नरेंद्र कौर छाबड़ा का ब्लॉग: लोहड़ी- प्रकृति के प्रति आभार का पर्व
By नरेंद्र कौर छाबड़ा | Published: January 13, 2021 09:56 AM2021-01-13T09:56:07+5:302021-01-13T10:04:16+5:30
लोहड़ी का त्योहार आज मनाया जा रहा है. किसानों के लिए इस पर्व का विशेष महत्व है. यह त्यौहार धरती मां के प्रति इंसानों के प्रेम को दर्शाता है.
मकर संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी का त्यौहार आता है. पौष मास की अंतिम रात्रि के दिन इस त्यौहार को बड़े जोश, आनंद के साथ मनाया जाता है. इस पर्व का विशेष महत्व किसानों के लिए है.
पंजाब, हरियाणा में इन दिनों रबी की फसल लहलहाने लगती है. ठंड भी इस समय चरम पर होती है. रात के समय लकड़ियों को बोनफायर के रूप में इकट्ठा किया जाता है तथा सभी स्त्री-पुरुष, बच्चे अग्नि देवता की पूजा करते हुए चक्कर लगाते हैं और उसमें मूंगफली, पॉपकॉर्न, तिल, रेवड़ी आदि अर्पित करते हैं.
ईश्वर का धन्यवाद करते हैं कि उनके खेत सोने जैसी फसल से लहलहा उठे हैं. धरती मां के प्रति इंसानों के प्रेम को दर्शाने वाला यह त्यौहार है.
लोहड़ी को शीत ऋतु के जाने और वसंत ऋतु के आगमन के तौर पर भी देखा जाता है. अग्नि के माध्यम से फसलों का भोग लगाया जाता है और धन समृद्धि के लिए ईश्वर से प्रार्थना की जाती है.
कहा जाता है मुगल काल में बादशाह अकबर के समय दुल्ला भट्टी नाम का एक युवक पंजाब में रहता था. एक बार कुछ अमीर व्यापारी सामान के बदले इलाके की लड़कियों का सौदा कर रहे थे. तभी दुल्ला भट्टी ने वहां पहुंचकर लड़कियों को मुक्त कराया और उन लड़कियों की शादी हिंदू लड़कों से करवाई.
इस घटना के बाद से दुल्ला को भट्टी के नायक की उपाधि दी गई. इस पर एक गीत भी बनाया गया जिसे लोहड़ी पर जरूर गाया जाता है- सुंदर मुंदरिए हो, तेरा कौन विचारा हो
आज इस पर्व को मनाने के तौर-तरीकों में भी काफी परिवर्तन होने लगा है. सभी संबंधी मित्न इकट्ठे होते हैं. बधाइयों का आदान-प्रदान होता है.
बढ़िया पौष्टिक खाना, सरसों का साग मक्के की रोटी, गजक, रेवड़ी, गुड़ से बने पदार्थ परोसे जाते हैं जो ठंड के मौसम में बहुत लाभकारी होते हैं. नई दुल्हन और नवजात शिशु के लिए पहली लोहड़ी को बहुत शुभ माना जाता है.
रिश्तों में मिठास तथा नई ऊर्जा भरने का कार्य यह त्यौहार करता है. जीवन की व्यस्तताओं, तनाव, आपाधापी आदि को कुछ समय के लिए दूर करके सभी उमंग उत्साह से, प्रेम से, सौहाद्र्रपूर्ण वातावरण में स्वयं को ताजगी से भरपूर महसूस करते हैं.
कड़ाके की ठंड में अलाव के आसपास चक्कर लगाते हुए स्त्नी, पुरुष, बच्चे सभी नृत्य करते हैं. भांगड़ा, गिद्दा तथा लोकगीत गाकर अपना आनंद और खुशियां प्रकट करते हैं.