मधुकर भावे का ब्लॉगः वह जुझारू जॉर्ज हमेशा याद रहेगा

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 30, 2019 06:41 AM2019-01-30T06:41:40+5:302019-01-30T06:41:40+5:30

60 साल पहले मैं मुंबई आया और मुझे स्नेह का पहला आधार जॉर्ज का मिला. पैडर रोड पर पुल के नीचे उतरने के बाद दाहिने हाथ पर मुड़ने पर पान गली आती है. इसी गली के माहेश्वरी मेंशन में दस बाय दस के कमरे में जॉर्ज रहते थे.

Madhukar Bhave's blog: George will always remembered | मधुकर भावे का ब्लॉगः वह जुझारू जॉर्ज हमेशा याद रहेगा

फाइल फोटो

जॉर्ज फर्नाडीस अब हमारे बीच नहीं रहे. एक तरह से वह यातनाओं से मुक्त हो गए. श्रमिकों के लिए संघर्ष करने वाले जॉर्ज को पिछले पचास वर्षो से करीब से देखने का मौका मिला. उन्हें पिछले छह वर्षो से मौत से भी लड़ते हुए देखा. जॉर्ज के जीवन में कोई भी चीज आसान नहीं रही. चार साल पहले मृणालताई गोरे के देहांत से मुंबई में नारी आंदोलन का यशस्वी अध्याय खत्म हो गया. आज जॉर्ज के अलविदा कहने के साथ ही मुंबई में श्रमिक आंदोलन इतिहास का एक अध्याय बन गया. आंदोलन के सिलसिले में वे बार-बार जेल जाते रहे, पुलिस की लाठी खाते रहे. उनका हर अंदाज तूफानी होता था. ऐसा जुझारू श्रमिक नेता दोबारा पैदा नहीं होगा.

60 साल पहले मैं मुंबई आया और मुझे स्नेह का पहला आधार जॉर्ज का मिला. पैडर रोड पर पुल के नीचे उतरने के बाद दाहिने हाथ पर मुड़ने पर पान गली आती है. इसी गली के माहेश्वरी मेंशन में दस बाय दस के कमरे में जॉर्ज रहते थे. यहां वह सिर्फ सोने के लिए आते थे और वह भी आधी रात के बाद. वह सिर्फ चार-पांच घंटे सोते थे. जॉर्ज अक्सर कहा करते थे- ‘जिंदगी की आधी रातें कट गईं जेल में’. वह यह भी कहते थे कि अगर मैं एक हड़ताल करता हूं तो दो सौ समझौते भी करता हूं.

1955 में मुंबई में गोदी कामगारों की मांगों को लेकर जॉर्ज ने पहली बार मुंबई बंद करवाया था. मुंबई के अनेक व्यवसायों में कामगारों के हितों की लड़ाई लड़ने वाले जॉर्ज ही थे. मुंबई में श्रमिकों की ऐतिहासिक लड़ाइयां लड़ने वाले दिग्गजों में कॉमरेड श्रीपाद अमृत डांगे और जॉर्ज का नाम सबसे ज्यादा सम्मान से लिया जाता है.

संयुक्त महाराष्ट्र के आंदोलन में कॉमरेड डांगे, आचार्य अत्रे, एस.एम. जोशी के साथ-साथ जॉर्ज का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है. जॉर्ज के संघर्षशील जीवन में सबसे बड़ा आंदोलन 1962 की केंद्रीय कर्मचारियों की हड़ताल थी. हड़ताल का नेतृत्व एस.एम. जोशी कर रहे थे. जॉर्ज ने आंदोलन के दौरान घोषणा की कि वह मुंबई में लोकल ट्रेनें रोकेंगे. जॉर्ज ने अपनी घोषणा को सच कर दिखाया. दिनभर पुलिस जॉर्ज की खोज करती रही, जबकि वह दादर प्लेटफार्म पर उमड़ी भीड़ में ही खड़े हुए थे. उन्होंने सिर्फ अपना चष्मा निकाल लिया था और कुर्ता-पैजामा की जगह कोट पहन लिया था. उससे उन्हें पुलिस पहचान नहीं पाई. उसी समय एक लोकल ट्रेन आई और जॉर्ज उसके सामने कूद पड़े. पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर हाथों में हथकड़ियां पहना दीं. आज भी वह दृश्य आंखों के सामने जीवंत हो उठता है.

जॉर्ज अपनी एक और उपलब्धि के कारण दुनिया भर में विख्यात हो गए थे. सन् 1967 में मध्य मुंबई से लोकसभा के चुनाव में उन्होंने उस वक्त अजेय समङो जाने वाले कांग्रेस दिग्गज एस.के. पाटिल के खिलाफ चुनाव लड़ा और उन्हें धूल चटा दी. उस दौर में पाटिल को हराने की कल्पना भी कोई नहीं कर सकता था. जॉर्ज ने पोस्टर छपवाया जिस पर जनता के नाम संदेश लिखा था, ‘आप एस.के. पाटिल को हरा सकते हैं’. जॉर्ज अपनी चुनावी सभा में भी यही वाक्य बोलते थे. इस वाक्य ने जादू का काम किया. इस चुनाव में अंतिम सभा जॉर्ज ने चौपाटी पर ली. नरीमन पॉइंट की कस्तूरी बिल्डिंग में एस.के. पाटिल रहते थे. उसी बिल्डिंग में प्रसिद्ध दंत चिकित्सक डॉ. दस्तूर रहते थे. वह जॉर्ज के मित्र थे. अपना दांत दिखाकर जब जॉर्ज लिफ्ट से बाहर आए तब उनका सामना एस.के. पाटिल से हुआ. जॉर्ज ने उनसे कहा, ‘मैं आपको हरा दूंगा, मि. पाटिल’. उस दिग्गज कांग्रेसी ने भी शांति से जवाब दिया, ‘अगर ऐसा हुआ तो मैं आपको बधाई दूंगा’.

जॉर्ज को जिंदगी में एकाकीपन खूब खलता था. जिस दिन उनका विवाह प्रसिद्ध विचारक प्रा. हुमायूं कबीर की पुत्री लैला से हुआ उस दिन वह खूब प्रसन्न थे. उस दिन मैंने ‘मराठा’ में एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक था- ‘जॉर्ज तुङो शादी मुबारक’. जॉर्ज ने वह अंक मंगवाया और उस अंक को मैंने दिल्ली में जॉर्ज की लाइब्रेरी में देखा था. जिस दिन उनका विवाह असफल हुआ, उस वक्त जॉर्ज को मैंने असहाय भी देखा. जुझारू जॉर्ज एकदम अलग थे और उनका भावनात्मक रूप अलग था. सड़क पर संघर्ष करने वाला जॉर्ज शेर था और एकाकी जॉर्ज असहाय लगता था. मुझे कभी ऐसा लगा नहीं कि जॉर्ज कभी थक जाएंगे या असहाय हो जाएंगे. जॉर्ज का आक्रामक रूप ही मेरे सामने रहा और हमेशा कायम रहेगा.

(लोकमत नागपुर, जलगांव तथा नासिक संस्करण के पूर्व संपादक)

Web Title: Madhukar Bhave's blog: George will always remembered

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