वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: किरण बेदी को अचानक हटाना आश्चर्यजनक
By वेद प्रताप वैदिक | Published: February 24, 2021 10:56 AM2021-02-24T10:56:21+5:302021-02-24T10:59:05+5:30
पुडुचेरी में नारायणस्वामी की कांग्रेस सरकार गिर गई है. हालांकि, इससे पहले किरण बेदी को उपराज्यपाल के पद से क्यों हटाया गया, इसके पीछे के कारण अभी भी साफ नहीं हैं.
पुडुचेरी में नारायणस्वामी की कांग्रेस सरकार को तो गिरना ही था. सो वह गिर गई लेकिन किरण बेदी को उपराज्यपाल के पद से अचानक हटा देना सबको आश्चर्यचकित कर गया. उन पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं था.
उन्होंने कोई कानून नहीं तोड़ा. उन्होंने किसी केंद्रीय आदेश का उल्लंघन नहीं किया फिर भी उन्हें जो हटाया गया, उसके पीछे ऐसा लगता है कि भाजपा की लंबी राजनीति है.
किरण बेदी और नारायणस्वामी पहले दिन से ही मुठभेड़ की मुद्रा में रहे हैं. ऐसा कभी लगा ही नहीं कि एक राज्यपाल और दूसरा मुख्यमंत्री है. हर मुद्दे पर उनकी टकराहट के समाचार अखबारों में छाए रहते थे.
ऐसा लगता था कि ये दोनों दो विरोधी पार्टियों के नेता हैं. इसका परिणाम यह हुआ कि नारायणस्वामी पुडुचेरी के मतदाताओं की सहानुभूति अर्जित करते गए. भाजपा और विरोधियों को लगा कि कुछ हफ्तों बाद होनेवाले चुनाव में नारायणस्वामी कहीं बाजी न मार ले जाएं इसीलिए किरण बेदी को अचानक हटा दिया गया.
दूसरी तरफ कांग्रेस में भी अंदरूनी बगावत चल रही थी. 2016 में नारायणस्वामी को कांग्रेस ने अचानक पुडुचेरी का मुख्यमंत्री बना दिया था. कांग्रेस के दिल्ली दरबार में नारायणस्वामी की पकड़ काफी मजबूत थी. उस समय पुडुचेरी के कांग्रेस अध्यक्ष थे ए. नमासिवायम. वे हाथ मलते रह गए.
उन्होंने और उनके साथियों ने बगावत का झंडा खड़ा कर दिया. कांग्रेस के विधायकों ने इस्तीफे दे दिए. सरकार अल्पमत में चली गई. नारायणस्वामी ने भी इस्तीफा दे दिया. चुनाव के तीन माह पहले हुई यह नौटंकी अब क्या गुल खिलाएगी, कुछ नहीं कहा जा सकता है.
कांग्रेस की साथी पार्टी द्रमुक के विधायक ने भी इस्तीफा दे दिया है. अकेली कांग्रेस का फिर से लौट पाना मुश्किल ही लगता है. हो सकता है कि कांग्रेस कोई नए नेता का नाम आगे बढ़ा दे. हो सकता है कि पुडुचेरी में पहली बार भाजपा की सरकार बन जाए. पुडुचेरी भी कर्नाटक के चरण चिह्नें पर चल पड़े.
जो भी हो, इस वक्त पूरे दक्षिण भारत से कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया है. दक्षिण भारत के सभी प्रांतों में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकारें आ गई हैं.
कांग्रेस की अपनी सरकारें सिर्फ तीन प्रांतों में रह गई हैं- राजस्थान, पंजाब और छत्तीसगढ़. महाराष्ट्र और झारखंड में वह सहकारी है. कांग्रेस की यह दशा भारतीय लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है. कांग्रेस की वजह से भाजपा बिना ब्रेक की मोटर कार बनती जा रही है.