यह ईद-उल-फितर भी साथ लाई है एक नया इम्तिहान
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: May 14, 2021 12:46 PM2021-05-14T12:46:07+5:302021-05-14T12:48:21+5:30
ईद का त्योहार पिछले साल की तरह इस बार भी कोरोना महामारी के साये में मनाया जा रह है. यह समय इम्तिहान का है और धैर्य और संयम के साथ इससे सभी को पार पाना है.
जावेद आलम
पिछले साल की तरह इस साल भी ईद-उल-फितर पर वही इम्तिहान सामने है. एक बीमारी है, जिसमें जिस्मानी फासला बनाए रखना है. सामने ईद की नमाज है. साल भर में एक बार पढ़ी जाने वाली. रमजान की इबादतों का इनाम. रमजान का महीना बहुत पाबंदियों वाला होता है. ऐहतियात भी बहुत करना पड़ता है यानी खाने-पीने की पाबंदियों के साथ हाथ-पैर, आंखों, कान व जुबान तक का रोजा.
यह जीवन भर का प्रशिक्षण है कि इस्लामी जिंदगी ऐसे गुजारना है. इसी प्रशिक्षण काल की समाप्ति का नाम ईद-उल-फितर है, जिसमें अल्लाह के नेक बंदे एक जगह जमा होकर इज्तिमाई (सामूहिक) तौर पर उसका शुक्र अदा करते हैं कि रब्बे-करीम ने उन्हें रमजान जैसा मुबारक माह अता किया. शुक्र अदा करने का सबसे हसीन तरीका नमाज है. यह हसीन शुक्राना अदा करने से पहले सदका-ए-फितर निकालने का हुक्म है.
सदका-ए-फितर एक निश्चित राशि है जो समर्थ मुसलमानों द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर मुसलमानों तक ईद की नमाज से पहले पहुंचानी होती है ताकि वे भी ईद की खुशियों में शामिल हो सकें. इसी निस्बत से इस ईद का नाम ‘ईद-उल-फितर’ है.
सदका-ए-फितर निकालने के साथ ज्यादातर मुसलमान जकात निकालने का सिलसिला भी रमजान में पूरा कर लेते हैं कि इस पाक महीने में एक नेकी का सवाब सत्तर गुना तक बढ़ा दिया जाता है. सो रमजान में मुसलमानों द्वारा दान-पुण्य खूब किया जाता है. यह असल में आर्थिक व सामाजिक असमानता दूर करने का प्रायोगिक तरीका भी है. इसीलिए देखने में आता है कि ईद पर गरीब-गुरबा भी ठीक-ठाक ढंग से तैयार हो कर ईदगाह तक पहुंचते हैं.
मगर पिछले साल की तरह ही इस बार फिर कोरोना का इम्तिहान सामने हैं. जगह-जगह लॉकडाउन लगा है. ऐसे हालात में नमाजे-ईद रूपी शुक्राना अदा करने के लिए जमा नहीं हो सकते.
यह सब देखते हुए ही देश के शीर्ष इस्लामी संस्थानों, मुस्लिम संगठनों ने पिछले साल की ही तरह इस साल भी यह अपील जारी की कि ईद-उल-फितर की नमाज का सिलसिला स्थानीय प्रशासन के आधार पर तय कर लिया जाए. यानी स्थानीय प्रशासन जैसी अनुमति दे वैसे नमाज अदा कर लें.
यह वक्त दरअसल रब्बे-अजीम की जानिब से एक इम्तिहान है. इस्लाम में इम्तिहान व आजमाइश का बड़ा मुकाम है. ऐसे वक्ते-इम्तिहान में शुक्र का मुकाम है कि कोरोना जैसी वबा के बीच मुसलमानों ने कई जगह अपनी खिदमात के दिल छू लेने वाले नमूने पेश किए.
ऐसे माहौल में वक्त एक बार फिर पुकार रहा है कि अपनी ख्वाहिशात कुर्बान करते हुए मौके के लिहाज से शुक्राना अदा कर लिया जाए. जिंदगी रही तो अगली ईदें बहुत धूमधाम से मनाई जाएंगी, इंशा अल्लाह.