नवसंवत्सर: लुप्त हो रही राष्ट्रीय पंचांग की पहचान, जानिए इस पंचांग की विलक्षणता

By प्रमोद भार्गव | Published: March 22, 2023 10:41 AM2023-03-22T10:41:16+5:302023-03-22T10:48:20+5:30

ऋग्वैदिक काल से ही चंद्रमास और सौर वर्ष के आधार पर की गई कालगणना प्रचलन में आने लगी थी, जिसे जन सामान्य ने स्वीकार किया। कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के आधार पर उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने विक्रम संवत की विधिवत शुरुआत की।

navasanvatsar The identity of the national almanac is disappearing know the uniqueness of this calendar | नवसंवत्सर: लुप्त हो रही राष्ट्रीय पंचांग की पहचान, जानिए इस पंचांग की विलक्षणता

नवसंवत्सर: लुप्त हो रही राष्ट्रीय पंचांग की पहचान, जानिए इस पंचांग की विलक्षणता

Highlights हमारे राष्ट्रीय पंचांग का आधार शक संवत है। इसके लागू होने के बाद भी हम इस संवत के अनुसार न तो कोई राष्ट्रीय पर्व व जयंतियां मनाते हैं और न ही लोक परंपरा के पर्व।

कालमान एवं तिथि गणना किसी भी देश की ऐतिहासिकता की आधारशिला होती है। किंतु जिस तरह से हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं को विदेशी भाषा अंग्रेजी का वर्चस्व धूमिल रहा है, कमोबेश यही हश्र हमारे राष्ट्रीय पंचांग, कैलेंडर का है। किसी पंचांग की काल गणना का आधार कोई न कोई प्रचलित संवत होता है। हमारे राष्ट्रीय पंचांग का आधार शक संवत है। इसके लागू होने के बाद भी हम इस संवत के अनुसार न तो कोई राष्ट्रीय पर्व व जयंतियां मनाते हैं और न ही लोक परंपरा के पर्व। इसके बनिस्बत हमारे संपूर्ण राष्ट्र के लोक व्यवहार में विक्रम संवत के आधार पर तैयार किए जाने वाले पंचांग प्रचलन में हैं। 

इस पंचांग की विलक्षणता है कि यह ग्रेगोरियन कैलेंडर से भी 57 साल पहले वर्चस्व में आ गया था, जबकि शक संवत की शुरुआत ईस्वी संवत के 78 साल बाद हुई थी। प्राचीन भारत और मध्य अमेरिका दो ही ऐसे देश थे, जहां आधुनिक सेकेंड से सूक्ष्मतर और प्रकाशवर्ष जैसे उत्कृष्ट कालमान प्रचलन में थे। अमेरिका में मय सभ्यता का वर्चस्व था। मय संस्कृति में शुक्र ग्रह के आधार पर कालगणना की जाती थी। विश्वकर्मा मय दानवों के गुरु शुक्राचार्य का पौत्र और शिल्पकार त्वष्टा का पुत्र था। मय के वंशजों ने अनेक देशों में अपनी सभ्यता को विस्तार दिया। इस सभ्यता की दो प्रमुख विशेषताएं थीं स्थापत्य कला और सूक्ष्म ज्योतिष व खगोलीय गणना में निपुणता। रावण की लंका का निर्माण इन्हीं मय दानवों ने किया था। मयों का गुरु भारत था।  
 
ऋग्वैदिक काल से ही चंद्रमास और सौर वर्ष के आधार पर की गई कालगणना प्रचलन में आने लगी थी, जिसे जन सामान्य ने स्वीकार किया। कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के आधार पर उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने विक्रम संवत की विधिवत शुरुआत की। इस दैनंदिन तिथि गणना को पंचांग कहा गया। किंतु जब स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अपना राष्ट्रीय संवत अपनाने की बात आई तो कहा गया कि भारतीय काल गणना में तिथियों और मासों का परिमाप घटता-बढ़ता है, इसलिए यह अवैज्ञानिक है। जबकि राष्ट्रीय न होते हुए भी सरकारी प्रचलन में जो ग्रेगोरियन कैलेंडर है, उसमें भी तिथियों का मान घटता-बढ़ता है। मास 30 और 31 दिन के होते हैं।

 दुनिया भर की कालगणनाओं में वर्ष का प्रारंभ वसंत के बीच या उसके आसपास होता है, जो फाल्गुन और चैत्र मास की शुरुआत होती है। इसी समय नई फसल पक कर तैयार होती है, जो एक ऋतुचक्र की शुरुआत का संकेत है। इसी दौरान चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी गुढ़ी पाड़वा से नया संवत्सर प्रारंभ होता है। जबकि ग्रेगोरियन में नए साल की शुरुआत पौष मास अर्थात जनवरी से होती है, जो किसी भी उल्लेखनीय परिर्वतन का प्रतीक नहीं है।
 

Web Title: navasanvatsar The identity of the national almanac is disappearing know the uniqueness of this calendar

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