लोकसभा चुनाव में हरियाणा (भाग-1): नगर निगम और जींद उपचुनाव में हार के बावजूद पुराने ढर्रे पर कांग्रेस, सामने हैं ये चुनौतियां
By बद्री नाथ | Published: March 3, 2019 12:29 PM2019-03-03T12:29:22+5:302019-03-03T12:29:22+5:30
हरियाणा की राजनीति में कई अहम बदलावों के आसार बढ़ें हैं। कई समीकरण बिगड़े हैं तो कई और समीकरणों के बनने की संभावना बढ़ी है। जींद उपचुनाव व नगर निगमों में बीजेपी की जीत के बाद कैसे बदला है हरियाणा की राजनीति का समीकरण? पढ़िए हर पहलुओं का विश्लेषण...
राजनितिक बदलावों के इर्द गिर्द घूम रही हरियाणा की राजनीतिक फिजा काफी रोचक हो गई है। हो भी क्यूँ न इस साल हरियाणा दो महत्वपूर्ण चुनावों का साक्षी बनने जा रहा है। हालिया दो चुनाव नतीजों नें हरियाणा की राजनीति में कई अहम् बदलावों की परिस्थितियां उत्पन्न कर दी हैं इस परिदृश्य में हरियाणा में 2019 में होने वाले लोकसभा व विधान सभा चुनाव काफी दिलचस्प होने जा रहे है। लेकिन इससे भी ज्यादा दिलचस्प ये है कि इस बार मुकाबले में 9 से 10 पार्टियां मुकाबले में होंगी। जिनमे बीजेपी, कांग्रेस, जेजेपी, आप, लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी, हरियाणा लोकहित पार्टी बसपा, इनेलो, सिरोमणि अकाली दल, आम आदमी पार्टी आदि दलों का नाम मुख्य तौर पर लिया जा रहा है।
अगर सब कुछ सामान्य रहा तो लोकसभा चुनाव के लगभग साढ़े पांच महीने बाद ही हरियाणा में विधान सभा के चुनाव होंगे। इसके मद्देनजर राजनितिक दलों की तैयारियां जोरों पर हैं। सभी दल साम, दाम, दंड भेद और जोड़ तोड़ से बाजी मार लेने की जुगत में हैं। नतीजतन कई समीकरण टूट रहे हैं तो कई नए समीकरण बन रहे हैं। लोकसभा चुनावों में अब ज्यादा वक्त नहीं रह गया है इसलिए सभी दल अपने राजनीतिक समीकरण साधने की पुरजोर तैयारी में लग गए हैं। उदाहरण के लिए बीएसपी ने जहाँ इनेलो से गठबंधन तोड़कर सैनी की लोकतान्त्रिक सुरक्षा पार्टी से गठबंधन कर लिया हैं वहीं इनेलो ने बीजेपी के साथ जाने का संकेत दे दिया है।
अगर चुनावी आगाज की बात करें तो इनेलो से टूटकर बनी जेजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच गुल खिलते दिख रहे हैं तो हमेशा चौटाला परिवार का साथ देने वाली शिरोमणि अकाली दल अकेले चुनाव लड़ने का एलान कर सिख बाहुल्य सिरसा और कुरक्षेत्र में रैलियां कर चुकी है तो मोदी जी ने कुरुक्षेत्र में देश भर के पंचों और सरपंचों की बड़ी रैली आयोजित करके चुनावी आगाज कर दिया है। लेकिन गठ्बन्धन को लेकर बीजेपी ने अपने पत्ते अभी तक नहीं खोले हैं।
बीजेपी के हौसले बुलंद
जींद उपचुनाव के बाद बनी परिस्थितियों के बाद हरियाणा बीजेपी के हौसले सातवें आसमान पर हैं। बीजेपी एकला चलो की नीति अपनाने का संकेत दे रही है लेकिन बाकी दल गठबंधन के रास्ते अख्तियार कर रहे हैं । वहीँ इनेलो व बसपा का गठबंधन टूट गया है । इस टूट के बाद हमेशा बीजेपी के प्रति हमलावर दिखने वाली इनेलो बीजेपी के प्रति नरम दिखा रही है इनेलो सुप्रीमों ने पैरोल पर आने के बाद इस बात के संकेत दिया है कि उनकी पार्टी का बीजेपी से साठ गाठ हो सकता है। बीजेपी व कांग्रेस को छोड़कर ज्यादातर दल अकेले चुनाव में आने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहे है। इनके अलावा हरियाणा के ज्यादातर राजनीतिक दल चुनाव की तैयारी के तौर पर गठबंधन के रस्ते पर चल पड़े हैं इसी नतीजतन गठबंधन, ठगबंधन और लठबंधन शब्दों की गूंज हर रोज राजनितिक महकमे में सुनाई दे रहे हैं।
पुराने ढर्रे पर कांग्रेस, चुनौतियों का अंबार
कांग्रेस हरियाणा में हमेशा अकेले चुनाव लड़ती रही है और इस बार भी कमोबेश उसी रस्ते पर चलती दिख रही है पर इसमें कांग्रेस की तैयारी कुछ अलग दर्जे की है। दरअसल, हरियाणा कांग्रेस का हाल उस काल्पनिक फिल्म की तरह है जिसमें कई डायरेक्टर होते हैं और सबकी अपनी-अपनी पटकथा होती है और अपने-अपने हिसाब से फिल्म को दिशा देनें में लगे होते हैं । कुछ ऐसी ही स्थिति है हरियाणा कांग्रेस की जिसमें सब अपने अपने हिसाब से कांग्रेस को चलाने में लगे हैं। सियासी गलियारों में हरियाणा कांग्रेस अपनी गुटबाजी के लिए पुरे देश में विख्यात हो चुकी है। नतीजतन अबतक हरियाणा में कांग्रेस की क्षेत्रीय इकाइयां भंग/शिथिल पड़ी हैं। सोनिया गाँधी के बाद अब राहुल के 1 वर्षीय प्रयासों का नतीजा भी सिफर रहा है। हुड्डा और तंवर की पटीदारी में पुरे कांग्रेसियों को दो भागों में बाट दिए है, इन दोनों खेमे के नेता हमेशा एक दुसरे पर हमलावर होते रहते हैं। कांग्रेसी नेता व कार्यकर्ताओं की मेहनत असंगठित सी हो गई है सभी असमंजस की स्थिति में हैं कांग्रेस को सत्ता में आने का सपना देख रहे हैं लेकिन जींद उपचुनाव व हालिया नगर निगम चुनाव ने कांग्रेसियों के आँखों के पर्दे खोलने का काम किया है। चुनाव लड़ना भी है जीतना भी है एकजुटता की भूख भी है लेकिन कांग्रेस में किसी एक गुट का नेतृत्व किसी दूसरे गुट को स्वीकार्य नहीं है, तंवर ने जब पुरे हरियाणा की साइकिल यात्रा की थी तो उसके जबाब में हुड्डा रथ पर पर सवार होकर पूरा हरियाणा छान मारा था।
हुड्डा के सत्ता में रहते कांग्रेस के बड़े बड़े दिग्गज नेताओं (चौधरी वीरेंद्र सिंह, राव इन्द्रजीत सिंह, रमेश कौशिक...) नें कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामा था इन सारी परिस्थितियों के होने के बाद भी कांग्रेस ने हुड्डा जी को पूरा कंट्रोलिंग पॉवर दिया था। फूलचंद मुलाना को प्रदेश अध्यक्ष का पद से लेकर सब कुछ हुड्डा जी द्वारा निर्धारित किया जाता रहा लेकिन 2014 लोकसभा चुनाव हो या विधान सभा चुनाव सब में कांग्रेस रोहतक, सोनीपत और झज्जर में सिमटकर रह गई थी उसके बाद प्रदेश की राजनीति में हुड्डा की पकड़ कमजोर होती गई रही सही कसर कथित हुड्डा समर्थको द्वारा तंवर पर हमले ने पूरी कर दी इसके बाद तो कांग्रेस में कांग्रेस में हुड्डा की पकड़ कमजोर हुई साथ ही साथ हरियाणा कांग्रेस की गुटबाजी में बेतहासा वृद्धि हुई। सत्ता जाने के बा से ही पार्टी पर अपने नियंत्रण के कई असफल प्रयास कर चुके हैं लेकिन हमेशा वो असफल ही रहे हैं। वाडरा डील से लेकर ए जे एल विवादों में फसे हुड्डा जी की कांग्रेस पर नियंत्रण की ख्वाहिश अभी समाप्त तो नहीं हुई है लेकिन चाहने से ही सब कुछ हासिल हो जाता है। ऐसा सच नहीं हुड्डा के मामले में अब ऐसा ही लगता है। कांग्रेस के नेता एक दुसरे को परास्त करने में व्यस्त हैं इस परिस्थिति में बीजेपी को परास्त करना मुश्किल से भी मुश्किल होता गया है।
पिछले चार चुनावों में हरियाणा के राजनितिक नतीजो पर गौर करें तो ऐसा लगता है कि आगामी चुनाव में हरियाणा की राजनीति में नए सत्ता केन्द्रों के स्थापित होने की संभावना पूरी तरह से होगी। आप, लोसपा और जेजेपी के इस परिदृश्य में इस ग्राफ में नए तरीके के कई बदलाव देखे जा सकते हैं इसका कारण जहाँ नॉन जाट वोटों पर सरकार बनाने वाली बीजेपी के वोटों में सैनी द्वारा सेंध लगाने की संभावना है वहीँ इनेलो व जेजेपी में वोटों के बटवारे के आसार भी हैं। इस क्रम में बहुमत की सरकार बनाने के लिए कम वोट प्रतिशत से भी काम बनने की उम्मीद भी ज्यादा होगी। त्रिकोणीय मुकाबले जहाँ तीन दलों के बीच होते थे इस बार टीम महत्वपूर्ण गठबन्धनों (लोसपा + बसपा बनाम बीजेपी + शी अ द / इनेलो (अपेक्षित) बनाम जेजेपी व आप (अपेक्षित) को बीच होते दिखेंगेः-
Graph:-
Year | BJP | INC | INLD | SAD | BSP | HJC(BL) | HJCPV | NCP | HVP | RPI | IND & Other | Total |
2000 | 8.94% | 31.22% | 29.61% | 0.00% | 5.74% | 0.00% | 0.00% | 0.51% | 5.55% | 0.62% | 17.81% | 100.00% |
2005 | 10.50% | 42.46% | 26.77% | 0.00% | 3.22% | 0.00% | 0.00% | 0.68% | 0.00% | 0.00% | 16.37% | 100.00% |
2009 | 9.05% | 35.11% | 25.81% | 0.97% | 6.74% | 7.41% | 0.00% | 0.00% | 0.00% | 0.00% | 14.91% | 100.00% |
2014 | 33.24% | 20.58% | 24.11% | 0.62% | 4.37% | 3.57% | 0.64% | 0.00% | 0.00% | 0.00% | 12.87% | 100.00% |
क्या हो सकती है कांग्रेस की चुनावी रणनीति
वोटों के ट्रान्सफर के फोर्मुले को देखें तो कांग्रेस के 20.58 % वोट और कुलदीप विश्नोई की हरियाणा जनहित कांग्रेस (जिसका विलय कांग्रेस में हो चुका है) के 3.57% वोट मिलकर 25% के आसपास हो जाते हैं जो कि इनेलो को पिछले चुनाव में मिले मतों (24.11%) से कहीं ज्यादा हो जाते हैं। वहीं इनेलो में टूट की वजह से चौधरी देवीलाल की विरासत के वोटों के 2 भागों में बटने की संभावना भी प्रबल है उसका एक बड़ा हिस्सा दुष्यंत को जरूर मिलता दिख रहा है लेकिन फिर भी इस विभाजन से इनेलो जो कि विकल्प के रूप में दिख रही थी। हरियाणा की राजनीति परिदृश्य से बाहर होती दिख रही है। कांग्रेस के पास बीजेपी से टक्कर लेने के लिए एक फार्मूला मददगार हो सकता है सभी नेताओं को उनकी क्षमता के हिसाब से सीटों की जिम्मेदारी लगाकर चुनाव में बिना मुख्यमंत्री पद के चेहरे के चुनाव में उतरे जिससे आपसी खींचतान को कम करके पार्टी के अनेकता का फायदा लिया जा सके। अगर कांग्रेस ऐसा करती है तो अनेकता में बल है की बात को चरितार्थ कर सकती है पर ऐसी बात एक कल्पना ही है क्योंकि हरियाणा इंचार्ज गुलाम नबी आजाद का रुख भी अभी तक स्पष्ट नहीं हो सका है। जारी...
*इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।