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#KuchhPositiveKarteHain: Alluri Sitarama Raju -एक आदिवासी योद्धा जिसके नाम लेने भर से कांपती थी अंग्रेज सेना

By मोहित सिंह | Updated: May 11, 2018 16:00 IST

अल्लूरी सीताराम राजू: आंध्र प्रदेश के क्षत्रिय परिवार में जन्मे राजू की माँ विशाखापट्टनम की थीं जबकि उनके पिता माग्गूल ग्राम के एक फोटोग्राफ़र थे. अल्लूरी सीताराम राजू (Alluri Sitarama Raju) के 14 साल की उम्र में ही उनके पिता की मृत्यु हो गयी और उसके बाद उनका पालनपोषण उनके चाचा अल्लूरी रामकृष्ण के परिवार में हुआ।

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अल्लूरी सीताराम राजू: Pandrangi village, Visakhapatnam में Venkata Ramaraju और उनकी पत्नी Suryanarayanamma के घर 4 जुलाई 1897 को एक चिराग जला, एक ऐसा चिराग जिसकी ज्वाला से जल गया पूरा अंग्रेज प्रशासन। पति – पत्नी ने बड़े प्यार से रखा इनका नाम Alluri Sitarama Raju, लेकिन उनको ये बिल्कुल नहीं पता था कि ये नाम आगे चलकर इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जायेगा और अमर हो जायेगा।

आंध्र प्रदेश के क्षत्रिय परिवार में जन्मे राजू की माँ विशाखापट्टनम की थीं जबकि उनके पिता माग्गूल ग्राम के एक फोटोग्राफ़र थे. अल्लूरी सीताराम राजू (Alluri Sitarama Raju) के 14 साल की उम्र में ही उनके पिता की मृत्यु हो गयी और उसके बाद उनका पालनपोषण उनके चाचा अल्लूरी रामकृष्ण के परिवार में हुआ। पिता ने ल अवस्था में ही सीताराम राजू को यह बताकर क्रांतिकारी संस्कार दिए कि अंग्रेज ही तो हमें गुलाम बनाए हैं, जो देश को लूट रहे हैं। इन शब्दों की सीख के साथ ही पिता का साथ तो छूट गया, लेकिन विप्लव पथ के बीज लग चुके थे।

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क्रांतिकारी, वीर राजू ने स्कूली शिक्षा के साथसाथ निजी रुचि के तौर पर वैद्यक और ज्योतिष का भी अध्ययन किया और यह अध्ययन उनके व्यवहारिक अभ्यास में भी लगा रहा। युवावस्था में वनवासियों को अंग्रेजों के शोषण के विरुद्ध संगठित करना शुरू किया, जिसका आरंभ वनवासियों का उपचार व भविष्य की जानकारी देने से होता था। यही नहीं इस महान क्रांतिकारी ने महर्षि की तरह दो वर्ष तक सीतामाई नामक पह़ाडी की गुफा में अध्यात्म साधना व योग क्रियाओं से चिंतन तथा ताप विकसित किया।

1882 Madras Forest Act पारित होने के बाद आदिवासियों का जंगल में घुसना बहुत मुश्किल हो गया था जिस कारण वो लोग अपना पारंपरिक कृषि संसाधन का उपयोग नहीं कर पा रहे थे और ये एक बड़ा कारण बन रहा था क्षेत्र में गरीबी और भुखमरी का. इस एक्ट के खिलाफ अल्लूरी सीताराम राजू (Alluri Sitarama Raju) उठ खड़े हुए और उन्होंने इसके विरुद्ध East Godavari और Visakhapatnam जिलों में मूवमेंट का नेतृत्व किया। ये थी शुरुआत इस जाबांज क्रांतिकारी की अंग्रेजो की तानाशाही के खिलाफ खड़े होने की. इसके बाद बंगाल की क्रांति से प्रेरित अल्लूरी सीताराम राजू (Alluri Sitarama Raju) ने शुरू की क्रांतिकारी पहल और कई पुलिस चौकियों में धावा बोल कर इन्होने अपने दल के साथ राईफल्स, गोलियों और गोल बारूद की लूट की एवं कई ब्रिटिश सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया उनमें से एक Dammanapalli Scott Coward भी था.

अब तक इस वीर को आदिवासी लोग “Manyam Veerudu” (“Hero of the Jungles”)– जंगल का राजा’ जैसे नाम से संबोधित करने लगे थे.

राजू के क्रांतिकारी साथियों में बीरैयादौरा का नाम विख्यात है। बीरैयादौरा का प्रारंभ में अपना अलग संगठन था। वह भी वनवासियों का ही एक संगठन था, जिन्होंने अंग्रेजों से युद्ध छ़ेड रखा था। यह बात सन्‌ 1918 की है। अनंतर अंग्रेजों ने बीरैयादौरा को एक मुठभ़ेड में गिरफ्तार कर लिया, उसे जेल में रखा, लेकिन वह जेल की दीवार कूदकर जंगलों में भाग गया। वो दोबारा जेल भेज दिए गए। Alluri Sitarama Raju ने अंग्रेज सत्ता को पहले से सूचना भिजवा दी थी कि ‘मैं बीरैया को रिहा करवाकर रहूंगा। दम हो तो रोक लेना।’ वही हुआ, एक दिन पुलिस दल जब बीरैया को अदालत ले जा रहा था, Alluri Sitarama Raju ने पुलिस पर धावा बोला दिया और सबके सामने से बीरैयादौरा को छुड़ा ले गया। क्रांतिकारी बीरैया को ब्रिटिश कैद से रिहा करा लेने पर दोनों क्रांतिकारी राजू और बीरैया एकजुट हो गए, एक साथ काम करने लगे। अब राजू की शक्ति दुगुनी हो गई। दो अन्य क्रांतिकारी गाम मल्लू दौरा और गाम गन्टन दौरा भी राजू के दल में आ मिले।

1922 में अंग्रेज सेना ने असम राईफल्स का गठन किया और Alluri Sitarama Raju और उनके साथियों को पकड़ने का मुहीम चला दिया। पुलिस फोर्स से राजू की कई मुठभेड़ें हुईं। इनमें अंग्रेज सेना को मुंह की खानी प़डी। उसके बाद भी पुलिस राजू को गिरफ्तार नहीं कर सकी।

6 मई 1924 को राजू के दल का मुकाबला सुसज्जित असम राइफल्स से हुआ, जिसमें उनके सारे साथी शहीद हो गए, और Alluri Sitarama Raju अकेले रह गए।ईस्ट कोस्ट स्पेशल पुलिस पहाड़ों में उनको हर तरफ खोज रही थी। 7 मई 1924 को फोर्स के अफसर की नजर उनपर पड़ गई। उसने राजू का छिपकर पीछा किया लेकिन उनका असली परिचय नहीं जान पाया क्यूंकि उन्होंने दाढ़ी बढ़ा ली थी। उसकी जानकारी पर पुलिस बल ने Alluri Sitarama Raju के ठिकाने पर छापा मारा और राजू पर पीछे से गोली चला दी। राजू जख्मी होकर वहीं गिर प़डे। तब राजू ने स्वयं अपना परिचय देते हुए कहा कि ‘मैं ही सीताराम राजू हूं’ गिरफ्तारी के साथ ही यातनाएं शुरू हुई। अंततः उस महान क्रांतिकारी को नदी किनारे ही एक वृक्ष से बांधकर भून दिया गया।

एक क्रांतिकारी का इससे बढ़कर क्या बलिदान होगा कि जिस धरती पर पैदा हुआ, उसी की रक्षा के लिए, उसी धरती पर अपने प्राणों की आहूति दे दी. Alluri Sitarama Raju के इस बलिदान के साक्ष्य बने गोदावरी नदी और नल्लईमल्लई की पहाड़ियां। जहां आज भी अल्लूरी सीताराम राजू जिंदा है इन पहाड़ियों में और वनवासियों के लोकगीतों में लोकनायक के रूप में।

सीताराम राजू के संघर्ष और क्रांति की सफलता का एक कारण यह भी था कि वनवासी अपने नेता को धोखा देना, उनके साथ विश्वासघात करना नहीं जानते थे। कोई भी सामान्य व्यक्ति मुखबिर या गद्दार नहीं बना.

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