स्वावलंबी विकास से द्विगुणित होगा त्योहारों का उत्साह, प्रकाश का पर्व हमें स्वयं को जगा कर ज्योति...
By गिरीश्वर मिश्र | Updated: October 20, 2025 05:17 IST2025-10-20T05:15:55+5:302025-10-20T05:17:07+5:30
diwali 2025: भारत धन-धान्य की दृष्टि से अनेक देशों की तुलना में और स्वयं अपनी पिछली उपलब्धियों की तुलना में उल्लेखनीय रूप से संतोषजनक स्थिति में है.

सांकेतिक फोटो
diwali 2025: इस साल दीपावली का पर्व देश के लिए इस अर्थ में विशेष है कि वह हमें स्वयं की पहचान के लिए आमंत्रित कर रहा है. इसका तकाजा है कि हम विभिन्न प्रकार के भ्रमों के आवरण से मुक्त होकर प्रकाश का वरण करें. राह में आते तिमिर को दूर करने के लिए प्रकाश का यह पर्व हमें स्वयं को जगा कर ज्योति का वाहक बनने के लिए प्रेरित करता है. अपनी शक्ति को पहचानना ही वह आधार है जो आज की वैश्विक अस्थिरता और उथल-पुथल वाले अनिश्चय के वातावरण में हमें सहारा दे सकेगा. आज के जटिल होते परिवेश में इसे सुखद आश्चर्य ही कहेंगे कि तमाम विघ्न-बाधाओं को पार करते हुए भारत धन-धान्य की दृष्टि से अनेक देशों की तुलना में और स्वयं अपनी पिछली उपलब्धियों की तुलना में उल्लेखनीय रूप से संतोषजनक स्थिति में है.
विश्व की चौथी अर्थव्यवस्था के रूप में उभर कर भारत ने विश्व को गंभीर संदेश दिए हैं. घरेलू मांग में बढ़त और आर्थिक नीतियों में महत्वपूर्ण सुधार जैसे कदम भारत को वैश्विक पूंजी प्रवाह का एक प्रमुख केंद्र बना रहे हैं. अनुमान है कि हमारी अर्थव्यवस्था वर्ष 2030 तक 7.3 ट्रिलियन जीडीपी के साथ विश्व में तीसरे स्थान पर पहुंच जाएगी.
इसके साथ ही जनसंख्या में युवा लोगों की बड़े अनुपात में उपस्थिति विकास के अवसर के संकेत उपलब्ध करा रही है. परिवर्तन की बयार लोगों की क्रय-शक्ति में वृद्धि, आधारभूत संरचना में सुधार और खाद्य उत्पादन में बढ़ोत्तरी में झलक रही है. कुल मिला कर समग्रता में यह दृश्य संतोषजनक स्थिति बयान करता है और गौरव बोध भी कराता है.
यह उपलब्धि इसलिए भी उल्लेखनीय है कि यह सब देश के अंदर-बाहर की कई चुनौतियों के बीच हो रहा है. देश की सीमाओं के निकट सामरिक हलचलों पर भी काफी हद तक काबू पाया गया है. सैन्य बल की सामर्थ्य आतंकी शत्रु को परास्त करने और उसके ठिकानों को ध्वस्त करने में सफल रही है. ज्ञान-विज्ञान और खेलकूद के क्षेत्र में भी उपलब्धि रेखांकित हुई है.
यह दृश्य आम भारतीय को उत्साहित और प्रोत्साहित करता है. तेजी से बदल रहे वैश्विक परिदृश्य में हम ऐसा बहुत कुछ होते देख रहे हैं जो विश्व की मानवता के हित में नहीं है. वह हमें सावधान तथा सचेत रहने के लिए प्रेरित करता है. इस वैश्विक बदलाव का एक प्रमुख संकेत यह है कि दूसरे देश से उधार लेने या खरीदने की जगह देश को स्वयं अपने ही संसाधनों को विकसित करना होगा.
स्वदेशी को अपनाना और आत्मनिर्भर होना हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए. दूसरे शब्दों में हमें ‘स्वदेशी’ सोच और व्यवस्था पहचान कर उसे अमल में लाना होगा. यह सत्य हमें समझना होगा कि पृथ्वी के संसाधन असीमित नहीं हैं. हम अनेक देशों में देख रहे हैं कि उनका अंधाधुंध इस्तेमाल या संसाधनों का अनियंत्रित दोहन न केवल कूड़ा-कचरा पैदा करता है बल्कि प्रतिस्पर्धा और हिंसा की प्रवृत्ति को बलवान बना रहा है. यह सब यही बता रहा है कि मन के भीतर पैठे मोह, लोभ, ईर्ष्या और द्वेष गहन अंधकार फैला रहे हैं.
ये जीवन विरोधी तत्व हैं जिनके प्रभाव में कुछ सूझता नहीं. हमें सृष्टि का आलाप और विलाप दोनों ही सुनना और गुनना होगा. द्रोह और विद्वेष को छोड़ कर जीवन के मूल्य को प्रतिष्ठित करना होगा. सात्विक भाव के साथ ही हम सब भारत को महान देश बना सकेंगे.