सतगुरु नानक प्रगटिया मिटी धुंध जग चानन होआ, नरेंद्र कौर छाबड़ा का ब्लॉग

By नरेंद्र कौर छाबड़ा | Published: November 30, 2020 12:34 PM2020-11-30T12:34:45+5:302020-11-30T12:36:15+5:30

गुरु नानक देवजी का जन्म सन 1469 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन पिता श्री कालू मेहता तथा माता तृप्ता के घर हुआ था.

Guru Nanak Jayanti 2020 prakash parv 551st birth anniversary Mitti Dhum Jag Chanan Hoa Narendra Kaur Chhabra Blog | सतगुरु नानक प्रगटिया मिटी धुंध जग चानन होआ, नरेंद्र कौर छाबड़ा का ब्लॉग

गुरु नानकजी भारत की अखंडता का पक्ष लेने वाले पूर्ण संत और कवि हैं जिनका उद्देश्य है ‘एक पिता एकस के हम बारिक.’ (file photo)

Highlightsबचपन से ही गुरुजी का मन संसार से अनासक्त होने लगा.अधिकतर एकांत में ही रहते और प्रभु भक्ति में लीन रहते. विद्वान-मूर्ख सभी को उपदेश देकर सही तथा आसान मुक्ति का मार्ग दिखाया.

भाई गुरदास जी ने लिखा है - सतगुरु  नानक प्रगटिया, मिटी धुंध जग चानन होआ. ज्योंकर सूरज निकलिया, तारे छिपे अंधेर पलोआ.

अर्थात जैसे सूर्योदय होने पर अंधकार तथा तारामंडल लुप्त हो जाते हैं उसी प्रकार गुरु नानक देवजी के उत्पन्न हुए अलौकिक प्रकाश से धुंध मिट गई और सर्वत्न प्रकाश फैल गया. वह धुंध भ्रम, अज्ञान, ईष्र्या, अशांति, पाखंड आदि की थी. गुरुजी के सदुपदेशों से यह सब दूर भाग गए .गुरु नानक देवजी का जन्म सन 1469 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन पिता श्री कालू मेहता तथा माता तृप्ता के घर हुआ था.

बचपन से ही गुरुजी का मन संसार से अनासक्त होने लगा. वे अधिकतर एकांत में ही रहते और प्रभु भक्ति में लीन रहते. जब उनके पिता ने एक दो बार उन्हें कुछ धन देकर कोई कार्य करने के लिए कहा तो वेजरूरतमंद संन्यासियों को धन बांट कर आ गए. इससे पिता बहुत नाराज हुए और उन्हें डांटा-फटकारा. मां को चिंता हुई कि कुछ दिनों से वह अकेले बैठ सोच में डूबे रहते हैं, कहीं कोई बीमारी तो नहीं लग गई. पति से कहकर वैद्य हरिदास को बुलाया.

वैद्य ने जब नानकजी की बांह पकड़ी तो वे बोले कि तुम मेरी बांह पकड़ कर क्या करोगे और बीमारी को कैसे पकड़ोगे? तुम्हें तो पता ही नहीं कि मेरे अंतर्मन में जो प्रभु मिलने का दर्द है वह कैसे दूर होगा? धर्म प्रचार के लिए गुरुजी ने अपने जीवन में काफी यात्नाएं कीं. उन्होंने मजहबी भेदभाव को त्याग कर समान दृष्टि से देखते हुए हर अच्छे-बुरे, ऊंच-नीच, विद्वान-मूर्ख सभी को उपदेश देकर सही तथा आसान मुक्ति का मार्ग दिखाया.

गुरु नानकजी भारत की अखंडता का पक्ष लेने वाले पूर्ण संत और कवि हैं जिनका उद्देश्य है ‘एक पिता एकस के हम बारिक.’ गुरुजी ने अपने जीवन में अनेक वाणियों का सृजन किया. गुरुग्रंथ साहिब में गुरुजी की जपुजी साहब, आसा दी वार, बारहमाह, सिद्ध गोष्ट, तीन वारा आदि वाणियां संग्रहित हैं.

गुरुजी के उपदेशों, शिक्षाओं का सार उनकी वाणी जपुजी साहब में दर्शाया गया है. ईश्वर एक है, उसका नाम सत्य है, वह न किसी से डरता है न किसी से बैर करता है, उसे पाने के लिए लंबे-चौड़े ज्ञान की जरूरत नहीं है. केवल सच्चाई की आवश्यकता है. प्रभु की कृपा से ही सारे कार्य होते हैं. अत: उसकी कृपा पाने के लिए गुरु की शरण में जाओ. वह हमारी नजर को बाहर से हटाकर भीतर की तरफ मोड़ देता है.

गुरु जी परमात्मा द्वारा रचित सृष्टि के सभी मनुष्यों को समान मानते थे. गुरुजी के मन में सबके प्रति समान प्रेम, आदर, स्नेह की भावना थी. उन्होंने कहा है - हे मालिक मेरे, मैं तुझसे यही मांगता हूं कि जो लोग नीच से भी नीच जाति के समङो जाते हैं, मैं उनका साथी बनूं. बड़ा कहलाने वाले लोगों के साथ चलने की मेरी इच्छा नहीं है क्योंकि मैं जानता हूं तेरी कृपा दृष्टि वहां होती है जहां इन गरीबों की संभाल होती है.

गुरुजी की मुख्य शिक्षाओं में हैं नाम जपना, कीरत करना, वंड छकना अर्थात परमात्मा को याद करना, अच्छे नेक कार्य करना और मिल-बांट कर खाना. लंगर की प्रथा इसी का प्रतीक है जिसे गुरुजी ने आरंभ किया था. गुरु नानक देवजी ने सांसारिक उपदेशों में रहते हुए, जीवन की कठिनाइयों से जूझते हुए, पारिवारिक जीवन को विशेष महत्व देते हुए जिस प्रकार मुक्ति का मार्ग विश्व को दिखाया है वह अपने आप में बेजोड़ है.

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