योगी आदित्यनाथ ने नहीं पढ़ा है पूरा 'हनुमान चालीसा', वरना हनुमानजी को कतई नहीं बताते दलित, ये रहा सबूत

By जनार्दन पाण्डेय | Published: December 4, 2018 09:30 AM2018-12-04T09:30:05+5:302018-12-04T09:30:37+5:30

Yogi Adityanath has not read the complete 'Hanuman Chalisa'? Hanumanji does not Dalit | योगी आदित्यनाथ ने नहीं पढ़ा है पूरा 'हनुमान चालीसा', वरना हनुमानजी को कतई नहीं बताते दलित, ये रहा सबूत

सांकेतिक तस्वीर

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखनाथ मन्दिर के महंत हैं। बाबा गोरखनाथ भगवान शंकर के एक रूप हैं। योगी आदित्यनाथ ने अपने जीवन का लंबा हिस्सा इस मंदिर में पूजा-अर्चना करते गुजारी है। लेकिन इसके बाद भी उनका एक चुनावी सभा में हनुमानजी को दलित बताने से ऐसा प्रतीत होता है जैसे उन्होंने जानबूझ कर यह वहम ओढ़ा है।

यह कहना मुनासिब नहीं होगा उन्होंने शंकर भगवान के ही अंश कहे जाने वाले हनुमानजी के चालीसे का जाप ना किया हो। लेकिन सवाल है कि अगर उन्होंने हनुमान चालीसा का जाप किया है तो उन्होंने यह क्यों नहीं पढ़ा-

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेउ साजै।।

यह सर्वविदित है कि कांधे पर जनेउ धारण करने का आशय क्या होता है। हजारों सालों बाद आज भी दलित कांधे पर जनेउ धारण करने की हिमाकत नहीं कर पाए हैं। जबकि गोस्वामी तुलसीदास ने अपने काव्य में यह साफ-साफ लिखा है हनुमान जी कांधे पर जनेउ धारण करते थे।

यूं तो देवी-देवताओं और सतयुग में जाति अथवा वर्ण व्यवस्‍था थी इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता। यह बात योगी आदित्यनाथ से बेहतर कौन जानता है। लेकिन आदित्यनाथ ने ऐसी किसी शख्‍सियत जो वनवासी है, जो लगातार काम करता है, अपने स्वामी की सेवा करता है उसकी तुलना दलित से की।

संभव है इस फेसबुक यूजर से योगी आदित्यनाथ इत्तेफाक रखते हों-

यूजर का कहना है- हनुमान जी दलित ही थे। कभी कोई उनको बैठने को कुर्सी नहीं दिया, चाहे ठाकुर राम हों या रावण पंडित। बेचारे जिंदगी भर दौड़ाए जाते रहे। कभी कोई कह दिया जाओ लंका में देख आओ। कभी जाओ उत्तराखंड चले जाओ। लेकिन कोई छोटा मोटा इलाका की जमींदारी भी नहीं दी कि चलो भाई बहुत हुआ अब जाओ मौज करो। ऊपर से सीना फाड़ (मेहनत) करके दिखाना भी पड़ता था कि हम बहुत वफादार हैं। हम तो कहते हैं कि हनुमान जी दलितों के असली देवता हैं। वैसे भी हनुमान को प्रसिद्धि भी दलित बुद्धिजीवी बाल्मीकि ही दिलाये।

इतना ही नहीं ऐसी लोकोक्तियां सैकड़ों सालों से तैर रही हैं-

राम रमन्ना, दुई अन्ना,
एक क्षत्रिय, एक बाभन्ना,
एक ने एक की नारि चुराई,
एक ने एक की ध्वजा उपारि।।

इसमें राम को क्षत्रिय और रावण को पं‌डित बताया गया है। ऐसा बारमबार दोहराया गया है कि रावण एक महापंडित था। इसके पीछे के तर्क आम है रावण का पूजा-पाठ। चूंकि हमारी व्यवस्‍था में ऐसी शुरुआती मान्यता रही है कि पूजा-पाठ करने वाला ब्राह्मण होता है। जबकि लड़ाई व राजा का पद आमतौर पर क्षत्रियों का होता है कि क्योंकि हमारी सल्तनत में जितने शुरुआती आका रहे वे क्षत्रिय रहे।

ऐसे में हनुमानजी के कामों की साम्यता हमारे समाज के दलितों से है। लेकिन इसको एक चुनावी जनसभा में उछाल मात्र देने से योगी आदित्यनाथ किस वोट बैंक को साधना चाहते हैं। क्या मोदी सरकार की ओर से एससी/एसटी एक्ट या दलित उत्‍थान के लिए किए जा रहे दावे कम पड़ रहे हैं, जो कि योगी आदित्यनाथ को हनुमान जी को चुनाव में लाना पड़ रहा है।

क्या भगवान राम से अब भारतीय जनता पार्टी को रजा नहीं रही। क्या अब बीजेपी के आराध्य बदल रहे हैं, क्या अब बीजेपी सरदार बल्लभ भाई पटेल, महात्मा गांधी, बाबा साहेब आंबेडकर, हनुमानजी के बल पर चुनाव लड़ेगी और क्या बीजेपी के धर्म ग्रंथों के मर्मज्ञ देवी-देवताओं की नये सिरे से जातिकरण करेंगे। अगर ऐसा होता है कि योगी आदित्‍यनाथ इसके लिए सबसे योग्य हैं। उन्हें कई चीजें बदलने का अच्छा अनुभव है।

Web Title: Yogi Adityanath has not read the complete 'Hanuman Chalisa'? Hanumanji does not Dalit

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