11 मार्च को होंगे UP की 2 सीटों पर उपचुनाव, जानिए क्यों दांव पर लगी है BJP की साख
By खबरीलाल जनार्दन | Published: February 13, 2018 07:22 PM2018-02-13T19:22:17+5:302018-02-13T19:23:44+5:30
आजाद भारत में पहली बार मोदी लहर में केशव प्रसाद मौर्य ने फूलपुर सीट पर जीत दिलाई थी। पर आधे में उपमुख्यमंत्री बन सीट छोड़ गए। अब क्या जनता बीजेपी पर दोबारा भरोसा जताएगी?
उत्तर प्रदेश की फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा सीट पर उपचुनाव का ऐलान हो चुके हैं। इन दोनों सीटों पर 11 मार्च को मतदान होंगे और 14 मार्च को परिणाम घोषित किए जाएंगे। पिछले साल यूपी विधानसभा चुनाव के बाद योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री और केशव प्रसाद मौर्या के उप मुख्यमंत्री बनने के बाद ये दोनों लोकसभा सीटें खाली हो गई हैं।
साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने मोदी लहर का फायदा उठाते हुए पहली बार केशव प्रसाद मैर्या ने फूलपुर लोकसभा की सीट पर कमल का फुल खिलाने में सफल हुए थे। आजाद भारत में फूलपुर पर कभी बीजेपी जीत नहीं पाई थी।
लेकिन गोरखपुर लोकसभा की सीट पर योगी आदित्यनाथ 1998 से जीतते आ रहे हैं जबकि उससे पहले इस सीट पर उनके गुरु मंहत अवैधनाथ 1989 , 1991 और 1996 में जीत दर्ज की थी। ऐसे में गोरखपुर लोकसभा सीट योगी आदित्यनाथ और बीजेपी दोनों की प्रतिष्ठा से जुड़ी है।
फूलपुर लोकसभा को क्यों वीआईपी सीट कहा जाता हैं
इलहाबाद का फूलपुर लोकसभा सीट अपने आप में कई इतिहास को संजोए है। यह वही सीट हैं जहा से देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था। यह वही लोकसभा की सीट है जहां 1962 में सामाजवादी नेता राममनोहर लोहिया, नेहरू के विजयी रथ को रोकने उतरे थे। इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के संस्थापक कांशीराम भी अपना किस्मत अजमा चुके हैं।
क्या है फूलपुर लोकसभा सीट पर हुए अब तक के चुनावों का इतिहास
साल 1952 में जब देश में पहला आम चुनाव होने वाला था तब देश के सबसे बड़े नेता जवाहर लाल नेहरू ने इलाहाबाद के फूलपुर के सीट से चुनाव लड़ने का निर्णय लिया, लेकिन नेहरू को अपने पहली ही परीक्षा में चुनौती मिली। यह चुनौती किसी नेता ने नहीं बल्कि एक संन्यासी ने दिया, जिनका नाम था प्रभुदत्त ब्रह्मचारी। वे फूलपुर के सीट से ही चुनाव लड़ रहे थे। प्रभुदत्त ब्रह्मचारी का चुनाव लड़ने का एक ही मकसद था हिंदू कोड बिल को पास ना होने देना। लेकिन नेहरू इस चुनाव को जीतने में कामयाब रहे। 1957 में दूसरी बार नेहरू ने इस सीट पर जीत दर्ज की।
पर 1962 में इस सीट पर हुए चुनाव को कोई कैसे भूल सकता है। नेहरू के वीजयी रथ को रोकने के लिए प्रख्यात समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया फूलपुर के सीट से चुनाव लड़ने के लिए कूद पड़े। हालांकि वे नेहरू को कोई खास चुनौती नहीं दे सके। नेहरू ने जीत के साथ हैट्रिक लगा दी।
नेहरू के निधन के बाद उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित ने 1967 के चुनाव में छोटे लोहिया के नाम से प्रसिद्ध जनेश्वर मिश्र को हराकर नेहरू और कांग्रेस की विरासत को आगे बढ़ाया। हालांकि 1967 में संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधि बनने के बाद विजय लक्ष्मी पंडित को सीट छोड़ना पड़ा।
उसके बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने नेहरू के सहयोगी केशव देव मालवीय को चुनाव में उतारा। लेकिन इस बार वे सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार जनेश्वर मिश्र को नहीं हरा पाए और पहली बार कांग्रेस को इस सीट से हाथ धोना पड़ा।
1971 फूलपुर में कांग्रेस के तरफ से विश्वप्रताप सिंह जीते, वह बाद में जाकर देश के प्रधानमंत्री बने। आपातकाल के बाद हुए चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर कमला बहुगुणा की जीत हुई हालांकि यह अलग बात है कि वह बाद में जाकर कांग्रेस मे शामिल हो गईं।
आपातकाल के बाद जनता पार्टी की सरकार बनी, लेकिन यह सरकार पांच साल तक नहीं चल पाई और फिर 1980 में मध्यावधि चुनाव हुए तो इस सीट पर लोकदल के उम्मीदवार प्रो. बीडी सिंह ने जीत दर्ज की।
1984 में एक बार फिर कांग्रेसी प्रत्याशी रामपूजन पटेल जीते। लेकिन वे बाद में जनता दल में शामिल हो गए। इसके बाद 1989 और 1999 के चुनावों में यहीं से सांसद बने। उन्होंने यहां पर पंडित नेहरू के बाद हैट्रिक लगाने के रिकॉर्ड की बराबरी कर ली।
2004 के लोकसभा चुनाव में फूलपुर से बाहुबली नेता अतीक अहमद जीते। उन्होंने तब निर्दलीय चुनाव लड़ा था। लेकिन बाद में अतीक बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गए। जबकि पहले इस सीट पर बीएसपी के संस्थापक कांशीराम चुनाव हार चुके थे।
आजादी के बाद फूलपुर सीट पर हुए कुल 16 चुनावों व 2 उपचुनावों में कांग्रेस ने 7 बार, एसपी 4 बार, जनता दल 2 बार, सोशलिस्ट समाजवादी पार्टी 1 बार, बीएलडी 1 बार, जनता पार्टी सेक्यूलर 1 बार, बीएसपी सिर्फ 1 बार व बीजेपी एक बार जीत दर्ज कर पाई है।
ब्लॉग प्रस्तुतिः प्रिंस राय