नरेंद्र कौर छाबड़ा का ब्लॉग: मानवता के अनन्य रक्षक श्री गुरु गोबिंद सिंह जी

By नरेंद्र कौर छाबड़ा | Published: January 20, 2021 10:21 AM2021-01-20T10:21:34+5:302021-01-20T10:23:24+5:30

Narendra Kaur Chhabra Shri Guru Gobind Singh Ji jayanti the defender of humanity | नरेंद्र कौर छाबड़ा का ब्लॉग: मानवता के अनन्य रक्षक श्री गुरु गोबिंद सिंह जी

गुरु गोबिंद सिंह जयंती: मानवता के रक्षक

Highlightsगुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म सन् 1666 पौष सुदी सप्तमी के दिन हुआ थागुरु गोबिंद सिंह जी ने सन् 1699 में वैशाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना कीनांदेड़ में बिताया अपने जीवन का अंतिम समय, देश, धर्म तथा मानवता के लिए दिया बलिदान

पिता गुरु तेग बहादुर जी तथा माता गुजरी जी के घर पर गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म सन् 1666 पौष सुदी सप्तमी के दिन हुआ था. केवल 42 वर्ष की अपनी जीवन यात्रा में उन्होंने मानवता के हित के लिए जो अनुपम कार्य किए उनके समक्ष महान चिंतक भी नतमस्तक हो जाते हैं. 

उन्होंने मानव जाति को रसातल से निकालकर गले लगाया, उदास चेहरों पर प्रसन्नता की किरणों बिखेरते हुए, ऊंच-नीच का भेदभाव मिटाकर जन-जन को एक सूत्र में संगठित कर दिया. निर्जीव प्राय लोगों को जीना सिखाया. जहां वे परमात्मा के अनन्य भक्त थे तथा गुरु दरबार में मधुर कीर्तन द्वारा संगत का मन मोह लेते थे, वहीं अपने हाथों में कलम पकड़कर उच्च कोटि के साहित्य का सृजन किया. 

गुरु गोबिंद सिंह- एक महान योद्धा भी

उन्हीं हाथों से युद्ध के मैदान में तलवार तथा तीरंदाजी से दुश्मनों को शिकस्त दी. गुरु गोबिंद सिंह जी प्रभु के सच्चे भक्त थे. जिस प्रकार गुरु नानक देव जी तेरा तेरा का उच्चारण करते हुए प्रभु में एकरस हो जाते थे वैसे ही गुरु गोबिंद सिंह जी तू ही तू ही या हरि हरि उच्चारते हुए प्रभु के साथ एकरस हो जाते थे.

गुरु तेग बहादुर जी ने अपने सुपुत्र गुरु गोबिंद सिंह जी को उच्च से उच्च धार्मिक तथा सांसारिक शिक्षा दिलवाई. साथ ही उन्हें शस्त्र विद्या में भी निपुण किया. तीर तलवार उनके प्रिय हथियार थे. वे तलवार के धनी थे तथा तीरंदाजी में कोई उनके समक्ष टिक नहीं सकता था. 

गुरु गोबिंद सिंह एक महान जनरल भी थे. चमकौर की लड़ाई के समय थके हारे सिखों को मुगलों की लाखों की फौज से युद्ध करने की करामात उनके जैसा जनरल ही कर सकता था.

गुरु गोबिंद सिंह: खालसा पंथ की स्थापना

पहाड़ी राजाओं तथा औरंगजेब के अत्याचारों का सामना करते हुए गुरु जी ने अपने जीवन काल में सात युद्ध लड़े. जब गुरुजी ने देखा कि पिता के बलिदान के बाद भी औरंगजेब के अत्याचार प्रतिदिन बढ़ रहे हैं तो उन्होंने घोषणा की कि मैं ऐसे पंथ की स्थापना करूंगा जो डरकर लुक छिप कर दिन व्यतीत नहीं करेगा बल्कि हजारों लोगों की गिनती में ऐसा होगा जिसकी अलग ही पहचान होगी. सन् 1699 में एक वैशाख के दिन उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की.

खालसा पंथ की स्थापना गुरु जी की भारतवर्ष को अमूल्य देन है. उन्होंने जाति-पांति का भेदभाव मिटाकर जन-जन को एक सूत्र में बांध दिया. ऊंच-नीच के भेदभाव को दूर करने के लिए उन्होंने सबको एक ही स्थान पर बैठाकर एक ही प्याले से सबको अमृत पान कराया. 

इस प्रकार एकता तथा समानता को केवल एक सिद्धांत बनाकर ही नहीं छोड़ा वरन उसे दैनिक जीवन में कार्यान्वित किया. उन्होंने प्रत्येक सिख के नाम से पूर्व सरदार तथा अंत में सिंह का उच्चारण करना अनिवार्य कर दिया. 

रहन-सहन में समानता का समावेश करने के लिए उन्होंने प्रत्येक सिख को पांच ककार रखने का आदेश दिया. वे ककार इस प्रकार हैं- कृपाण ( तलवार), केश धारण करना अर्थात् बालों का अपमान न करना, कंघा (बालों की दो वक्त सफाई के लिए), कछहरा (विशेष प्रकार का जांघिया), कड़ा पहनना.

गुरु गोबिंद सिंह: नांदेड़ में बिताया जीवन का अंतिम समय

गुरु जी ने अपने जीवन का अंतिम समय नांदेड़ में बिताया. जब उन्हें एहसास हुआ कि उनका अंतिम समय निकट है तो उन्होंने कार्तिक दूज 1708 के दिन गुरु ग्रंथ साहिब जी को सिखों के गुरु घोषित करते हुए कहा कि अब देहधारी गुरु की परंपरा समाप्त की जा रही है. 

गुरु ग्रंथ साहिब हमारे ज्योति स्वरूप गुरु हैं हमारे हर प्रश्न का उत्तर देते हैं. सारे संसार का आध्यात्मिक ज्ञान गुरु ग्रंथ साहिब में निहित है. गुरु गोबिंद सिंह जी का जीवन त्यागमय था. उनका हृदय प्रेममय था, उनकी भुजाएं शक्तिपुंज थीं. उनकी दृष्टि निर्मल थी तथा बुद्धि दृढ़निश्चय से संपन्न थी. उनके ऊपर जो भी विपत्ति आई उसे उन्होंने हंसते हंसते ङोला. 

अपने देश, धर्म तथा मानवता के लिए उन्होंने अपने पिता, अपने चारों पुत्रों का तथा अपनी माता का बलिदान देकर स्वयं को भी न्यौछावर कर दिया. उनके समान निर्मल चरित्र और वीर महात्मा को पाकर देश धन्य हो गया. वे सही अर्थो में विश्व गुरु थे जिन्होंने मानव जाति को प्रभु रंग में रंगते हुए भ्रम, अंधविश्वासों से मुक्त, उच्च आदर्शो वाला सामाजिक तथा राजनैतिक जीवन जीने का तरीका सिखाया.

Web Title: Narendra Kaur Chhabra Shri Guru Gobind Singh Ji jayanti the defender of humanity

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