वंसक चीजों या तकनीक को बनाने वाले खुद को कितना भी मासूम सिद्ध करने की कोशिश करें, किसी को भी उन पर विश्वास नहीं होता. कृत्रिम बौद्धिकता ने मनुष्य के भीतर से करुणा, विवेक, प्रेम और सहयोग जैसे गुणों को पूरी तरह कृत्रिम स्वरूप में विकसित कर दिया है.

अब आपको सचुमच विवेकी, करुणामयी, प्रेमी या सहयोगी होने की जरूरत नहीं बस आप साधन के तौर पर कृत्रिम बौद्धिकता का उपयोग करने वाले किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर खुद को इस रूप में दर्ज कर दीजिए, आपका काम खत्म. कृत्रिम बौद्धिकता ने मनुष्य और मनुष्यता को दांव पर लगा दिया है. 

मजेदार बात यह है कि कृत्रिम बौद्धिकता की इस तकनीक के जरिये पहले कुछ सकारात्मक और उपयोगी काम कर लोगों के दिल-दिमाग में इसके लिए स्थायी जगह बनाई गई और फिर इसका विध्वंसक स्वरूप में इस्तेमाल शुरू हुआ कि जिसके लिए इसे गढ़ा गया था.

कृत्रिम बौद्धिकता से उबरने का सबसे कारगर तरीका मेरे हिसाब से यही होगा कि एक मनुष्य के रूप में हम इस पड़ताल में इसी क्षण से जुड़ जाएं कि हमारे भीतर कितनी कृत्रिमता है और क्या अपनी कृत्रिमता को हम सही-सही समझ पा रहे हैं?

Web Title: How artificial are we?

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