केवल रुपया-पैसा या भौतिक साधन ही वैभव नहीं, यहां पढ़िए धनतेरस के असली मायने
By विजय दर्डा | Updated: November 5, 2018 05:39 IST2018-11-05T05:39:07+5:302018-11-05T05:39:07+5:30
हमारी संस्कृति में संस्कार, अच्छी शिक्षा, उदारता और परोपकार को भी वैभवशाली व्यक्ति के प्रमुख लक्ष्णों में रखा गया है। ऐसे व्यक्ति समाज में सम्मान पाते हैं यानी ये सारे गुण हमारे लिए धन हैं।

केवल रुपया-पैसा या भौतिक साधन ही वैभव नहीं, यहां पढ़िए धनतेरस के असली मायने
विजय दर्डा
अंधेरे पर उजियारे की जीत के पर्व दीपावली की शुरुआत हम सब धनतेरस से करते हैं। मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि धनतेरस पर्व क्यों मनाया जाता है और इस पर्व का वास्तविक संदेश क्या है? पौराणिक ग्रंथों के पन्ने आप पलटेंगे तो धनतेरस पर्व को लेकर कई किस्से आपको मिल जाएंगे लेकिन जो सबसे महत्वपूर्ण किस्सा है, वह है समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में से एक धनवंतरि का। वे अमृत कलश लेकर निकले थे। मान्यता है कि धनवंतरि भगवान विष्णु के अंशावतार हैं और उन्हें देवताओं का वैद्य माना जाता है। आयुर्वेद की परंपरा उन्होंने शुरू की। इसीलिए आज के ही दिन धनवंतरि जयंती भी मनाते हैं।
तो इसका सीधा सा मतलब है कि धनतेरस का सबसे महत्वपूर्ण संदेश यह है कि हम अपने स्वास्थ्य को बेहतर रखें, अपने आसपास के माहौल को स्वस्थ रखें। हमारे बड़े बुजुर्ग कह गए हैं कि ‘पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया’। यानी आप स्वस्थ हैं तो सुखी हैं। माया यानी रुपए-पैसे का महत्व स्वास्थ्य के बाद ही आता है। मगर मौजूदा वक्त की हकीकत किसी से छिपी नहीं है। माया का स्थान पहला हो गया है और स्वास्थ्य सबसे अंतिम पायदान पर चला गया है।
मैं अभी कुछ दिन पहले स्वास्थ्य संबंधी एक रिपोर्ट पढ़ रहा था। रिपोर्ट ने मुझे चिंतित कर दिया। आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि भारत में 50 फीसदी से ज्यादा युवा महिलाएं पूरी तरह स्वस्थ नहीं हैं। उनमें खून की कमी है। जरा कल्पना कीजिए कि जब जननी स्वस्थ नहीं होगी तो अगली पीढ़ी के स्वस्थ होने की कल्पना हम कैसे कर सकते हैं। युवाओं में धूम्रपान और दूसरे नशे ने फैशन का रूप ले लिया है। वे कमजोर हो रहे हैं। बाहरी खानपान के कारण एक बड़े वर्ग को मोटापे ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है। वजिर्श तो करीब-करीब खत्म ही है। पहले गली-मोहल्लों में व्यायामशाला हुआ करती थी। अब व्यायामशाला ही दम तोड़ रही हैं। खेल के मैदान खत्म हो गए। बच्चों के लिए खेल का मतलब अब ज्यादातर कम्प्यूटर गेम्स हो गए हैं।
कहने का मतलब यह है कि युवाओं की सेहत पर देश की नजर नहीं है। यदि देश का युवा ही स्वस्थ नहीं होगा तो देश कैसे स्वस्थ बनेगा? विकास की राह पर बढ़ने के लिए देश का स्वस्थ होना बहुत जरूरी है। जब आप स्वस्थ होंगे तभी तो धन और वैभव हासिल करने के लिए मेहनत कर पाएंगे! जिंदगी में कुछ अर्जित करने के लिए मेहनत बहुत जरूरी है लेकिन ऐसी होड़ भी ठीक नहीं कि अपना स्वास्थ्य ही चौपट हो जाए! तो इस धनतेरस संकल्प लीजिए कि अपने स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाएंगे और अपनी अगली पीढ़ी को भी स्वस्थ रहने के लिए प्रेरित करेंगे।
हमारी संस्कृति में संस्कार, अच्छी शिक्षा, उदारता और परोपकार को भी वैभवशाली व्यक्ति के प्रमुख लक्ष्णों में रखा गया है। ऐसे व्यक्ति समाज में सम्मान पाते हैं यानी ये सारे गुण हमारे लिए धन हैं। अच्छी शिक्षा हमें भौतिक साधन एकत्रित करने में मदद करती है। जब हम उदार और परोपकारी होते हैं तो हमारे साथ ज्यादा से ज्यादा लोग जुड़ते चले जाते हैं।
यदि अच्छे लोगों का समूह आपके साथ है तो यह भी किसी धन से कम नहीं है। इसके सुखद परिणाम जीवन को बेहतर बनाते हैं। एक सबसे बड़ी चीज है संतोष! दुर्भाग्य से इस वक्त संतोष नाम का गुण दुर्लभ होता जा रहा है। एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ लगी हुई है। मैं प्रतिस्पर्धा को अच्छा मानता हूं। यह गुण सभी में होना भी चाहिए लेकिन होड़ अंधी और बेकाबू नहीं होनी चाहिए। इसमें संतोष का भाव भी होना चाहिए।
यदि व्यक्ति में संतोष का भाव होगा तो खुशहाल रहने में मदद मिलेगी। अभी कुछ दिन पहले मैं सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशंस नेटवर्क की वल्र्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2018 पढ़ रहा था। क्या आपको पता है कि खुशहाली के मामले में भारत 156 देशों में 133वें नंबर पर है? पिछले साल यानी 2017 की रिपोर्ट से तुलना करें तो पता चलता है कि हम 11 पायदान नीचे चले गए हैं। आश्चर्यजनक तो यह है कि पाकिस्तान, चीन और श्रीलंका हमसे आगे हैं और इन देशों की खुशहाली में सुधार हुआ है।
जानकारी के लिए बता दें कि पहले नाव्रे सबसे खुशहाल देश माना जाता था और पहले क्रम पर था लेकिन अब यह स्थान छोटे से देश फिनलैंड ने ले लिया है। इस खुशहाली के लिए हमें भी पूरी ताकत से प्रयास करना चाहिए। निजी स्तर पर हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम अपने आसपास ऐसा माहौल बनाएं जो विकास की गति को बढ़ाने वाला तो हो लेकिन उसमें इंसानियत के लिए भी जगह हो। जब हम बेहतर इंसान होंगे तो अंधेरे से लड़ पाएंगे और उजियारा फैला पाएंगे।