संतोष देसाई का ब्लॉगः जनता में बदलाव की भूख

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 14, 2019 11:13 PM2019-01-14T23:13:54+5:302019-01-14T23:13:54+5:30

अन्ना हजारे के नेतृत्व वाले जनलोकपाल आंदोलन ने एक नई तरह की राजनीति की संभावना की ओर इशारा किया. इसका उद्भव भ्रष्टाचार से परेशान मध्य वर्ग के बीच से हुआ, लेकिन यह खुद राजनीति के बारे में कई मायनों में एक नई कल्पना का परिचायक था.

lok sabha elections 2019: government may change congress bjp | संतोष देसाई का ब्लॉगः जनता में बदलाव की भूख

संतोष देसाई का ब्लॉगः जनता में बदलाव की भूख

संतोष देसाई

राजनीति से आज अगर किसी एक चीज की मांग की जा रही है तो वह परिवर्तनकारी बदलाव. हाल के वर्षो में कम से कम दो बार ऐसे मौके आए जब मतदाताओं ने राजनीतिक विकल्प के बारे में शिद्दत से महसूस किया है- एक तो जनलोकपाल आंदोलन और दूसरा 2014 का फैसला. हालांकि इन दोनों नतीजों ने बहुत अलग वैचारिक दिशाओं का संकेत दिया, लेकिन दोनों में मौलिक परिवर्तन की तीव्र इच्छा थी.

अन्ना हजारे के नेतृत्व वाले जनलोकपाल आंदोलन ने एक नई तरह की राजनीति की संभावना की ओर इशारा किया. इसका उद्भव भ्रष्टाचार से परेशान मध्य वर्ग के बीच से हुआ, लेकिन यह खुद राजनीति के बारे में कई मायनों में एक नई कल्पना का परिचायक था. संक्षिप्त अवधि में ही इसने हमारी सामूहिक चेतना में खुद को अंकित कर लिया, यह अलग बात है कि उस सपने की असमय मृत्यु हो गई. आम आदमी पार्टी का उद्भव इसी के तहत हुआ, पर वह सामान्य पार्टी साबित हुई.

मोदी एक उत्साहपूर्ण लहर के शिखर पर सवार होकर सत्ता में आए थे. भाजपा की ध्रुवीकरण की नीतियों के बावजूद, 2014 में देश के एक बड़े हिस्से को लगा कि वे वास्तविक और व्यापक बदलाव की संभावना का प्रतिनिधित्व करते हैं. वे अपने आधार का विस्तार करने में कामयाब रहे, विभिन्न क्षेत्रों के लोग उनसे जुड़े, क्योंकि उन्हें लगा कि कुछ महत्वपूर्ण होने वाला है. जनसमर्थन उनके लिए चरम पर था, क्योंकि बदलाव उनके एजेंडे में सबसे ऊपर था. 

तथ्य यह है कि नोटबंदी जैसे विघटनकारी और अस्थिर विचार को भी शुरुआती दिनों में व्यापक जन समर्थन मिला, जो इसका प्रमाण है कि लोग बुनियादी परिवर्तन चाहते थे, भले ही इससे उन्हें तकलीफें ङोलनी पड़ी हों. 

योगी आदित्यनाथ के चयन के पहले उन्हें पार्टी के कट्टरपंथी धड़े का हिस्सा माना जाता था. यह अविश्वसनीय था कि चुने जाने के बाद कितनी जल्दी उनके बारे में लोगों का नजरिया बदल गया. माना जाने लगा कि वे एक मजबूत और अनुशासित नेता हैं जो उत्तर प्रदेश जैसे राज्य को विकास के पथ पर ले जा सकेंगे. लोगों में परिवर्तन की भूख इतनी ज्यादा थी कि उन्होंने नजरंदाज कर दिया कि उनका ट्रैक रिकार्ड भड़काऊ भाषण देने का था और कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं था. 

कांग्रेस अगर पहले की तुलना में आज अधिक विश्वसनीय दिखाई दे रही है तो इसलिए कि राहुल गांधी नए दृष्टिकोण की संभावना का प्रतिनिधित्व करते हैं. यह स्पष्ट है कि राजनीति से बड़े परिवर्तन की अपेक्षा रखी जा रही है. सतह के नीचे बेचैनी है जो आने वाले दिनों में सतह पर आने का रास्ता खोज सकती है. 

Web Title: lok sabha elections 2019: government may change congress bjp