बीजेपी को पता है 2019 में नरेंद्र मोदी और पीएम की कुर्सी के बीच राहुल गांधी नहीं उत्तर प्रदेश खड़ा है!

By रंगनाथ | Published: July 23, 2018 07:07 PM2018-07-23T19:07:24+5:302018-07-23T19:14:33+5:30

संसद के मॉनसून सत्र में विपक्ष द्वारा लाये गये अविश्वास प्रस्ताव के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों को अगले लोक सभा चुनाव की आधारभूमि माना जा रहा है। दोनों दलों ने संकेत दे दिया है कि वो अगला आम चुनाव किन मुद्दों पर लड़ सकते हैं।

general election 2019 Uttar pradesh is key to narendra modi second term as prime minister | बीजेपी को पता है 2019 में नरेंद्र मोदी और पीएम की कुर्सी के बीच राहुल गांधी नहीं उत्तर प्रदेश खड़ा है!

बीजेपी को पता है 2019 में नरेंद्र मोदी और पीएम की कुर्सी के बीच राहुल गांधी नहीं उत्तर प्रदेश खड़ा है!

राजनीतिक गलियारों की पुरानी कहावत है कि देश की सत्ता की राह उत्तर प्रदेश से होकर जाती है। अगले लोक सभा चुनाव में शायद यह कहावत सही साबित होने जा रही है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अगले लोक सभा चुनाव की तैयारी शुरू कर चुकी है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह "सम्पर्क फॉर समर्थन" अभियान के तहत देश के विभिन्न इलाकों और क्षेत्रों के लोगों से मुलाकात करके उनसे समर्थन माँग चुके हैं। अमित शाह  राजनीति, खेल, कला और संस्कृति से जुड़े नामचीन हस्तियों से इस अभियान के तहत मुलाकात कर चुके हैं। लेकिन राजनीतिक जानकारों की मानें तो पार्टी को अगले आम चुनाव में सबसे बड़ी चुनौती देश के सर्वाधिक लोक सभा सीटों वालों राज्य उत्तर प्रदेश में मिलनी है। 

यूपी लोक सभा में बीजेपी का अस्थायी प्रदर्शन

बीजेपी ने 2014 के लोक सभा चुनाव में यूपी की 80 लोक सभा सीटों में से रिकॉर्ड 71 पर जीत हासिल की थी। दो अन्य सीटें बीजेपी की साझीदार अपना दल की झोली में गई थीं। बीजेपी गठबन्धन को 73 सीटों पर मिली जीत एनडीए के लिए रिकॉर्ड है। पिछले ढाई दशकों में किसी भी राजनीतिक दल या गठबन्धन को यूपी में 70 या उससे ज्यादा सीटें नहीं मिली हैं। साल 2009 और 2004 के लोक सभा चुनाव में यूपी में बीजेपी को केवल 10 सीटों पर जीत मिली थी। वहीं 1999 के लोक सभा चुनाव में बीजेपी को यूपी में 29 सीटों पर जीत मिली थी। 2014 से पहले यूपी से सबसे ज्यादा 58 सीटें बीजेपी ने 1998 के चुनाव में जीती थीं। यानी पिछले दो दशकों का वोट पैटर्न ध्यान में रखें तो बीजेपी यूपी में 10 सीटों पर भी सिमट सकती है और सबका सूपड़ा साफ करते हुए 70 से ज्यादा सीटें भी जीत सकती है। 

2014 में जब बीजेपी ने लोक सभा चुनाव लड़ा तो राज्य में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। साल 2017 के विधान सभा चुनाव में भी बीजेपी गठबन्धन को राज्य की 403 सीटों में से 325 सीटों पर जीत मिली थी। दोनों चुनावों में सत्ताधारी समाजवादी पार्टी के खिलाफ जनाक्रोश का बीजेपी को लाभ मिला। बीजेपी यूपी की सत्ता में पिछले ढाई दशक से बाहर थी। अगले लोक सभा चुनाव में बीजेपी को सत्ताविरोधी-लहर का लाभ नहीं मिलेगा क्योंकि सूबे में और केंद्र में दोनों जगहों पर बीजेपी सरकार है। मोदी सरकार अगले साल तक अपने पाँच साल पूरी कर चुकी होगी तो राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार अपने दो साल पूरी कर लेगी। ऐसे में बीजेपी को दूसरे के खराब प्रशासन के बजाय अपने शासन के दम पर चुनाव लड़ना पड़ेगा। अगर यूपी में बीजेपी को 2004 या 2009 जैसा झटका लगा तो अकेले दम पर लोक सभा में बहुमत हासिल करके गठबन्धन दलों को दबाव में रखने वाली बीजेपी के पास सौदेबाजी के लिए 2014 जैसा नैतिक बल नहीं बचेगा।

सपा-बसपा ने ढूंढी बीजेपी की काट

2014 के लोक सभा चुनाव में बीजेपी ने यूपी में कुल मतदान का करीब 42 प्रतिशत वोट हासिल किया था। 2017 के विधान सभा चुनाव में भी बीजेपी को करीब 42 प्रतिशत वोट मिले थे। ऐसे में बीजेपी इस बात को लेकर आश्वस्त थी कि सूबे में उसके पास जिताऊ समीकरण मौजूद है। बीजेपी के इस चैन में खलल डाला मायावती और अखिलेश यादव की जुगलबंदी ने। 2014 में जिन लोगों ने बीजेपी की जीत को विकास और हिंदुत्व के कॉकटेल का अस्थायी उफान माना था उन्होंने भी 2017 में विधान सभा में मिले प्रचण्ड बहुमत के बाद मान लिया कि बीजेपी ने यूपी में स्थायी वोटबैंक तैयार कर लिया है। यह भी साफ हो गया कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के पास अकेले दम पर बीजेपी को टक्कर देने लायक जनाधार नहीं है। 

सभी विशेषज्ञों और बीजेपी के रणनीतिकारों को चौंकाते हुए गोरखपुर और फूलपुर लोक सभा उपचुनाव में सपा और बसपा ने हाथ मिला लिया। गोरखपुर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की परंपरागत लोक सभा सीट थी। वहीं फूलपुर डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफे से खाली हुई थी। इन दोनों सीटों पर सपा-बसपा की जोड़ी से मिली हार के घाव भरे भी नहीं थे कि कैराना लोक सभा सीट के लिए उपचुनाव में भी बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। 2014 में कैराना से बीजेपी के हुकुम सिंह ने दो लाख 40 हजार वोटों से जीता था। उनके निधन से खाली हुई सीट से उनकी बेटी मृगांका सिंह 40 हजार वोटों से हार गईं।

जब सपा और बसपा ने हाथ मिलाया था तो राजनीतिक जानकारों ने आशंका जतायी थी कि नेता भले हाथ मिला लें दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच जमीनी तालमेल मुश्किल है। उपचुनावों में जिस तरह बसपा ने अपने खाते के वोट सपा को दिलवाये उससे ऐसी आशंकाएँ झूठी साबित हुईं। बीजेपी के रणनीतिकार भी इस सपा-बसपा गठबन्धन की जमीनी ताकत महसूस कर चुके हैं।

लोक सभा 2019 के लिए बीजेपी की तैयारी

माना जा रहा है कि बीजेपी चुनाव से पहले पूरी कोशिश करेगी कि सपा-बसपा का आपस में गठबन्धन न हो। लेकिन मायावती और अखिलेश का मूड बिल्कुल अलग दिखायी दे रहा है। दोनों ही बीजेपी के खिलाफ कम से कम अगले लोक सभा चुनाव तक साथ रहने को कटिबद्ध नजर आ रहे हैं। बीजेपी भी इस खतरे से वाकिफ है इसलिए उसने अपना प्लान बी भी बना रखा है।

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट की बीजेपी यूपी में अपने सीटों को बरकरार रखने के लिए प्रदेश के कद्दावर नेताओं पर दाँव खेल सकती है। माना जा रहा है कि बीजेपी पिछले लोक सभा चुनाव में यूपी से विजयी रहे 50 प्रतिशत से ज्यादा सांसदों का अगले साल टिकट काट सकती है। निवर्तमान सांसदों के टिकट काटकर बीजेपी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को टिकट दे सकती है जिनका स्थानीय स्तर पर अच्छा प्रभाव है। बीजेपी सतीश महाना, एसपी शाही, दारा सिं चौहान, एसपीएस बघेल और हृदय नारायण दीक्षित को अगले लोक सभा चुनाव में मैदान में उतार सकती है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इनमें से कुछ नेताओं को इस बात का संकेत भी दिया जा चुका है।

मोदी कैबिनेट में यूपी का वजन

एनडीए सरकार में अहम मंत्रालयों का  जिम्मा उत्तर प्रदेश से जीतकर आने वाले नेताओं के पास है या रहा है। मई 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने मंत्रिमंडल का गठन किया तो उनकी कैबिनेट में यूपी से नौ सांसद मंत्री बनाए गये। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी से सांसद हैं, उनके अलावा चंदौली जिले के निवासी राजनाथ सिंह लखनऊ से सांसद हैं। इन दोनों के अलावा यूपी से मनोज सिन्हा, अनुप्रिया पटेल, महेंद्रनाथ पाण्डेय, कलराज मिश्रा, मेनका गांधी, उमा भारती, महेश शर्मा, वीके सिंह, संतोष गंगवार, साध्वी निरंजन ज्योति, सत्यपाल सिंह, कृष्णा राज और शिव प्रताप शुक्ल पिछले चार सालों में मोदी कैबिनेट में जगह पा चुके हैं। कुछ अभी भी केंद्रीय मंत्री हैं तो कुछ को दूसरी जिम्मेदारियाँ सौंपी जा चुकी हैं। मसलन, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री का पद संभाल चुके महेंद्र नाथ पाण्डेय को यूपी बीजेपी का अध्यक्ष बनाया जा चुका है। हिन्दू-मुसलमान और भारत-पाकिस्तान जैसे मुद्दों के अलावा बीजेपी विकास की बात करेगी साथ में इन स्थानीय नेताओं के दम पर अधिक से अधिक वोट बटोरने की कोशिश करेगी। क्योंकि बीजेपी को पता है कि साल 2019 में नरेंद्र मोदी और प्रधानमंत्री की कुर्सी के बीच उत्तर प्रदेश खड़ा है।

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