निकट भविष्य में सहस्राधिक भाषाओं के लुप्त होने का मंडरा रहा खतरा, हिंदी की कैसी रहेगी स्थिति?

By गिरीश्वर मिश्र | Published: February 15, 2023 01:56 PM2023-02-15T13:56:09+5:302023-02-15T13:56:50+5:30

भारत के बाहर हिंदी का प्रयोग भाषा और संस्कृति की दृष्टि से दक्षेस, खाड़ी देश, यूरोप, अमेरिका, मॉरीशस, सूरीनाम, फीजी, गयाना, त्रिनिदाद, दक्षिण अफ्रीका आदि में हो रहा है। विश्व हिंदी सचिवालय मॉरीशस में स्थापित हुआ है। 11वां विश्व हिंदी सम्मेलन भी अगस्त 2018 में वहीं आयोजित हुआ था। प्रधानमंत्री मोदी की हिंदी के संवर्धन में विशेष रुचि रही है।

World Hindi Conference fiji Increasing role of Hindi in global context | निकट भविष्य में सहस्राधिक भाषाओं के लुप्त होने का मंडरा रहा खतरा, हिंदी की कैसी रहेगी स्थिति?

निकट भविष्य में सहस्राधिक भाषाओं के लुप्त होने का मंडरा रहा खतरा, हिंदी की कैसी रहेगी स्थिति?

अनुमान है कि इक्कीसवीं सदी में विश्व-पटल पर भारत और चीन की मुख्य भूमिका हो सकती है। वे कई परिवर्तनों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करते हैं। संचार माध्यमों के तीव्र विस्तार के साथ कई अर्थों में ‘विश्व-व्यवस्था’ और ‘विश्व-गांव’ जैसे जुमले वास्तविकता का आकार ले रहे हैं। व्यापार–वाणिज्य को बढ़ावा देने के लिए नए किस्म की जरूरतें पैदा हो रही हैं। अपने हितों को देखते हुए अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत के साथ व्यापार बढ़ा रही हैं। चूंकि उपभोक्ता या ग्राहक हिंदी क्षेत्र में अधिक हैं अतः अर्थ तंत्र में हिंदी की स्थिति अपेक्षाकृत मजबूत हुई है। इस बीच सूचना-प्रौद्योगिकी का भी अप्रत्याशित विस्तार हुआ है जिससे भाषा-व्यवहार, कार्य के परिवेश और कार्यपद्धति में एक अनिवार्य बदलाव आ रहा है।

हिंदी भाषा की क्षमता को कई तरह से आंका जाता है। उसके बोलने वालों का बढ़ता संख्या बल, साहित्य-सृजन की मात्रा और उसके प्रकाशन का विस्तार, हिंदी की बढ़ती शब्द-संपदा, हिंदी का लचीला भाषिक स्वरूप, जनसंचार माध्यमों में हिंदी की बढ़ती उपस्थिति, भाषांतर या अनुवाद की व्यवस्था, पारिभाषिक शब्दावली का विकास आदि को ध्यान में रखकर हिंदी की व्यापक भूमिका को अक्सर रेखांकित किया जाता है। भारत के एक बड़े भूभाग में रहने वाली आम जनता अपने सामान्य जीवन में हिंदी को व्यवहार में लाती है परंतु घर के बाहर निकलते ही उसे एक भिन्न प्रकार के और एक हद तक अस्वाभाविक से भाषिक संसार का सामना करना पड़ता है। हिंदी क्षेत्रों में बाजार, स्कूल, मनोरंजन, कोर्ट-कचहरी, अस्पताल, सरकारी कार्यालय और बैंक आदि स्थानों पर हिंदी और अंग्रेजी भाषाएं प्रतिष्ठा, प्रामाणिकता और उपलब्धता के पैमानों पर अलग पायदानों पर खड़ी दिखती हैं। आज भी अंग्रेजी की स्वीकार्यता निश्चित रूप से अधिक है और वह कुछ अतिरिक्त मोह के साथ भारतीय मानस पर सवार है। यह तब है जब पूरे भारत में हिंदी जानने वालों की संख्या 50 प्रतिशत और अंग्रेजीदां की संख्या महज 10 प्रतिशत है।

भाषाओं के समकालीन अध्येता भाषाओं के विस्तार और संकोच का जो मानचित्र दिखा रहे हैं उसमें निकट भविष्य में सहस्राधिक भाषाओं के लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है परंतु संख्या बल की बदौलत हिंदी की स्थिति की सुदृढ़ता का संकेत नजर आता है। आज भाषा के संरक्षण और संवर्धन के लिए बहुभाषिक कम्प्यूटर और इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है। शब्दकोशों और विश्वकोशों की संख्या बढ़ रही है। हिंदी के व्याकरण पर कार्य हो रहा है, ई-पुस्तकालय और ई-बुक का भी निर्माण जोरों पर है। इससे हिंदी को गति और ऊर्जा मिल रही है। हिंदी के प्रयोग का क्षेत्र भी बढ़ा है और चार करोड़ प्रवासी भारतीय भी इससे जुड़े हैं। भारत के बाहर हिंदी का प्रयोग भाषा और संस्कृति की दृष्टि से दक्षेस, खाड़ी देश, यूरोप, अमेरिका, मॉरीशस, सूरीनाम, फीजी, गयाना, त्रिनिदाद, दक्षिण अफ्रीका आदि में हो रहा है। विश्व हिंदी सचिवालय मॉरीशस में स्थापित हुआ है। 11वां विश्व हिंदी सम्मेलन भी अगस्त 2018 में वहीं आयोजित हुआ था। प्रधानमंत्री मोदी की हिंदी के संवर्धन में विशेष रुचि रही है। भारत और विदेश में वे अपने भाषणों के लिए हिंदी माध्यम चुनते हैं। संयुक्त राष्ट्र में पहल हुई है और साप्ताहिक बुलेटिन हिंदी में जारी किया जा रहा है। साथ ही वहां पर विविध प्रकार की सामग्री भी हिंदी में उपलब्ध करने की व्यवस्था हो रही है।

आज भारतीय पेशेवर विश्व में हर कहींं दिखते हैं और भारत की राजनैतिक-आर्थिक सत्ता की व्यापक उपस्थिति में योगदान कर रहे हैं। इस कार्य में मीडिया की विशेष भूमिका है। आज फिल्म, विज्ञापन, प्रकाशन तथा सोशल मीडिया ने हिंदी के संवर्धन के लिए अवसर बढ़ाया है और भारत ज्ञान कोश, हिंदी विकीपीडिया, हिंदी कविता कोश आदि ने हिंदी के लिए प्रचुर साहित्य सामग्री उपलब्ध कराई है। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के हिंदी समय डॉटकाम पर 7 लाख पृष्ठ का हिंदी साहित्य उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त समाज विज्ञान कोश, अहिंसा शब्दकोश, वर्धा हिंदीकोश वर्धा विश्वविद्यालय के पोर्टल पर नि:शुल्क उपलब्ध है। सोशल मीडिया में भी ब्लॉग, ट्विटर आदि पर हिंदी का प्रयोग बढ़ रहा है। इन माध्यमों को देखें तो साहित्य की एक पूरी नई विधा आकार ले रही है।

समर्थ भाषा बनाने के लिए हिंदी का स्थिर वर्ण क्रम होना चाहिए और उसका मानकीकरण तथा अनुपालन जरूरी है। क्षेत्रीय भिन्नता के कारण लोकव्यवहार में विविधता तो होगी पर औपचारिक क्षेत्र में एकरूपता अपेक्षित है। लिखित रूप में लिपि चिह्नों का संयोजन, शब्द स्तर की वर्तनी और विराम चिह्न आदि का अनुशासन जरूरी है। एक ध्वन्यात्मक भाषा के रूप में हिंदी के परिनिष्ठित रूप को पाने के लिए यह जरूरी होगा। मानकीकरण से स्पष्टता, प्रामाणिकता और संप्रेषणीयता आ सकेगी। राजभाषा के रूप में हिंदी प्रयोग के लिए विधि-विधान तो संविधान में किए गए हैं परंतु कार्यान्वयन की दृष्टि से अभी भी हम बहुत पिछड़े हैं। लोकतंत्र में जनभागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए भी भाषा की केंद्रीय भूमिका है परंतु अभी तक भाषा, शिक्षा और लोकतंत्र के पारस्परिक रिश्ते की गंभीरता को हम नजरअंदाज करते आ रहे हैं। सशक्त और समर्थ भारत का सपना देखते हुए इसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती।

Web Title: World Hindi Conference fiji Increasing role of Hindi in global context

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