विचार: मन आत्मा का साधन है?

By शक्तिनन्दन भारती | Published: August 7, 2021 03:09 PM2021-08-07T15:09:46+5:302021-08-07T15:20:30+5:30

दुनिया के सभी अद्भुत काम चित्त की इसी अवस्था में हुए हैं। सभी प्रकार की अद्भुत खोजें। सभी प्रकार के आविष्कार मन और बुद्धि के परे के हैं।

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बुद्धि के ऊपर की अवस्था चित्त की अवस्था है।

Highlights एकाग्रता में भूल चूक की संभावना बहुत कम होती है।फ्राइड के अनुसार यह सबकॉन्शियस माइंड की स्थिति है।

मन क्या है, मन को अंग्रेजी में माइंड से परिभाषित किया गया है। फ्राइड ने मन के तीन स्तर माने हैं-पहला अनकॉन्शियस माइंड, दूसरा सबकॉन्शियस माइंड, तीसरा कॉन्शियस माइंड।

वहीं भारतीय परंपरा में मन को चंद्रमा से उत्पन्न बताया गया है "चंद्रमा मनसो जात।" योग वशिष्ठ में मन को परिभाषित करते हुए ऋषि वशिष्ठ कहते हैं की मन चेतना की चार अवस्थाओं में से एक है। यहां चेतना से तात्पर्य परम आत्मा से है। आत्मा रूपी ऊर्जा के 4 सहकारी तत्व है।

यह हैं मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार। इस चतुष्टय के कारण ही आत्मा पर करणीयता का भाव आरोपित किया जाता है। दूसरे शब्दों में हम इन चारों को आत्मा रूपी ऊर्जा के आभासित चार फलनात्मक समूह कह सकते हैं। संभवत इन चारों को समवेत रूप को ही फ्रॉयड ने मन कहा है।

इन चारों के कार्यों को ही हम तीन स्तरों में बांट सकते हैं जिन्हें फ्रॉयड भी अनकॉन्शियस सबकॉन्शिय तथा कॉन्शियस में बांटते हैं। चेतना का सबसे निचला स्तर मन का स्तर होता है। मन के धरातल पर स्थित चित्त क्षिप्त या विक्षिप्त स्थिति का होता है। उस चित्त की स्थिति किसी एक जगह नहीं टिकती है। यह ऊहापोह की स्थिति होती है।

इस धरातल पर हुए सभी कार्य अनकॉन्शियस माइंड की कैटेगरी में आते हैं। इसके बाद आता है बुद्धि का धरातल। बुद्धि के धरातल पर हुए कार्य चेक एंड बैलेंस की कैटेगरी में आते हैं। बुद्धि द्वारा चयन किए हुए कार्य समूह एकाग्र चित्त की स्थिति है। एकाग्रता में भूल चूक की संभावना बहुत कम होती है।

फ्राइड के अनुसार यह सबकॉन्शियस माइंड की स्थिति है। बुद्धि के ऊपर की अवस्था चित्त की अवस्था है। चित्त की अवस्था में या परम चेतन की अवस्था में अनुभूत कार्यों को करने में गलती की गुंजाइश नहीं होती। यह कॉन्शियसमाइंड की अवस्था है।

दुनिया के सभी अद्भुत काम चित्त की इसी अवस्था में हुए हैं। सभी प्रकार की अद्भुत खोजें। सभी प्रकार के आविष्कार मन और बुद्धि के परे के हैं। मन बुद्धि और चित्त का यह उत्तरोत्तर क्रम हमें इगो, इड इगो तथा सुपर ईगो की अवस्था की ओर ले जाता है। यही कारण है कि हम उत्तरोत्तर विकास की ओर जैविक रूप से उन्मुख हो रहे हैं।

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