ब्लॉग: नई खेल शक्ति बनने की ओर अग्रसर भारत

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: October 13, 2023 09:56 AM2023-10-13T09:56:30+5:302023-10-13T09:56:41+5:30

भारतीय एथलीटों को खेल प्रशासकों की, कोचिंग प्रयोगों की, प्रतिभा-खोज योजनाओं की, या दशकों से कम बजट और खेल मैदानों की कमी आदि समस्याओं से जूझते-जूझते अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।

India moving towards becoming the new sports power | ब्लॉग: नई खेल शक्ति बनने की ओर अग्रसर भारत

फाइल फोटो

पिछली शताब्दी (1928-1980) में कुछ ओलंपिक में हमारी शानदार हॉकी प्रतिभा का प्रदर्शन हो या के.डी. जाधव (हेलसिंकी-1952) का कुश्ती में पदक हो, बीजिंग ओलंपिक में अभिनव बिंद्रा के शानदार प्रदर्शन, या विश्व कप में क्रिकेट की एक-दो जीत छोड़ दें तो वैश्विक प्रतियोगिताओं या एशियाई खेलों जैसी क्षेत्रीय प्रतियोगिताओं में भारत एक खेल शक्ति के रूप में कभी भी सामने नहीं आया।

हांगझोउ एशियाई खेलों में भारत ने पहली बार सुनहरे अक्षरों में एक उज्ज्वल इतिहास रचा है, जिसमें भारतीय दल ने प्रभावशाली 28-38-41 पदक हासिल किए हैं, जो अब तक का सबसे उम्दा प्रदर्शन है। सही मायनों में एशियाई खेल शक्ति के रूप में हमारी एक नई बेहतरीन यात्रा अब शुरू हुई है। आइए हम सब अपने यशस्वी खिलाड़ियों का जयगान करें!

वह निशानेबाज ईशा सिंह हों, जिन्होंने चार पदक जीते, या ज्योति वेन्नम, तीरंदाज में जिनके शानदार प्रदर्शन ने उन्हें तीन स्वर्ण पदक दिलाए, भाला फेंक में नीरज चोपड़ा और किशोर जेना (स्वर्ण और रजत) या फुर्तीले चिराग शेट्टी और सात्विकसाईराज या 1990 में खेल शुरू होने के बाद से आठवां पदक जीतने वाली कबड्डी टीम ने भारतीय तिरंगे के सम्मान के साथ खेल की दुनिया में अपना स्थान बनाया है। उनके अविश्वसनीय प्रदर्शन को अब स्पष्ट रूप से देख और विश्लेषित कर सकते हैं।

उन्होंने जाने-अनजाने में इस तथ्य को रेखांकित किया है कि गंदी राजनीति न होने पर खिलाड़ी देश को ढेरों पदक दिला सकते हैं। यह कीर्तिमान उस समय बने हैं जब बेहतरीन एथलीटों में से एक पीटी उषा भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) का नेतृत्व कर रही हैं। दूसरे शब्दों में, यदि खेल के सितारों को प्रशासकों द्वारा प्रेरित किया जाए, उनके मामलों में ज्यादा हस्तक्षेप किए बिना, तो भारत वैश्विक परिदृश्य पर निश्चित ही चमक सकता है।

यह क्षमता है उनमें हमारे खेल नायकों के स्वागत के लिए उपयुक्त स्थान ध्यानचंद स्टेडियम में पूरी टीम की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो सराहना की वह काफी आश्वस्त करने वाली थी। उन्होंने एथलीटों से कहा, ‘पैसा कभी भी बाधा नहीं बनेगा’ और ‘2014 के बाद से खेल बजट तीन गुना कर दिया गया है।’

खेल में सुनहरे प्रदर्शन और सीखे गए सबक पर एक सरसरी नजर डालना यहां अप्रासंगिक नहीं होगा। पिछले एशियाई खेलों में जब ईरान ने स्वर्ण पदक जीता था, उसके बाद हमारे कबड्डी खिलाड़ियों पर खिताब दोबारा हासिल करने का दबाव था। विवादास्पद फाइनल जिसमें फिर से चीनी अधिकारियों ने बेईमानी की, में भारत ईरान को मात देने में कामयाब रहा लेकिन महिला टीम ने मुश्किल से चीनी ताइपे पर 26-25 से एक अंक की जीत दर्ज कर स्वर्ण पदक जीता।

कबड्डी में जीत यह दर्शाती है कि अन्य देश भी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे पिछले कुछ दशकों में यूरोपीय हॉकी टीमों ने किया था इसलिए, तात्कालिक आवश्यकता उन खेलों में अपनी श्रेष्ठता बनाए रखने की है जो स्वाभाविक रूप से हमारे हैं हमें सावधान रहना होगा।

महान खिलाड़ी ध्यानचंद को याद करें जिनकी नंगे पैर ड्रिब्लिंग की कला ने बर्लिन ओलंपिक फाइनल में एडोल्फ हिटलर सहित जर्मनियों को आश्चर्यचकित कर दिया था। ब्रिटिश भारत ने जर्मनी को 8-1 से हरा कर स्वर्ण पदक जीता था लेकिन फिर 1980 के मास्को ओलंपिक के बाद से जिसका कई देशों ने बहिष्कार किया, ओलंपिक स्वर्ण भारत की पहुंच से दूर ही रहा है।

हांगझोऊ में हालांकि, दक्षिण अफ्रीका के क्रेग फुल्टन द्वारा संक्षिप्त प्रशिक्षण प्राप्त हमारे हॉकी सितारों ने जापान पर शानदार जीत के साथ अपना खोया हुआ गौरव और पेरिस ओलंपिक का टिकट हासिल कर लिया, जो संतोषजनक है। खेल क्षितिज पर नारी शक्ति के उभरने का संकेत देने में प्रधानमंत्री सही थे। एथलेटिक्स से लेकर निशानेबाजी और क्रिकेट से लेकर नौकायन जैसे खेलों में चीन की धरती पर प्रतिभाशाली लड़कियों ने अपना जलवा बिखेरा... वे सभी गले में चमचमाते पदक लटकाए विजय मंच पर मौजूद थीं भारतीयों के लिए यह देखना कितना गर्व का क्षण था।

भारतीय खेलों की त्रासदी यह रही है कि खेल संघों पर बड़े पैमाने पर लालची प्रशासकों और विवादास्पद हस्तियों का नियंत्रण रहा है। राष्ट्रीय महासंघ या आईओए को स्वार्थी लोगों के एक समूह द्वारा चलाया जा रहा था जो संघों को अपनी इच्छानुसार चलाते थे और खिलाड़ियों को हांकते थे। पूर्व कुश्ती संघ प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह का महिला पहलवानों के साथ बेहद निंदनीय व्यवहार इतना जगजाहिर है जिसे फिर बताने की यहां जरूरत नहीं है किंतु परेशान करने वाली बात यह थी कि लड़कियों द्वारा खुलेआम और बार-बार छेड़छाड़ के आरोप लगाने के बावजूद भाजपा ने अपने सांसद को दंडित नहीं किया।

भारतीय एथलीटों को खेल प्रशासकों की, कोचिंग प्रयोगों की, प्रतिभा-खोज योजनाओं की, या दशकों से कम बजट और खेल मैदानों की कमी आदि समस्याओं से जूझते-जूझते अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। कुछ मौकों पर उनका संघर्ष सफल हुआ, कुछ में नहीं मुझे याद है कि वह एक ‘साई’ की योजना थी, जिसने 1987 में 15 वर्षीय आदिवासी लिम्बा राम को ओलंपिक तीरंदाज और विश्व रिकॉर्ड धारक बनाया था।

उनकी तरह, हांगझोउ में सामान्य पृष्ठभूमि वाले कई एथलीट थे। उनके दृढ़ संकल्प, उनके प्रशिक्षकों की कड़ी मेहनत और माता-पिता आदि के भावनात्मक समर्थन ने मिलकर भारत को आज गौरवान्वित किया है। आइए, अब पीछे मुड़कर न देखने का संकल्प लें और भारत को विश्व स्तर की खेल ताकत बनाने के लिए शुभकामनाएं प्रेषित करें। 

Web Title: India moving towards becoming the new sports power

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