विजय दर्डा का ब्लॉग: गजब किया तेरे वादे पे ऐतबार किया
By विजय दर्डा | Published: February 4, 2019 06:46 AM2019-02-04T06:46:29+5:302019-02-04T06:46:29+5:30
नीति आयोग ने आनन-फानन में प्रेस कांफ्रेंस कर दावा किया कि रिपोर्ट अभी तक तैयार ही नहीं हुई है. नीति आयोग ने यह दावा भी किया कि कर्मचारी भविष्य निधि योजना के अंशधारकों की संख्या बढ़ी है जो रोजगार बढ़ने का संकेत देती है.
‘गजब किया तेरे वादे पे ऐतबार किया/तमाम रात कयामत का इंतजार किया’
सन् 2014 में हर साल दो करोड़ रोजगार के वादों और बेरोजगारी के ताजा-ताजा सामने आए चौंकाने वाले आंकड़ों को देखकर मशहूर शायर दाग़ देहलवी की उपरोक्त पंक्तियां याद आ गईं. 2014 के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिन ब्रrास्त्रों का उपयोग किया था, उनमें से एक था बेरोजगारी. उन्होंने सत्ता में आने के बाद हर साल दो करोड़ रोजगार पैदा करने का वादा किया, मगर बेरोजगार इंतजार करते रहे और सच जब सामने आया तो आंखें फटी की फटी रह गईं.
मामला शुरू हुआ नेशनल सैंपल सव्रे आर्गेनाइजेशन के दो सदस्यों के इस्तीफे से. आरोप था कि रिपोर्ट तैयार होने के बावजूद मोदी सरकार बेरोजगारी के आंकड़े जारी नहीं कर रही है. एक अंग्रेजी अखबार में वह कथित रिपोर्ट ‘लीक’ हो गई. उस रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार के राज में बेरोजगारी की दर 6.1 प्र.श. अर्थात 45 साल के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई है. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो देश में 2018 में बेरोजगारों की तादाद 6 करोड़ से ज्यादा थी.
नीति आयोग ने आनन-फानन में प्रेस कांफ्रेंस कर दावा किया कि रिपोर्ट अभी तक तैयार ही नहीं हुई है. नीति आयोग ने यह दावा भी किया कि कर्मचारी भविष्य निधि योजना के अंशधारकों की संख्या बढ़ी है जो रोजगार बढ़ने का संकेत देती है.
जिस रिपोर्ट पर राजनीतिक तहलका मचा हुआ है, वह अगर सच है तो रोजगार के मोर्चे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के दावों को गलत साबित कर देती है. उससे यह भी पता चलता है कि रोजगार पैदा करने की मोदी सरकार की तमाम योजनाएं गति ही नहीं पकड़ सकीं. चाहे मुद्रा योजना हो या स्टार्टअप या मेक इन इंडिया, इनमें से किसी भी योजना ने उड़ान ही नहीं भरी और दम तोड़ दिया.
देश में बेरोजगारी की इतनी ज्यादा दर 1972-73 में थी. उसके बाद रोजगार के आंकड़े कम-ज्यादा होते रहे मगर बेरोजगारों की इतनी विशाल फौज कभी तैयार नहीं हुई. नेशनल सैंपल सव्रे आर्गेनाइजेशन की लीक हुई रिपोर्ट बताती है कि शहरी क्षेत्रों के 18.7 प्र.श. युवक तथा 27.2 प्र.श. युवतियों के पास कोई नौकरी नहीं है. 2011-12 में जब कांग्रेस की सरकार थी, तब बेरोजगारी की दर सिर्फ 2.2 प्र.श. थी. इसी तरह ग्रामीण इलाके की 17.3 प्र.श. शिक्षित युवतियां बेरोजगार हैं. बेरोजगारों का यह तबका 15 से 29 साल की आयु का है. बेरोजगारी का आलम यह है कि मेरे पास हर माह सैकड़ों आवेदन नौकरी के लिए आते हैं. बड़ी संख्या में ऐसे पत्र भी आते हैं, जिनमें मुझसे नौकरी दिलवाने का आग्रह किया जाता है.
इस बात पर गौर करना जरूरी है कि नोटबंदी तथा जीएसटी का नौकरियों पर क्या असर पड़ा. मोदी सरकार का हर मंत्री यह दावा करता रहा है कि नोटबंदी तथा जीएसटी से कोई बेरोजगार नहीं हुआ बल्कि नए रोजगार पैदा हुए. श्रम तथा रोजगार मंत्रलय के आंकड़े बताते हैं कि 2015-16 में बेरोजगारी की दर देश में 3.7 प्र.श. थी. उस वक्त नोटबंदी और जीएसटी लागू नहीं हुई थी. नवंबर 2016 में नोटबंदी तथा जुलाई 2017 में जीएसटी लागू हुई. 2016 से 2018 के बीच बेरोजगारी की दर 3.7 से बढ़कर 6.1 प्र.श. पर पहुंच गई. सरल शब्दों में कहा जाए तो नोटबंदी तथा जीएसटी के बाद के दो वर्षो में बेरोजगारों की संख्या करीब तीन करोड़ बढ़ गई. इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि नोटबंदी और जीएसटी के बाद करीब तीन करोड़ लोगों की नौकरियां चली गईं या रोजगार के तीन करोड़ अवसर खत्म हो गए.
बेरोजगारी के मसले पर किसी प्रकार की राजनीति नहीं की जानी चाहिए क्योंकि यह एक बेहद संवेदनशील मसला है. जितनी ज्यादा बेरोजगारी होगी उतनी ही ज्यादा हमारी अर्थव्यवस्था कमजोर होगी. अनियंत्रित बेरोजगारी का मतलब ही यही है कि हमारी अर्थव्यवस्था बीमार है. बेरोजगारी के कारणों की जड़ में जाकर समस्या का समाधान खोजना पड़ेगा. भारत को युवाओं का देश कहा जाता है. हमारी 130 करोड़ की आबादी में से 65 प्र.श. की उम्र 35 वर्ष से नीचे है. विडंबना यह है कि 35 वर्ष से कम उम्र के हाथों में ही कोई काम नहीं है. आज मोदी सरकार है, कल कोई और सरकार आ सकती है. सरकार चाहे किसी की भी हो, उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता रोजगार के ज्यादा से ज्यादा अवसर पैदा करने की होनी चाहिए. हमारा मोदी सरकार से इतना ही आग्रह है कि रोजगार के मोर्चे पर वह तथ्यों को न छुपाए. उसने बेरोजगारी दूर करने के लिए निश्चित रूप से प्रयास किए होंगे. यह अलग बात है कि उसके प्रयास सफल नहीं हुए. इसके चाहे जो कारण रहे हों, सरकार की जो भी मजबूरियां रही हों, मगर वह सच से मुंह न मोड़े. प्रसिद्ध शायर नासिर काज़मी की पंक्तियों के साथ मैं अपनी बात खत्म कर रहा हूं-
तेरी मजबूरियां दुरुस्त मगर
तूने वादा किया था याद तो कर