अभिलाष खांडेकर ब्लॉग: स्मार्ट इंदौर पूरे देश को दिखा रहा है राह!
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: October 3, 2023 09:45 IST2023-10-03T09:44:59+5:302023-10-03T09:45:08+5:30
दिलचस्प बात यह है कि इंदौर नए-नए प्रयोग करने के लिए मशहूर है और अन्य कई कारणों से लोकप्रिय इस शहर की खासियत यह है कि लोग अच्छी पहल पर तुरंत अच्छी प्रतिक्रिया देते हैं।

फोटो क्रेडिट- फाइल फोटो
यदि उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश, एक महत्वपूर्ण जिले के कलेक्टर के रूप में एक आईएएस अधिकारी, एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी, संसद सदस्य और महापौर आदि को सार्वजनिक परिवहन का सहारा लेते या महंगे पेट्रोल से भरी कारों को छोड़कर अपने कार्यालयों तक पैदल जाते हुए देखें तो शायद आपको अपनी आंखों पर विश्वास न हो कि क्या वाकई आप भारत में ही हैं!
खैर, इन सभी ने और ऐतिहासिक शहर इंदौर के कई अन्य ‘वीआईपी’ महानुभावों ने पिछले दिनों महापौर पुष्यमित्र भार्गव के आह्वान को प्रतिसाद दिया और पैदल चलकर, साइकिल चलाकर या दोपहिया वाहन चलाते हुए कार्यालय जाकर ‘नो कार डे’ मनाया।
कुछ अधिकारियों और न्यायाधीशों ने बस या ई-रिक्शा जैसे सार्वजनिक परिवहन का सहारा लिया। न्यायमूर्ति विवेक रूसिया भी महापौर तथा पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता भार्गव की तरह स्कूटर चलाते नजर आए। प्रशासनिक न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुश्रुत धर्माधिकारी जैसे अन्य लोगों ने सार्वजनिक परिवहन को प्राथमिकता दी।
पुलिस कमिश्नर मकरंद देउस्कर, (आईपीएस) एवं कलेक्टर इलैयाराजा टी. ने भी उस दिन कारों का इस्तेमाल त्याग दिया था। वे सभी अपने आप में महत्वपूर्ण पदाधिकारी हैं और उनके कार्यों ने आम लोगों को प्रेरित किया। जनता ने उनके काम की खूब तारीफ की चूंकि इस तरह के प्रशंसनीय कार्य आमतौर पर विदेशों में ही देखे जाते हैं, इसलिए न्यायाधीशों, नौकरशाहों और राजनेताओं को सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करते देखकर इंदौरवासी चकित थे।
आप यूरोप या अमेरिका में उच्च-पदस्थ अधिकारियों या राजनेताओं को अपनी आधिकारिक कारों पर सायरन बजाते या पदनाम और रैंक प्रदर्शित करने वाली बड़ी नेमप्लेट लगाए नहीं देखते हैं न ही राजनेता उस तरह का व्यवहार करते हैं जैसा भारतीय नेता करते हैं जब वे कहीं भी जाते हैं तो सुरक्षा के नाम पर पूरे यातायात को रोक देते हैं।
उनके लाव-लश्कर में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती है। अगर कोई मंत्री किसी भीड़-भाड़ वाली जगह से चुपचाप निकल भी जाता है तो हम उसे ‘वीआईपी’ नहीं मानते। उसके पास सायरन वाली कार होनी चाहिए; ऊपर चमकदार बत्ती या हूटर; एक पायलट कार और पुलिस वैन साथ में हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस तथाकथित ‘वीआईपी’ संस्कृति को हतोत्साहित करने की कोशिश की, लेकिन समाज में इसका कोई खास असर नहीं दिखा। इस पृष्ठभूमि में, इंदौर में 22 सितंबर को जो हुआ, वह सबसे अलहदा है।
बेशक, अधिकारी य न्यायमूर्तिगण हमेशा ऐसा नहीं कर सकते लेकिन उन्हें भी पर्यावरण की उतनी ही चिंता होनी चाहिए जितनी आम जनता को होती है।
ब्रुसेल्स, पेरिस, कोलकाता और कई अन्य शहरों में कार्बन उत्सर्जन पर अंकुश लगाने के लिए यह दिन मनाया गया लेकिन भारत में सैकड़ों छोटे-बड़े शहरों के कर्ता-धर्ता इस दिवस के महत्व से अनजान बने रहे।
नई दिल्ली ने एक बार कुछ अच्छे नतीजे पाने के लिए ‘ऑड-ईवन’ की कोशिश की थी लेकिन राजनीतिक कारणों से इसे छोड़ दिया गया जो दुःखद है। ‘नो कार डे’ या कार-मुक्त दिवस दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग दिन मनाया जाता है लेकिन लक्ष्य सबका एक ही है हवा की गुणवत्ता में सुधार करना और पहले से ही जाम शहर की सड़कों पर भीड़ कम करना।
यहां बताना मुनासिब होगा कि लंदन के महापौर सादिक खान को यूएलईजेड (अति निम्न उत्सर्जन क्षेत्र) को लागू करने सहित अन्य हरित पहलों के आधार पर 2021 में फिर से महापौर चुना गया। जकार्ता में वे लोग कार-मुक्त दिन साल भर में कई बार मनाते हैं।
भारत में यह उपाय-जिसकी अत्यंत आवश्यकता थी लगभग अनुपस्थित था इसलिए इंदौर के पहले प्रयास को जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली। ऐसा नहीं है कि सभी कारें सड़क से गायब हो गईं, लेकिन इसका प्रभाव जरूर पड़ा: 12% कम कारें चलती देखी गईं और पेट्रोल की खपत लगभग 10% कम हुई। भविष्य में इसमें सुधार हो सकता है। यदि ऐसा प्रयोग बार-बार दोहराया जाए।
दिलचस्प बात यह है कि इंदौर नए-नए प्रयोग करने के लिए मशहूर है और अन्य कई कारणों से लोकप्रिय इस शहर की खासियत यह है कि लोग अच्छी पहल पर तुरंत अच्छी प्रतिक्रिया देते हैं। परिणामस्वरूप, मोदी के स्वच्छ भारत मिशन के तहत आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय की रैंकिंग के अनुसार, इंदौर लगातार छह वर्षों से भारत का सबसे स्वच्छ शहर है। यह तत्कालीन जिला परिषद के युवा सीईओ आशीष सिंह के नेतृत्व में खुले में शौच से मुक्त शहर में भी अव्वल रहा था और हाल ही में इसे भारत की ‘बेस्ट स्मार्ट सिटी’ भी चुना गया।
कभी शीर्ष वस्त्रोद्योग केंद्र रहने वाले शहर, जहां परोपकारी गोविंदराम सेकसरिया सूती कपड़ा मिलों के मालिक थे या भारत के पहले टेस्ट कप्तान सी.के. नायडू, जिन्होंने 1932 में इंग्लैंड में क्रिकेट टीम का पहली बार नेतृत्व किया था, को देने वाले इंदौर ने अपने खाते में समय-समय पर कई उपलब्धियां जोड़ी हैं।
पर्यावरण में सुधार के लिए वाहनों के उत्सर्जन को कम करना नवीनतम शहरी नवाचारों में से एक है और इसने नागरिकों के साथ-साथ न्यायपालिका और नौकरशाही के योगदान को भी रेखांकित किया है। इंदौर में दो रामसर आर्द्रभूमि (कार्बन सिंक) हैं जो गैरसरकारी संगठनों द्वारा संरक्षित हैं लेकिन उन पर सरकारी तौर पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। हालांकि, इंदौरवासियों को लगता है कि पैदल चलना हो तो फुटपाथ भी अच्छे होने चाहिए जो सरकार की जिम्मेदारी है।
अधिकांश भारतीय शहरों में शहरी अराजकता और पर्यावरणीय चुनौतियां देखी जा रही हैं क्योंकि नगर निगमों की हालत खराब है। भ्रष्टाचार, वित्तीय तंगी और कुशासन हर जगह की समस्या है। शहरों को रहने लायक व बेहतर बनाने के लिए इस परिस्थिति में बदलाव होना चाहिए। इंदौर महापौर ने स्मार्ट कदम उठाते हुए रास्ता तो दिखाया है। बाकियों को भी इस पर चलना होगा।