दुर्लभ नेताओं में थे वाजपेयीजी
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: August 17, 2018 11:14 AM2018-08-17T11:14:48+5:302018-08-17T11:14:48+5:30
अटल बिहारी वाजपेयी की पूरी जीवन यात्ना के मूल्यांकन के लिए कुछ आधार बनाना होगा. उनको भारतीय राजनीति को शलाका पुरुष मानने वाले बिल्कुल सही हैं.
(लेखक-अवधेश कुमार)
अटल बिहारी वाजपेयी की पूरी जीवन यात्ना के मूल्यांकन के लिए कुछ आधार बनाना होगा. उनको भारतीय राजनीति को शलाका पुरुष मानने वाले बिल्कुल सही हैं. राजनीति में इतना लंबा दौर गुजारने के बावजूद वैचारिक प्रतिबद्धता रखते हुए, घोर विरोधियों के प्रति भी बिल्कुल उदार आचरण एवं उसे जीवन भर कायम रखना तथा किसी से निजी कटुता न होना सामान्य बात नहीं है. वस्तुत: आजादी के दौर के राजनेताओं में राष्ट्रीय राजनीति में वे अंतिम व्यक्ति बच गए थे. इसका असर उनकी सोच व व्यवहार पर था.
हालांकि वह एक विशेष विचारधारा के प्रतिनिधि थे, लेकिन राजनीति को देखने का उनका दृष्टिकोण आजादी के दौरान भारत के बारे में देखे गए सपने से निर्धारित था. आजादी के बाद जिन महापुरु षों के साथ उनको काम करने का अवसर मिला उन सबका भी असर उन पर था. 1947 से लेकर लंबे समय तक देश में जो घटनाएं घटीं, भारत के सामने जो संकट और चुनौतियां आईं, उनसे निपटने के लिए तब के हमारे नेतृत्व ने जो कुछ किया उन सबका गहरा असर अटलजी के मनोमस्तिष्क पर पड़ा.
नेहरूजी अटलजी को बहुत प्यार करते थे. बकौल अटलजी एक बार उन्होंने लोकसभा में कांग्रेस और नेहरू सरकार की नीतियों पर तीखा हमला किया. शाम को एक कार्यक्रम में नेहरूजी ने उनको देखा और कहा कि आज तो बहुत अच्छा भाषण दिए. यह जो उदार व्यवहार था नेहरूजी का उनका असर न हो ऐसा कैसे हो सकता है. 1971 में बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के समय अटलजी पूरी तरह सरकार के साथ खड़े थे. यहां तक कि आपातकाल में उन्हें जेल जाना पड़ा. उस दौरान भी उन्होंने जो कविताएं लिखीं उनमें शासन की आलोचना तो है पर इंदिरा जी पर कोई सीधी निजी तीखी टिप्पणी नहीं.
आज अगर सभी दलाें एवं विचारधारा के नेताओं, लोग अटल जी को लेकर द्रवित हैं तो इसमें उनके पूरे जीवन के आचरण का ही योगदान है. अटल जी जैसे राजनेता का व्यक्तित्व वास्तव में अतुलनीय है.